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This Article is From Mar 12, 2025

44 साल पहले 24 दलितों की हत्या से दहल गया था UP का दिहुली गांव, अब मिला इंसाफ, 3 डकैत दोषी करार

Dihuli Massacre: 18 नवंबर 1981 की शाम छह बजे दिहुली गांव में डकैतों ने हमला कर एक मुकदमे में गवाही देने के विरोध में पूरे गांव पर गोलियां बरसाईं थीं. जिसमें 24 निर्दोष लोगों की मौत हो गई थी. आगे क्या हुआ, पढ़ें जितेंद्र किशोर की रिपोर्ट.

44 साल पहले 24 दलितों की हत्या से दहल गया था UP का दिहुली गांव, अब मिला इंसाफ, 3 डकैत दोषी करार
दिहुली नरसंहार में 44 साल बाद मिला इंसाफ.(सांकेतिक फोटो)
फिरोजाबाद:

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के जसराना थाना क्षेत्र के दिहुली गांव में हुए जघन्य नरसंहार (Dihuli Massacre) के मामले में 44 साल बाद अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. विशेष डकैती अदालत ने मंगलवार को तीन आरोपियों, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को दोषी करार दिया. उनकी सजा का ऐलान 18 मार्च को होगा.

44 साल पहले हुई थी 24 दलितों की हत्या

18 नवंबर 1981 को दिहुली गांव में एक हमला हुआ था. डकैत संतोष और राधे के गिरोह ने हमला कर 24 दलितों की हत्या कर दी थी. इस मामले में कुल 17 आरोपी नामजद थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है, जबकि एक आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अब भी फरार है. अदालत ने उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर दिया है.

तीन आरोपी दोषी करार, एक भगोड़ा

फैसले से पहले मंगलवार को मुख्य आरोपी कप्तान सिंह अदालत में हाजिर हुआ, जबकि मैनपुरी जेल में बंद रामसेवक को पुलिस ने पेश किया. तीसरे आरोपी रामपाल की ओर से हाजिरी माफी मांगी गई, जिसे अदालत ने खारिज कर 12 मार्च तक पेश होने का आदेश दिया.

रामसेवक और कप्तान सिंह को आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (जानलेवा हमला), 148 (घातक हथियारों से लैस उपद्रव), 149 (गैरकानूनी सभा), 449 (गृह अतिचार) और 450 (किसी के घर में घुसकर अपराध) में दोषी पाया गया.
वहीं, रामपाल को धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 302 (हत्या) और 216ए (अपराधियों को शरण देना) में दोषी ठहराया गया.

दिहुली गांव में कैसे हुआ था नरसंहार?

18 नवंबर 1981 की शाम छह बजे दिहुली गांव में डकैतों ने हमला किया था. संतोष और राधे के गिरोह ने एक मुकदमे में गवाही देने के विरोध में पूरे गांव पर गोलियां बरसाईं, जिसमें 24 निर्दोष लोगों की मौत हो गई. हत्या के बाद बदमाशों ने गांव में लूटपाट भी की थी.

कौन-कौन बने नरसंहार के शिकार?

इस नरसंहार में मारे गए लोगों में ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, रामदुलारी, श्रृंगारवती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, कु. शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर और प्रीतम सिंह शामिल थे.

पांच गवाहों की गवाही ने दिलाया इंसाफ

इस मामले में लायक सिंह, वेदराम, हरिनारायण, कुमर प्रसाद और बनवारी लाल गवाह बने. हालांकि अब ये सभी जिंदा नहीं हैं. लेकिन उनकी गवाही के आधार पर ही अभियोजन पक्ष ने केस को मजबूत रखा. विशेष रूप से कुमर प्रसाद ने बतौर चश्मदीद घटना का पूरा विवरण अदालत में पेश किया था. बता दें कि डसरगना संतोष और राधे समेत 13 की मौत हो चुकी है. 
 

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