साइकिल पर लदी लकड़ियां... फिर बैलगाड़ी और ट्रैक्टर पर कटे पेड़... पहाड़ी नदी से इस तरह तस्करी की जा रही लकड़ियां और भारत के जंगलों की कटी लकड़ियों के लिए गुपचुप चल रही दर्जनों आरा मशीनें... कुछ दिन पहले की ये फोटो पर्यायवरण बचाने की मुहिम पर गंभीर सवाल खड़ा कर रही है. इसीलिए हम इसकी सच्चाई जानने के लिए भारत नेपाल के बढ़नी बार्डर पहुंचे. हम इसी बार्डर से नेपाल के कृष्णानगर गए लेकिन यहां से तस्करों के खुफिया रास्ते देखने के लिए हमने आगे का सफर मोटरसाइकिल से तय करने की कोशिश की.
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कृष्णानगर से करीब 20 किमी दूर नेपाल भारत बार्डर का अंतिम गांव भगवानपुर है. यहां भारत के जंगलों से तस्करी से लाई जाने वाली लकड़ियों के लिए इस तरह की दर्जनों आरा मशीनें गुपचुप तरीके से नदी के बेहद करीब लगाई हैं. नदी के किनारे मवेशी चराने वाले नेपाल के किसानों ने भी बताया कि लकड़ियों की तस्करी यहां से होती है. नेपाल की यही पहाड़ी नदी सूहेल देव वन्य अभ्यारण के किनारे बहती है और भारत को नेपाल से अलग भी करती है. इसीलिए ये नदी लकड़ी तस्करों के लिए मुफीद साबित हो रही है.
इसी नदी के उस तरफ सोहलेवा वन्य अभयारण्य का भांभर जंगल है. हम इस पहाड़ी नदी को पार ही कर रहे थे कि यहां दिन के उजाले में नेपाल तस्कर के कोरियर सरे आम लकड़ी की तस्करी साइकिल और खुद से करते मिले. ये सारी लकड़ियां धीरे-धीरे भारत के भांभर जंगल से नेपाल पहुंचाई जा रही हैं. बार्डर की इस पहाड़ी नदी से पहले हमने अपनी बाइक निकाली फिर हम इस नदी को पार कर भांभर के घने जंगल में पहुंचे.
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बारिश के सीजन में पहली नजर में ये जंगल हरा भरा दिख रहा है लेकिन शातिर तस्कर कैसे पेड़ को काट कर छिपाते हैं और कोरियर के जरिए धीरे धीरे नेपाल पहुंचाई जाती है. नेपाल के गांव भगवानपुर के अलावा भी लकड़ी तस्करी के कई खुफिया रास्ते हैं, जहां पुराने और बेशकीमती पेड़ों को काटने के अनोखे तरीके भी हैं. लेकिन यहां लकड़ी के तस्करों के हमले का खतरा होने के साथ साथ केवल पैदल या साइकिल से ही जा सकते हैं. हमने जोखिम लेने का फैसला किया और नेपाल के भगवानपुर गांव से करीब 40 किमी दूर भारत के बड़े भुकुवा गांव पहुंचे. यहां लाखों रुपए के साखू के पेड़ को काटने के लिए लकड़ी तस्कर ने अनोखा तरीका अपनाया है.
हम भांभर के इस घने जंगल में हैं, यहां न तो मोबाइल काम करता है और न ही यहां आने का कोई रास्ता है. हम दस किमी पैदल चलकर यहां पहुंचे है अब ये देखिए पेड़ को कैसे काटा गया है. पेड़ को कमजोर करने के लिए इसकी जड़ को तस्करों ने काट कर छोड़ दिया गया है फिर इसे नीचे जलाया जाएगा जब पेड़ कमजोर हो जाएगा तो इसे धीरे से गिराकर इस लकड़ी को नेपाल पहुंचा दिया जाएगा. यहां से कुछ ही दूर आगे बढ़ने पर हमें एक और विशालकाय पेड़ दिखा जिसे तस्करों ने जड़ के पास से जला दिया गया है ताकि ये पेड़ सूखकर गिर जाए.
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घने जंगल में हम जैसे जैसे आगे बढ़ रहे हैं कई बड़े पेड़ों की जड़े कटी मिली. कुछ को ताजा-ताजा तस्करों ने आधा काटा है और कुछ को बारिश होने के चलते थोड़ा काट कर छोड़ दिया है. साखू और शीशम की इन लकड़ियों की कीमत लाखों में होने के चलते ये जंगल के ये बेशकीमती पेड़ नेपाल के तस्करों के निशाने पर हैं. मोटर साइकिल से छिपते-छिपाते चलने के बावजूद हमारा सामना पेड़ काटने वाले तस्करों के कोरियर से भी हुआ. ये चार से पांच लोगों के ग्रुप में होते हैं. कई बार ये भागने के बजाए हमला करके वन कर्मियों को मार देते हैं.
इन तस्करों से बचते बचाते हम किसी तरह भांभर जंगल के इस जंगल की चौकी पर पहुंचे. यहां चौकी के बाहर जब्त की गई लाखों की लकड़ियां हैं और अंदर कबाड़ की शक्ल में तस्करों की साइकिल. वन विभाग के इस फारेस्ट गार्ड समेत तीन लोगों के कंधे पर 1822 हेक्टेयर जंगल की रखवाली का जिम्मा है. खुद फारेस्ट गार्ड ने बताया कि जंगल में गश्त के दौरान वो हमारी जान की गारंटी नहीं ले सकता है.
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अब आपको पता लग गया होगा कि सुहेलदेव वन्य जीव अभयारण्य की 452 वर्ग किमी है जिसमें करीब 150 किमी की सीमा नेपाल से लगती है. हालांकि पिछले सालों के आंकड़ों को देखे तो जंगल विभाग ने 2018 में सुहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण में 440 अवैध कटान के मामले दर्ज हुए थे जबकि इस साल अब तक 149 केस दर्ज किए गए हैं. इसी तरह पिछले साल 232 पेड़ कटे थे लेकिन इस साल 66 पेड़ कटने की सूचना दर्ज हुई है.
सुहेलदेव वन्य अभयारण्य के मुख्य वन संरक्षक सुजॉय बनर्जी कहते हैं कि अवैध कटान कुछ लोग संगठित तरीके से करते हैं. हम सूचना के आधार पर छापेमारी भी करते हैं लेकिन सरकार को सुहेलदेव वन्यजीव अभ्यारण पर खास ध्यान देने की जरुरत है ताकि सालों पुराने इस बेशकीमती जंगल को बचाया जा सके जो फिलहाल लकड़ी के तस्करों और बढ़ती आबादी के चलते खतरे में आ गया है.
बलरामपुर से यह रिपोर्ट हमारे सहयोगी रवीश रंजन शुक्ला ने कवर की.
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