महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
वर्ल्ड टी-20 के पहले मैच में पिच जैसी भारतीय टीम की चाहत थी वैसी ही मिली लेकिन 47 रनों से हारे। दूसरे मैच में पाकिस्तान के खिलाफ टॉप ऑर्डर फिर फेल हुआ। पिच स्क्वेयर टर्नर थी, कोहली ने बचा लिया। तीसरे मैच में कोहली फेल हुए। पिच फिर धीमी और असमान उछाल वाली थी। यहां भगवान ने बचा लिया। तीन मैचों में लगातार एक ही गलती? बड़ा सवाल यही कि क्या अब कुछ बदलेगा, क्या कप्तान धोनी इस तोहफे में मिली जीत से सीख लेंगे।
पहली सीख : पिच को लेकर
भारत में पिच को पानी न देना और पूरी तरह से घास हटाने का नतीजा तो पहले तीन मैचों में देख लिया, क्या मोहली में एक अच्छा बल्लेबाजी ट्रैक दिखेगा? क्योंकि भारत की ताकत ऐसे ट्रैक पर बल्लेबाजी है। लेकिन अब सवाल यह भी है कि लगातार फेल हो रहे बल्लेबाजों में क्या अब बैटिंग ट्रैक पर 200 के आंकड़े को पार करने का भरोसा होगा? अगर कोहली फिर न चले तो?
दूसरी सीख : टॉप ऑर्डर पर
सलामी बल्लेबाजी नहीं चल रही। धोनी टीम में न तो बदलाव करते हैं, न इस बारे में पूछे जाने पर किसी की सुनते हैं, लेकिन साफ दिख रहा है कि शिखर धवन स्ट्रगल कर रहे हैं। सच है कि यह टीम इंडिया का बेस्ट बल्लेबाजी लाइनअप है, लेकिन अगर कुछ ठीक नहीं हो रहा तो उसे ठीक क्या नहीं किया जाना चाहिए या फिर आंखें मूंदकर उसके सही होने का इंतजार करना ही सही नीति है?
तीसरी सीख : हार्दिक पांड्या की जगह स्पिनर
पिच अगर धीमी है, उसमें असमान उछाल है या फिर वह पूरी तरह से ही स्क्वेयर टर्नर है, ऐसे में क्या हार्दिक पांड्या को बाहर बिठाकर हरभजन सिंह जैसे अनुभवी गेंदबाज को मौका नहीं दिया जाना चाहिए। हार्दिक के जज्बे, उनके टैलेंट और उनकी कमिटमेंट के सभी फ़ैन हैं लेकिन यहां बात हॉर्सेज़ फॉर कोर्सेज़ की है। जहां जिसकी जरूरत है वह टीम में होना चाहिए। अगर पिच पर थोड़ी घास है तो हार्दिक को शामिल किया जाना चाहिए।
धोनी किसी की नहीं सुनते, यह हम भी जानते हैं। जीतने पर तारीफ भी उनकी होगी और हारने पर आलोचना भी उन्हीं की होनी है यह भी हम जानते हैं, लेकिन इस खेल के साथ इतने लोगों की भावनाएं भी जुड़ी हैं। तो हमने वही कहा जो दिखा, बाकी अंतिम फैसला तो कप्तान धोनी का ही है।
पहली सीख : पिच को लेकर
भारत में पिच को पानी न देना और पूरी तरह से घास हटाने का नतीजा तो पहले तीन मैचों में देख लिया, क्या मोहली में एक अच्छा बल्लेबाजी ट्रैक दिखेगा? क्योंकि भारत की ताकत ऐसे ट्रैक पर बल्लेबाजी है। लेकिन अब सवाल यह भी है कि लगातार फेल हो रहे बल्लेबाजों में क्या अब बैटिंग ट्रैक पर 200 के आंकड़े को पार करने का भरोसा होगा? अगर कोहली फिर न चले तो?
दूसरी सीख : टॉप ऑर्डर पर
सलामी बल्लेबाजी नहीं चल रही। धोनी टीम में न तो बदलाव करते हैं, न इस बारे में पूछे जाने पर किसी की सुनते हैं, लेकिन साफ दिख रहा है कि शिखर धवन स्ट्रगल कर रहे हैं। सच है कि यह टीम इंडिया का बेस्ट बल्लेबाजी लाइनअप है, लेकिन अगर कुछ ठीक नहीं हो रहा तो उसे ठीक क्या नहीं किया जाना चाहिए या फिर आंखें मूंदकर उसके सही होने का इंतजार करना ही सही नीति है?
तीसरी सीख : हार्दिक पांड्या की जगह स्पिनर
पिच अगर धीमी है, उसमें असमान उछाल है या फिर वह पूरी तरह से ही स्क्वेयर टर्नर है, ऐसे में क्या हार्दिक पांड्या को बाहर बिठाकर हरभजन सिंह जैसे अनुभवी गेंदबाज को मौका नहीं दिया जाना चाहिए। हार्दिक के जज्बे, उनके टैलेंट और उनकी कमिटमेंट के सभी फ़ैन हैं लेकिन यहां बात हॉर्सेज़ फॉर कोर्सेज़ की है। जहां जिसकी जरूरत है वह टीम में होना चाहिए। अगर पिच पर थोड़ी घास है तो हार्दिक को शामिल किया जाना चाहिए।
धोनी किसी की नहीं सुनते, यह हम भी जानते हैं। जीतने पर तारीफ भी उनकी होगी और हारने पर आलोचना भी उन्हीं की होनी है यह भी हम जानते हैं, लेकिन इस खेल के साथ इतने लोगों की भावनाएं भी जुड़ी हैं। तो हमने वही कहा जो दिखा, बाकी अंतिम फैसला तो कप्तान धोनी का ही है।
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