मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव का फाइल फोटो...
                                                                                                                        
                                        
                                        
                                                                                नई दिल्ली: 
                                        फ़िलहाल अगर एक खबर मीडिया में छाई हुई है तो वह है यादव परिवार की लड़ाई यानी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच हुई जंग. शुक्रवार को मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव को पार्टी से निष्कासित कर दिया था और फिर आज (शनिवार को) उनका निष्कासन वापस ले लिया गया. दरअसल, यह तनातनी पिछले कुछ महीने से चल रही है. चलिए एक बार नज़र डालते है कैसे इनके बीच रिश्ते बिगड़ते चले गए...
-21 जून को मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हुआ. शिवपाल सिंह यादव की मौजूदगी में ऐसा किया गया, लेकिन अखिलेश यादव इस विलय से खुश नहीं थे. वह नहीं चाह रहे थे कि कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो. फिर 25 जून को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कौमी एकता दल का विलय रद्द कर दिया और यह जानकारी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव दी. यहीं से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच मतभेद शुरू हुए. मुलायम सिंह यादव कौमी एकता दल की विलय चाह रहे थे, जबकि अखिलेश यादव इसके खिलाफ थे. शिवपाल सिंह यादव ने इस्तीफ़ा देने की बात कहीं, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव को इस्तीफ़ा देने से रोका.
-13 सितंबर को अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के करीबी माने जाने वाले दीपक सिंघल को राज्य के मुख्य सचिव पद से हटा दिया. इससे पहले 11 सिंतबर को अखिलेश यादव ने दो मंत्रियों को भी हटा दिया था. यह दोनों मंत्री मुलायम सिंह यादव के क़रीबी थे. इस निर्णय से मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव खुश नहीं थे. शिवपाल यादव ने इस्तीफ़ा देने की धमकी भी दे दी थी. फिर 13 सितंबर को मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया और शिवपाल यादव को अध्यक्ष के रूप में चुना. फिर इसी दिन यानी 13 सिंतबर को अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव से कई विभाग छीन लिए.
-19 सितंबर को अखिलेश यादव ने बताया कि शिवपाल यादव प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे. अखिलेश यादव को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया. शिवपाल के सभी विभाग भी लौटाए गए. उस वक्त अखिलेश यादव ने शिवपाल के घर पहुंचकर उन्हें बधाई दी और कहा था वह अध्यक्ष के नहीं, बल्कि चाचा के घर गए थे.
-19 सितंबर को शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव के भांजे और विधान परिषद के सदस्य अरविंद प्रताप यादव को पार्टी से निकाल दिया, फिर शिवपाल यादव ने अखिलेश के करीबी माने जाने वाले कुछ नेताओं को पार्टी से निकाल दिया, जिसमें युवा संगठन के अध्यक्ष भी शामिल थे. इन नेताओं के खिलाफ मुलायम सिंह यादव के खिलाफ बयानबाजी करने के आरोप लगे.
-26 सिंतबर को अखिलेश यादव ने बर्खास्त किए गए मंत्रियों को पार्टी में वापस लिया. फिर 7 अक्टूबर को कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हुआ. 24 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव और उनके करीबी तीन मंत्रियों को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था फिर इससे नाराज़ होकर शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले रामगोपाल यादव को पार्टी से छह साल के लिए बर्खास्त कर दिया.
-24 अक्टूबर को अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव के बीच का रिश्ता और बिगड़ गया, जब शिवपाल यादव ने अखिलेश पर आरोप लगाया कि अखिलेश ने नई पार्टी बनाने की बात कही थी. 24 अक्टूबर को हुई पार्टी की बैठक में अखिलेश और मुलायम एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए दिखे. इस बैठक में मुलायम सिंह के कहने पर अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव का पैर छुए और गले भी मिले, लेकिन थोड़ी देर के बाद उनके बीच की कड़वाहट भी दिखी.
-17 नवंबर को रामगोपाल यादव को मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में वापस ले लिया. 26 दिसंबर को अखिलेश यादव ने पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को 403 उम्मीदवारों की अपनी सूची सौंपी थी. इससे पहले शिवपाल सिंह यादव भी 175 उम्मीदवारों की सूची सौंप चुके थे. बस कुछ नामों को छोड़कर दोनों की लिस्ट अलग थी.
-28 दिसंबर को मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा चुनावों के लिए 325 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी और 78 उम्मीदवारों की सूची विचार-विमर्श के बाद जारी करने की बात कही.. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद मुख्यमंत्री मौजूद नहीं थे और यह माना जा रहा था कि अखिलेश अपनी लिस्ट जारी करेंगे.
-29 दिसंबर को अखिलेश यादव ने अपनी तरफ से 235 उम्मीदवारों की एक समानांतर लिस्ट जारी की थी, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक घोषणा तो नहीं की गई. सोशल मीडिया में चल रही इस लिस्ट ने मीडिया का ध्यान आकर्षित किया और मीडिया में इस लिस्ट के बारे में काफी चर्चाएं हुईं. इस लिस्ट में कई ऐसे नेतायों के नाम काट दिए गए थे, जो शिवपाल यादव के करीबी थे.
-30 दिसंबर को मुलायम सिंह यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव को पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया था. मुलायम अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बार-बार कह रहे थे कि रामगोपाल यादव अखिलेश यादव के राजनीतिक करियर को ख़त्म कर रहे हैं.
- फिर 31 दिसंबर को समाजवादी पार्टी के कई बड़े नेताओं के बीच बैठक हुई, जिसमें मुलायम सिंह यादव, आज़म खां, अबु आज़मी जैसे नेता मौजूद थे. फिर इस बैठक के बाद शिवपाल सिंह यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव का निष्कासन वापस ले लिया गया है.
                                                                        
                                    
                                -21 जून को मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हुआ. शिवपाल सिंह यादव की मौजूदगी में ऐसा किया गया, लेकिन अखिलेश यादव इस विलय से खुश नहीं थे. वह नहीं चाह रहे थे कि कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो. फिर 25 जून को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कौमी एकता दल का विलय रद्द कर दिया और यह जानकारी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव दी. यहीं से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच मतभेद शुरू हुए. मुलायम सिंह यादव कौमी एकता दल की विलय चाह रहे थे, जबकि अखिलेश यादव इसके खिलाफ थे. शिवपाल सिंह यादव ने इस्तीफ़ा देने की बात कहीं, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव को इस्तीफ़ा देने से रोका.
-13 सितंबर को अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के करीबी माने जाने वाले दीपक सिंघल को राज्य के मुख्य सचिव पद से हटा दिया. इससे पहले 11 सिंतबर को अखिलेश यादव ने दो मंत्रियों को भी हटा दिया था. यह दोनों मंत्री मुलायम सिंह यादव के क़रीबी थे. इस निर्णय से मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव खुश नहीं थे. शिवपाल यादव ने इस्तीफ़ा देने की धमकी भी दे दी थी. फिर 13 सितंबर को मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया और शिवपाल यादव को अध्यक्ष के रूप में चुना. फिर इसी दिन यानी 13 सिंतबर को अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव से कई विभाग छीन लिए.
-19 सितंबर को अखिलेश यादव ने बताया कि शिवपाल यादव प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे. अखिलेश यादव को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया. शिवपाल के सभी विभाग भी लौटाए गए. उस वक्त अखिलेश यादव ने शिवपाल के घर पहुंचकर उन्हें बधाई दी और कहा था वह अध्यक्ष के नहीं, बल्कि चाचा के घर गए थे.
-19 सितंबर को शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव के भांजे और विधान परिषद के सदस्य अरविंद प्रताप यादव को पार्टी से निकाल दिया, फिर शिवपाल यादव ने अखिलेश के करीबी माने जाने वाले कुछ नेताओं को पार्टी से निकाल दिया, जिसमें युवा संगठन के अध्यक्ष भी शामिल थे. इन नेताओं के खिलाफ मुलायम सिंह यादव के खिलाफ बयानबाजी करने के आरोप लगे.
-26 सिंतबर को अखिलेश यादव ने बर्खास्त किए गए मंत्रियों को पार्टी में वापस लिया. फिर 7 अक्टूबर को कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हुआ. 24 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव और उनके करीबी तीन मंत्रियों को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था फिर इससे नाराज़ होकर शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले रामगोपाल यादव को पार्टी से छह साल के लिए बर्खास्त कर दिया.
-24 अक्टूबर को अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव के बीच का रिश्ता और बिगड़ गया, जब शिवपाल यादव ने अखिलेश पर आरोप लगाया कि अखिलेश ने नई पार्टी बनाने की बात कही थी. 24 अक्टूबर को हुई पार्टी की बैठक में अखिलेश और मुलायम एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए दिखे. इस बैठक में मुलायम सिंह के कहने पर अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव का पैर छुए और गले भी मिले, लेकिन थोड़ी देर के बाद उनके बीच की कड़वाहट भी दिखी.
-17 नवंबर को रामगोपाल यादव को मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में वापस ले लिया. 26 दिसंबर को अखिलेश यादव ने पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को 403 उम्मीदवारों की अपनी सूची सौंपी थी. इससे पहले शिवपाल सिंह यादव भी 175 उम्मीदवारों की सूची सौंप चुके थे. बस कुछ नामों को छोड़कर दोनों की लिस्ट अलग थी.
-28 दिसंबर को मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा चुनावों के लिए 325 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी और 78 उम्मीदवारों की सूची विचार-विमर्श के बाद जारी करने की बात कही.. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद मुख्यमंत्री मौजूद नहीं थे और यह माना जा रहा था कि अखिलेश अपनी लिस्ट जारी करेंगे.
-29 दिसंबर को अखिलेश यादव ने अपनी तरफ से 235 उम्मीदवारों की एक समानांतर लिस्ट जारी की थी, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक घोषणा तो नहीं की गई. सोशल मीडिया में चल रही इस लिस्ट ने मीडिया का ध्यान आकर्षित किया और मीडिया में इस लिस्ट के बारे में काफी चर्चाएं हुईं. इस लिस्ट में कई ऐसे नेतायों के नाम काट दिए गए थे, जो शिवपाल यादव के करीबी थे.
-30 दिसंबर को मुलायम सिंह यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव को पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया था. मुलायम अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बार-बार कह रहे थे कि रामगोपाल यादव अखिलेश यादव के राजनीतिक करियर को ख़त्म कर रहे हैं.
- फिर 31 दिसंबर को समाजवादी पार्टी के कई बड़े नेताओं के बीच बैठक हुई, जिसमें मुलायम सिंह यादव, आज़म खां, अबु आज़मी जैसे नेता मौजूद थे. फिर इस बैठक के बाद शिवपाल सिंह यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव का निष्कासन वापस ले लिया गया है.
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