विज्ञापन

क्या 2 करोड़ की बचत रिटायरमेंट के बाद 1 लाख मंथली खर्च के लिए काफी है? एक्सपर्ट का जवाब

Retirement Planning Calculator: रिटायरमेंट प्लानिंग करते समय आपको यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि, महंगाई से खर्चे बढ़ेंगे, ब्याज दरें बदल सकती हैं, और मार्केट के उतार-चढ़ाव से आपकी सेविंग  पर असर पड़ सकता है.

क्या 2 करोड़ की बचत रिटायरमेंट के बाद 1 लाख मंथली खर्च के लिए काफी है? एक्सपर्ट का जवाब
Retirement Planning: रिटायरमेंट के बाद कई तरह के खतरे आपकी फाइनेंशियल सिक्योरिटी पर असर डाल सकते हैं.

रिटायरमेंट से जुड़े कई सवाल हमारे जहन में आते हैं. हाल ही में रिटायरमेंट प्लानिंग से जुड़े ऐसे ही एक सवाल का जवाब वित्तीय सलाहकार बसवराज टोनगट्टी (Basavaraj Tonagatti) ने दिया. सवाल था कि क्या ₹2 करोड़ की बचत भारत में ₹1 लाख मासिक खर्च के लिए काफी है?

अपने यूट्यूब वीडियो में उन्होंने बताया कि इसके लिए सिर्फ सिंपल कैलकुलेशन करना काफी नहीं है, क्योंकि रिटायरमेंट के बाद कई तरह के खतरे आपकी फाइनेंशियल सिक्योरिटी पर असर डाल सकते हैं.

सिंपल कैलकुलेशन क्या कहती है?

मान लीजिए किसी रिटायर व्यक्ति के पास ₹2 करोड़ हैं और उसका मासिक खर्च ₹1 लाख यानी ₹12 लाख सालाना है. अगर यह रकम बैंक डिपॉजिट जैसे प्रोडक्ट में लगाई जाए जो 6% सालाना ब्याज दे रहा हो, तो ₹2 करोड़ पर करीब ₹12 लाख हर साल मिलेंगे. इस तरह पहली नजर में देखने पर लगता है कि इससे रिटायर्ड व्यक्ति की वित्तीय जरूरतें पूरी हो जाएंगी.

टोनगट्टी ने बताए 3 बड़े रिस्क

महंगाई का खतरा (Inflation Risk)

टोनगट्टी कहते हैं कि यह कैलकुलेशन उन कई खतरों को नजरअंदाज करती है जो लंबे समय की वित्तीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं. पहला है महंगाई का खतरा. लंबे समय में घर का खर्च बढ़ेगा, जिसका मतलब है कि सालाना ₹12 लाख वही लाइफ स्टाइल बनाए रखने के लिए काफी नहीं होगा. अगर महंगाई को कैलकुलेशन के समय ध्यान में नहीं रखा गया तो रिटायर व्यक्ति की परचेसिंग पावर (Purchasing Power) धीरे-धीरे घटने लगेगी. इससे खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है या फिर बैंक में रखी रकम का इस्तेमाल करना पड़ सकता है.

पुनर्निवेश का खतरा (Reinvestment Risk)

दूसरा है, रीइन्वेस्टमेंट का खतरा (Reinvestment Risk). जब कोई रिटायर व्यक्ति फिक्स्ड डिपॉजिट या इसी तरह के साधनों पर निर्भर होता है, तो रीइन्वेस्टमेंट के समय ब्याज दर पहले से कम हो सकती है. इससे सालाना रिटर्न घट सकता है, जिससे खर्च और इनकम के बीच अंतर पैदा हो जाएगा. यानी भविष्य में सालाना इनकम घटने से खर्च पूरे करना मुश्किल हो सकता है.

रिटर्न के क्रम का खतरा (Sequence of Returns Risk)

टोनगट्टी ने निवेशकों के लिए सीक्वेंस ऑफ रिटर्न रिस्क (Sequence of Returns Risk) की ओर भी इशारा किया. उन्होंने समझाया कि भले ही कोई प्रोडक्ट औसतन 6% रिटर्न देता है, लेकिन मासिक या सालाना रिटर्न में उतार-चढ़ाव हो सकता है. अगर रिटायरमेंट के शुरुआती सालों में रिटर्न कम हुआ, तो रिटायर व्यक्ति को अपने मूलधन (Principal) का इस्तेमाल करना पड़ सकता है, जिससे कॉर्पस जल्दी खत्म होगा और फंड की उम्र (Longevity) घट जाएगी.

टोनगट्टी कहते हैं इसलिए रिटायरमेंट कॉर्पस आपकी जरूरतों के हिसाब से काफी है या नहीं इसकी कैलकुलेशन इन सभी खतरों को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए.

यानी सिर्फ इतना देखना कि 6% ब्याज से ₹12 लाख मिलेंगे काफी नहीं है. रिटायरमेंट प्लानिंग करते समय आपको यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि, महंगाई से खर्चे बढ़ेंगे, ब्याज दरें बदल सकती हैं, और मार्केट के उतार-चढ़ाव से आपकी सेविंग  पर असर पड़ सकता है. इसलिए बसवराज टोनगट्टी के मुताबिक रिटायरमेंट की योजना बनाते समय इन सभी रिस्क को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com