इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाने से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए अपने महत्वपूर्ण फैसले में आवेदक की अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) याचिका को खारिज करते हुए तल्ख टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि शादी का झांसा देकर महिला का यौन शोषण करना और आखिर में उससे शादी करने से मना करना ये ऐसी प्रवृत्ति है जो समाज में बढ़ रही है इसे शुरुआत में ही खत्म कर देना चाहिए. यह समाज के खिलाफ एक गंभीर अपराध है इसलिए आवेदक किसी भी तरह की रियायत का हकदार नहीं है. यह टिप्पणी जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की सिंगल बेंच ने आवेदक प्रशांत पाल की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए की है.
मामले के अनुसार आवेदक प्रशांत पाल ने औरैया जिले के औरैया थाने में बीएनएस की धारा 115(2), 351(2), 69 के तहत दर्ज मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत की मांग की थी. FIR के मुताबिक आवेदक पर आरोप है कि उसने शादी का झूठा वादा करके एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाए और उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया. बाद में आवेदक ने महिला से शादी करने से मना कर दिया और फिर इस मामले में FIR दर्ज की गई और जांच के बाद ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई. आवेदक के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि आवेदक निर्दोष है और उसे मामले में अपनी गिरफ्तारी का डर है जबकि उसके खिलाफ कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है. आवेदक पर लगाए गए आरोप अस्पष्ट और झूठे है.
कोर्ट को यह भी बताया गया कि आवेदक ने एक आपराधिक रिट याचिका भी दायर की थी और हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 30 जुलाई 2025 के आदेश से पुलिस रिपोर्ट जमा होने तक उसे अंतरिम सुरक्षा दी थी और इस स्वतंत्रता का आवेदक ने कभी दुरुपयोग नहीं किया. कोर्ट में कहा गया कि आवेदक के पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध थे लेकिन यह कहना पूरी तरह गलत है कि आवेदक ने उससे शादी करने का कोई वादा किया था. यह भी बताया गया कि पीड़िता के खुद के बयान के अनुसार दोनों 2020 से साथ रह रहे थे और दोनों के बीच रिश्ता पांच साल तक चला. बाद में उनके बीच विवाद हो गया और आवेदक की सगाई किसी दूसरी लड़की से हो गई. यह कहना पूरी तरह गलत है कि आवेदक ने पीड़िता से शादी करने से इंकार कर दिया और उसका यौन शोषण किया गया. वकील ने कहा कि आवेदक ने उससे शादी करने का कोई वादा नहीं किया था और यह सहमति से बने रिश्ते का मामला है. पीड़िता एक बालिग महिला है और उसने आवेदक के साथ रहते हुए कभी कोई विरोध नहीं किया. अब चार्जशीट दाखिल होने के बाद आवेदक ट्रायल खत्म होने तक अग्रिम जमानत का हकदार है.
वहीं, आवेदक की याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने दलील दी कि शादी के झूठे बहाने से आरोपी आवेदक ने पांच साल की अवधि तक पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाए रखे. लेकिन आखिरकार उसकी शादी कहीं और तय हो गई और फिर भी वह कुछ अश्लील वीडियो के आधार पर पीड़िता को धमकी दे रहा था. अपराध बहुत गंभीर है और आरोपी आवेदक को अग्रिम जमानत के प्रावधानों का लाभ नहीं दिया जा सकता. पीड़िता की डॉक्टर ने उसकी मेडिकल जांच की और उसने भी पाया कि वह यौन हिंसा की शिकार थी. आरोपी आवेदक द्वारा किया गया कृत्य मामले की पीड़िता के प्रति उसके धोखेबाज इरादे को दर्शाता है.
आरोपी आवेदक ने पीड़िता का पूरा जीवन बर्बाद कर दिया जिसने इस उम्मीद में उसके साथ रिश्ता जारी रखा कि वह सही समय पर उससे शादी करेगा. जांच में सारे सबूत भी है. कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि दोनों के बीच शारीरिक संबंध कई सालों तक बने रहे जबकि पीड़िता एक बालिग लड़की थी और शुरुआत से ही उसे उस काम के नतीजे की पूरी जानकारी थी और वो आवेदक के साथ कर रही थी क्योंकि उसे उस पर पूरा भरोसा था. लेकिन रिश्ते की शुरुआत से ही आवेदक उससे शादी करने का इरादा नहीं रखता था.
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ़ वादा तोड़ने और झूठा वादा पूरा न करने में फ़र्क होता है. इसलिए कोर्ट को यह जांच करनी चाहिए कि क्या शुरुआती स्टेज में आरोपी ने शादी का झूठा वादा किया था. जहां शादी का वादा झूठा होता है और वादा करने वाले का इरादा वादा करते समय उसे निभाने का नहीं, बल्कि महिला को धोखा देकर उसे सेक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए राज़ी करना था तो यह "तथ्य की गलतफहमी" है जो महिला की "सहमति" को अमान्य कर देती है. कोर्ट ने आगे कहा कि दूसरी ओर वादे को तोड़ना झूठा वादा नहीं कहा जा सकता. झूठा वादा साबित करने के लिए वादा करने वाले का वादा करते समय उसे निभाने का कोई इरादा नहीं होना चाहिए था.
सेक्शन 375 के तहत एक महिला की "सहमति" "तथ्य की गलतफहमी" के आधार पर अमान्य हो जाती है जहां ऐसी गलतफहमी ही उस महिला के उस काम में शामिल होने का आधार थी. कोर्ट ने ऐसा हो सकता है कि पीड़िता आरोपी के प्रति अपने प्यार और जुनून की वजह से सेक्सुअल इंटरकोर्स के लिए राज़ी हो जाए न कि सिर्फ़ आरोपी द्वारा किए गए गलत बयानी की वजह से या जहाँ कोई आरोपी ऐसी परिस्थितियों के कारण जिनका वह अंदाज़ा नहीं लगा सकता था या जो उसके कंट्रोल से बाहर थी. उससे शादी नहीं कर पाया भले ही उसका ऐसा करने का पूरा इरादा था. ऐसे मामलों को अलग तरह से निपटाया जाना चाहिए.
कोर्ट ने आवेदक प्रशांत पाल की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले के तथ्यों से यह पता आरोपी आवेदक का पीड़िता के प्रति धोखे का इरादा शुरू से ही था. शुरू से ही उसका पीड़िता से शादी करने का कोई इरादा नहीं था और वह सिर्फ़ अपनी हवस पूरी कर रहा था. शादी के झूठे वादे पर उसने पीड़िता के साथ बार-बार शारीरिक संबंध बनाए. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि शादी के बहाने पीड़िता का शोषण करना और आखिर में उससे शादी करने से इंकार करना, ये ऐसी प्रवृत्तियां है जो समाज में बढ़ रही है जिन्हें शुरू में ही खत्म कर देना चाहिए. यह समाज के खिलाफ एक गंभीर अपराध है इसलिए आवेदक किसी भी तरह की रियायत का हकदार नहीं.
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