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This Article is From Mar 27, 2016

टी 20 विश्वकप में अफगानिस्तान का ऐलान, 'हम भी हैं एशिया के क्रिकेट पावर'

टी 20 विश्वकप में अफगानिस्तान का ऐलान, 'हम भी  हैं एशिया के क्रिकेट पावर'
अफगानिस्तान टीम ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार खेल दिखाया है (फोटो: AFP)
नई दिल्ली: नईनवेली टीम अफगानिस्तान ने जब क्‍वालिफाई कर टी-20 वर्ल्ड कप के मुख्‍य ड्रॉ में स्‍थान बनाया था तो किसी ने भी इससे बड़ी उम्‍मीद नहीं की थी। लेकिन असगर स्‍तानिकजई के नेतृत्व वाली इस टीम ने अपने शुरुआती मैच से ही क्रिकेट दिग्‍गजों को खासा प्रभावित किया। इंग्‍लैंड के खिलाफ इस टीम ने जिस तरह का जज्बा दिखाया, उसने अफगान खिलाड़ि‍यों की क्षमता का पता चला। इस मुकाबले में अफगानिस्तान टीम जीत के बेहद नजदीक पहुंचकर भी हार गई थी।

बहरहाल, रविवार को इस टीम ने 'बड़ी' जीत दर्ज कर ही ली। टूर्नामेंट के तीन मैचों में जबर्दस्त प्रदर्शन करने वाली वेस्टइंडीज टीम को छह रन से शिकस्त देकर अफगानिस्तान ने टूर्नामेंट का उलटफेर कर  डाला। अपने इस प्रदर्शन के सहारे अफगान टीम ने विश्व क्रिकेट में एशिया से भविष्य में एक और मजबूत टीम आने के संकेत दे दिए हैं।

अब जरा सोचिए कि आखिर वह ऐसा कैसे कर पा रही है। इसके लिए आपको उसके संघर्ष की कहानी पर जाना पड़ेगा, जिसने उसके खिलाड़ियों को 'लड़ाकू', निडर और साहसी बनाया।

नहीं था खेलने लायक माहौल
अफगानिस्तान लंबे समय से आतंकवाद और कट्टरपंथियों की गिरफ्त में रहा है। तालिबान ने वहां हर खेल पर प्रतिबंध लगाया हुआ था। ऐसे में वहां क्रिकेट खेलने के बारे में सोचना ही अपराध के समान था। तालिबान के शासन काल में लाखों अफगानी पाकिस्तान के रिफ्यूजी कैंपों में शरण लिए हुए थे। यहां अफगानी बच्चों ने पाकिस्तानियों को क्रिकेट खेलते हुए देखा। इससे उनमें भी क्रिकेट के प्रति ललक जगी और उन्होंने शरणार्थी शिविरों की गलियों में ही खेलना शुरू कर दिया। यह बात 1990 के आसपास की है।

अफगानिस्तान के पूर्व कप्तान मोहम्मद नबी भी पाकिस्तान के एक रिफ्यूजी कैंप में क्रिकेट खेलते थे। इसी तरह कई अन्य खिलाड़ी भी इन्हें हालातों से गुजरते हुए टीम तक पहुंचे हैं।

1995 में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड का गठन हुआ। इतना ही नहीं उन्होंने अफगानिस्तान लौटने पर भी क्रिकेट खेलना जारी रखा। बाद में तालिबान की रुचि क्रिकेट में जगी और उसने साल 2000 में वहां केवल क्रिकेट खेलने की अनुमति दे दी, जबकि अन्य खेलों पर बैन जारी रहा। इसके अगले ही साल आईसीसी में अफगानिस्तान क्रिकेट फेडरेशन को संबद्ध सदस्य के रूप में चुन लिया गया और उनकी राष्ट्रीय टीम का गठन हुआ। 2013 में उसे आईसीसी की एसोसिएट टीम का दर्जा मिल गया।

आतंक के साए और सीमित संसाधनों के बीच असंभव को संभव बनाया
दरअसल आतंक के साए में बंदूक की गोलियों और तोपों के गोलों के बीच क्रिकेट तो दूर किसी भी सपने को पूरा करने के बारे में सोचना ही अपने आप में साहस का काम था। ऐसे में क्रिकेटप्रेमी अफगान युवाओं ने अपने शौक को पूरा करने के लिए जो साहस दिखाया वह असंभव को संभव करने के समान था। इससे आप इन खिलाड़ियों की हिम्मत और जज्बे का अंदाजा लगा सकते हैं। अब जरा क्रिकेट लेखक साइमन बार्न्स के इस कथन पर गौर फरमाइए-

बार्न्स ने अफगान क्रिकेट के बारे में लिखा है, 'यदि आपने गोलियों की आवाज के बीच अपना खेल खेला है, तो आपका असंभव को देखने का नजरिया भी अलग ही होता है।'

इतना ही नहीं उनके पास तो सुरक्षित क्रिकेट के लिए आवश्यक सामग्री भी नहीं थी। जैसे तैसे सहयोगी देशों और अलग-अलग संस्थाओं के सहयोग से उन्हें सुविधाएं मुहैया कराई गईं। स्टेडियम के अभाव में खाली पड़े मैदानों पर ही उन्होंने खेल को आगे बढ़ाया। अपने टूर्नामेंट कभी श्रीलंका, तो कभी पाकिस्तान या नेपाल में खेले और इस वर्ल्ड कप टी-20 से पहले भारत में नोएडा को अपना 'होम ग्राउंड' बनाया। गौरतलब है कि भारत अफगानिस्तान के कंधार में  क्रिकेट स्टेडियम बनाने में भी मदद कर रहा है।
 
अफगानिस्तान की टीम हर मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन कर रही है (फोटो : AFP)

वर्ल्ड टी-20, 2010 के लिए किया क्वालिफाई
लंबे प्रयास के बाद टीम ने 2010 और 2012 के टी-20 वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफाई कर लिया। हालांकि वह 2011 के वनडे वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफाई करने में असफल रही, लेकिन 2013 तक के लिए वनडे स्टेटस हासिल कर लिया। आखिरकार 2015 के वनडे वर्ल्ड कप में एसोसिएट टीम के रूप में उन्होंने प्रवेश पा ही लिया।

2015 में टीम को एक और बड़ी उपलब्धि तब हासिल हुई, जब वह आईसीसी की टॉप-10 टीमों की सूची में शामिल हो गई।

इन्होंने संवारा अफगानिस्तान टीम को-

'कॉम एंड कॉम्पैक्ट' इंजमाम उल हक : अक्टूबर, 2015 में पाकिस्तान के पूर्व कप्तान और महान बल्लेबाज इंजमाम उल हक को अफगानिस्तान की बैटिंग को संवारने की जिम्मेदारी सौंपी गई। उनके मार्गदर्शन में टीम ने जिम्बाब्वे को टी-20 और वनडे सीरीज में हराया। हाल ही में इसकी झलक वर्ल्ड टी-20 में भी देखने को मिली जब टीम ने श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जबर्दस्त बैटिंग की। इंजमाम खुद भी बहुत कॉम्पैक्ट बल्लेबाज रहे हैं। अब इंजमाम 2017 तक उन्हें क्रिकेट के गुर सिखाएंगे।

'जुझारू' मनोज प्रभाकर : टीम इंडिया के मध्यम गति के पूर्व गेंदबाज मनोज प्रभाकर को दिसंबर, 2015 में अफगानिस्तान की गेंदबाजी को धार देने की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि टी-20 वर्ल्ड कप से पहले उनके पास समय बहुत कम था, लेकिन फिर भी उन्होंने अफगानिस्तान की गेंदबाजी में काफी सुधार किया है। प्रभाकर को जुझारू माना जाता है। वे ऐसे गेंदबाज रहे हैं, जिसने बिना किसी खास कोचिंग के ही रिवर्स स्विंग की कला सीख ली थी। इतना ही नहीं वह टीम इंडिया में ओपनर की भूमिका भी निभा चुके हैं। इस प्रकार उनका ऑलराउंडर का अनुभव निश्चित रूप से अफगानिस्तान को ऊपरी पायदान पर ले जाएगा।

अफगानिस्तान की टीम जिस तरह से आगे बढ़ रही है, उससे यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में वह वर्ल्ड की श्रेष्ठ टीमों को भी मात दे सकती है, क्योंकि छोटी और एसोसिएट टीमों में तो वह आगे निकल ही चुकी है। फील्डिंग जरूर कमजोर है, लेकिन उसके खिलाड़ी मेहनती और निडर हैं। साथ ही उनमें 'लड़ने' का जज्बा है, जो कुछ भी कर सकते हैं।

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