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This Article is From Oct 27, 2017

मुख्यमंत्री रहते अखिलेश यादव ने विवेकाधीन कोष से बांटे 497 करोड़, सर्वाधिक रकम जियाउल हक के परिजनों को दी

सर्वाधिक रकम 50 लाख रुपये प्रतापगढ़ के कुंडा में मारे गए सीओ जियाउल हक के परिजनों को दी गई

मुख्यमंत्री रहते अखिलेश यादव ने विवेकाधीन कोष से बांटे 497 करोड़, सर्वाधिक रकम जियाउल हक के परिजनों को दी
मुख्यमंत्री रहते अखिलेश यादव ने विवेकाधीन कोष से बांटे 497 करोड़ (फाइल फोटो)
लखनऊ: अखिलेश यादव ने अपनी सरकार के दौरान मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से आर्थिक मदद के नाम पर दिल खोलकर रकम खर्च की. उन्होंने पांच साल की मियाद में 497 करोड़ रुपये खर्च किए. जबकि, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने कार्यकाल में इससे पांच गुना कम रकम ही खर्च की. सर्वाधिक रकम 50 लाख रुपये प्रतापगढ़ के कुंडा में मारे गए सीओ जियाउल हक के परिजनों को दी गई. वहीं, मदद के नाम पर दी गई दूसरी सबसे बड़ी रकम 45 लाख रुपये देश को हिलाकर रख देने वाले दादरी कांड में मारे गए अखलाक के परिजनों को दी गई. कुल मिलाकर अखिलेश ने पांच साल में 39154 लोगों की आर्थिक मदद की. यह खुलासा आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है.

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दरअसल, यह कोष मुख्यमंत्री कार्यालय में स्थापित है. इसमें मुख्यमंत्री अपने विवेक के अनुसार दैवी आपदा, दुर्घटना, सूखा या अन्य कारणों से पीडि़तों को आर्थिक सहायता देते हैं. पिछली सपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव ने पहली जनवरी 2012 से आठ नवंबर 2016 तक 497 करोड़ रुपये आर्थिक सहायता के नाम पर बांटे. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने पांच साल के कार्यकाल में इस कोष से 84.76 करोड़ रुपये ही मदद के नाम पर दिए थे. अखिलेश यादव ने कुंडा स्थित बलीपुर गांव के प्रधान नन्हे लाल और उसके भाई सुरेश के परिवार को भी 40 लाख रुपये दिये थे. ये दोनों भी डिप्टी एसपी जियाउल हक की हत्या वाले दिन ही मारे गए थे.  

रामपुर निवासी यूपी पुलिस के पूर्व कॉन्सटेबल मोहम्मद रफी को जब मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से मदद नहीं मिली तो उन्होंने सूचना के अधिकार का सहारा लिया. उन्होंने इस कोष से पांच साल में हुए खर्च का ब्योरा मांगा और अपने प्रार्थनापत्र पर क्या कार्रवाई हुई इसकी जानकारी मांगी. मोहम्मद रफी पहले एसओजी में कॉन्सटेबल थे. वर्ष 2009 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया था. उन्होंने दो साल पहले मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से आर्थिक सहायता की मांग की थी.

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यह मामला अब राज्य सूचना आयोग के पास आ गया है. आयोग ने मुख्यमंत्री कार्यालय के जन सूचना अधिकारी से इसकी पूरी जानकारी मांगी है. इस मामले की सुनवाई 15 दिसंबर को होनी है.

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