जम्मू-कश्मीर के पुलवामा आतंकी हमले (Pulwama Terror Attack) में वाराणसी का भी एक सपूत शहीद हुआ है. पुलवामा आतंकी हमले में शहीद रमेश यादव (Ramesh Yadav) को आज हजारों कंधों ने अंतिम विदाई दी और वह वंदे मातरम के उद्घोष के साथ पंचतत्व में विलीन हो गए. शहीद रमश यादव के दो भाई और एक बहन हैं. शहीद रमेश से बड़े भाई कर्नाटक के तबेले में काम करते हैं, जबकि बहन की शादी हो गई है. रमेश की 3 साल पहले शादी हुई थी, जिससे एक बेटा आयुष है. शहीद रमेश ने सीआरपीएफ में भर्ती होने के लिए 15 बार प्रयास किया था. 16वीं बार उनका सेलेक्शन हुआ था, तब गांव में खुशी का माहौल छा गया था. उनके पिता ने पूरे गांव में मिठाईयां बांटी थी.
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रमेश की याद को ताजा करते हुए उनके पिता बताते हैं कि मामूली खेती से परिवार बमुश्किल चल पाता था. उसकी भर्ती के लिए खेत को रेहन (गिरवी) पर रखकर पैसा लिया था. बस उम्मीद थी कि धीरे-धीरे रमेश कमाएगा तो खेत छुड़ा लेंगे, मगर अब वह भी सहारा छीन गया. बता दें कि रमेश हाल ही में 20 दिन की छुट्टी पर आए थे. 4 दिन पहले ही वह ड्यूटी पर गए थे.
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रमेश पत्नी से यह वादा करके गए थे कि इस बार लौटेंगे तो बेटे आयुष के पैर को डॉक्टर से दिखाएंगे. बेटे आयुष के पैर में कुछ बीमारी है. लेकिन 4 दिन पहले घर से गए रमेश की अचानक सुबह हमेशा के लिए जिंदगी से चले जाने की खबर आती है. जैसे ही यह खबर आई आम से लेकर खास तक पूरा इलाका रमेश के घर पहुंचने लगा. घर के बाहर बड़ा हुजूम लग गया. हर किसी के आंख में रमेश के लिए गम था तो जुबान पर उसकी काबिलियत की तारीफ. हर कोई अपनी तरीके से आज रमेश की हर एक छोटी बड़ी बातों को साझा करके याद कर रहा था.
शहीद रमेश का जब पार्थिव शरीर घर पहुंचा तो माहौल देखते ही बन रहा था. हजारों कंधे रमेश को घर पहुंचाने के लिए बेताब नजर आए. हर तरफ वंदे मातरम का नारा गूंज रहा था. सबके दिलों में इस घटना का दर्द था लेकिन दिमाग में गुस्सा भरा था. लोगों का गुस्सा पूरे रास्ते पार्थिव शरीर के साथ हौसले और जज्बे में बदल रहा था. गुस्सा शहीद रमेश अमर रहे के नारों में तब्दील होता जा रहा था. सड़कों के किनारे बड़े-बूढ़े, बच्चे हाथों में तिरंगा लिए रमेश अमर रहे रमेश अमर रहे के नारे लगा रहे थे. बता दें कि गुरुवार को हुए जम्मू-कश्मीर के पुलवामा आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे.