Kanpur Violence: उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में जून माह में जुमे की नमाज़ में हुई हिंसा मामले में कानपुर कोर्ट ने 6 आरोपियों को सबूत न होने के कारण रिहा कर दिया है. शुरू से इन गिरफ़्तारियों को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे थे. इस मामले में पुलिस ने कुल 62 लोगों को गिरफ़्तार किया था. बिना कसूर दो महीने कानपुर जेल में रहने के बाद बुधवार को मोहम्मद शानू और शारिक कोर्ट के आदेश के बाद रिहा हो पाए. शानू पर कानपुर पुलिस ने कई आरोप लगाए लगाए थे. दंगा करने, सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने, पुलिस वालों पर हमला करने, जान से मारने की कोशिश करने जैसे आरोपों के साथ गैंगस्टर ऐक्ट के तहत गिरफ़्तार कर उन्हें जेल भेजा गया था लेकिन कोर्ट में पुलिस ने बताया कि उसके पास शानू , शारिक समेत कुल 6 आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई सुबूत नहीं है जिसके बाद कोर्ट इन सभी छह आरोपियों की रिहाई का आदेश दिया.
कोर्ट के आदेश के बाद रिहा हुए मोहम्मद शानू ने कहा," मैं तीन तारीख़ को अपने घर में था लेकिन पुलिस ने मुझे 6 तारीख़ को जबर्दस्ती उठा लिया. मेरे पास सीसीटीवी फ़ुटेज था लेकिन पुलिस ने किसी बात को नहीं सुना."62 साल के शारिक को भी पुलिस ने बिना किसी पूछताछ के जेल में बंद कर दिया था. शारिक बताते हैं, "मुझे थाने में बात करने के लिए बुलाया गया लेकिन फिर छोड़ा ही नहीं. न कुछ सुना न समझा."कानपुर हिंसा मामले से जुड़े 6 बेक़ुसूर तो कोर्ट के आदेश के बाद रिहा हो गए लेकिन अब भी ऐसे तमाम परिवार हैं जो कभी कमिश्नर के पास तो कभी डीएम के पास जाकर अपने पति/भाई/बेटे की बेगुनाही के सुबूत दे रहे हैं. ज़ुबैदा बेगम भी उनमें से एक हैं. ज़ुबैदा का कहना है कि उनके पति साउद अहमद को बिना क़ुसूर गिरफ़्तार किया गया. वे बताती हैं, "मेरे पति हिंसा के दिन ऑफ़िस में थे. हमारे पास सीसीटीवी फ़ुटेज है पर कोई नहीं सुन रहा. मेरे पति बेक़ुसूर हैं."
बता दें, 3 जून को कानपुर में जुमे की नमाज़ के बाद पैगंबर मोहम्मद पर अभद्र टिप्पणी करने वाली नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी को लेकर प्रदर्शन हुआ जो बाद में हिंसा में तब्दील हो गया था. इस मामले में यूपी पुलिस ने बाक़ायदा आरोपियों के जगह-जगह पोस्टर लगाए थे और उनकी पहचान बताने वालों के लिए इनाम की घोषणा भी की थी. प्रेस नोट के ज़रिए ऐलान किया था कि आरोपियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम और गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी लेकिन 6 बेक़ुसूरों की रिहाई पर कानपुर पुलिस मीडिया से बात करने को तैयार नहीं है. बेक़सूर पाए गए इन लोगों को आतंकवादी बनाकर जेल में डाल दिया गया था. पुलिस ने चीख़-चीख़ कर बताया कि ये दंगाई हैं पर अब जब ये बरी हो गए हैं तो सब शांत हैं. इन बेगुनाहों को जेल में डालने वाले पुलिसकर्मियों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. कोर्ट से बरी तो हो गए पर जेल में बिना किसी ज़ुर्म के बिताए गए दो महीने इन्हें कोई नहीं लौटा सकता.
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