इलेक्ट्रिक कारों का जमाना आने वाला है. सरकार की ओर से प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए इलेक्ट्रिक कारों को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि देश की निर्भरता पेट्रोल और डीजल पर कम हो. इन कारों को बढ़ावा देने के पीछे सरकार की दोहरी मानसिकता है. एक तरफ सरकार बढ़ते प्रदूषण का हल देख रही है और दूसरी तरफ इससे विदेशी मुद्रा की बचत देख रही है. इसलिए इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (Electric Vehicles) चर्चा में बने हुए हैं. इलेक्ट्रिक बाइक से लेकर इलेक्ट्रिक कार तक, इन्हें बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी स्कीम्स (Subsidy Schemes) भी चलाई जा रही हैं.
हाल में हुई एक स्टडी के अनुसार, स्थिति ठीक इसके उलट है. IIT कानपुर की एक स्टडी में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं. इस स्टडी के अनुसार, अन्य वाहनों की तुलना में बैटरी इलेक्ट्रिक कारें (BEVs) में 15-50% अधिक ग्रीनहाउस गैसों (Green House Gases) का उत्सर्जन करती हैं.
3 कैटेगरी की कारों पर स्टडी
जापान के एक संगठन (NEDO) की मदद से IIT कानपुर ने ये स्टडी की है. इस स्टडी में वाहनों को 3 कैटेगरी में बांटा गया-
- पारंपरिक कारें
- इलेक्ट्रिक कारें
- हाइब्रिड कारें
तीनों प्रकार के वाहनों के लाइफ साइकिल एनालिसिस (LCA) और ऑनरशिप की कुल लागत (TCO) का कैल्कुलेशन किया गया.
IIT की स्टडी ने इस दावे को चुनौती दी है कि इलेक्ट्रिक कारें, हाइब्रिड कारों और पारंपरिक इंटरनल कंबशन इंजन (ICE) कारों की तुलना में पर्यावरण के अधिक अनुकूल हैं.
तीनों तरह के वाहन एक-दूसरे से कितने अलग?
सबसे पहले तीनों तरह के वाहनों के बारे में समझ लीजिए. पारंपरिक इंजन वाली कारें, जो पेट्रोल और डीजल से चलती हैं. इलेक्ट्रिक कारें, जिन्हें चलाने के लिए पूरी तरह बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है. बिजली से बैटरी चार्ज होती है और फिर बैटरी से कार चलती है.
वहीं, हाइब्रिड कारों में डीजल या पेट्रोल इंजन के साथ एक 'बैटरी पैक' का इस्तेमाल किया जाता है, जो इलेक्ट्रिक मोटर को पावर देता है. दोनों तरह की तकनीकों से कार को कंबाइंड पावर मिलती है. इसमें कार को कुछ दूरी तक 'फुल EV मोड' पर भी चलाया जा सकता है.
स्टडी में क्या-क्या सामने आया?
- IIT कानपुर की इंजन रिसर्च लैब की स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, हाइब्रिड और पारंपरिक इंजन कारों की तुलना में इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण, इस्तेमाल और स्क्रैपिंग में 15 से 50% अधिक ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का उत्पादन हो रहा है.
- प्रोफेसर अविनाश अग्रवाल के नेतृत्व में की गई स्टडी कहती है कि बैटरी इलेक्ट्रिक कार (BEV) अन्य वाहनों की तुलना में विभिन्न श्रेणियों में 15-50% अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं.
- IIT कानपुर की इस स्टडी में वाहनों का प्रति किलोमीटर एनालिसिस करने पर पता चला कि इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की कीमत, मेंटेनेंस और इंश्योरेंस भी 15-60% तक महंगा है.
- स्टडी से यह भी पता चला है कि हाइब्रिड इलेक्ट्रिक कारें सबसे अधिक पर्यावरण के अनुकूल हैं. पारंपरिक इंजन वाली कारों की तुलना में हाइब्रिड कारों में प्रति लीटर डेढ़ से दो गुना माइलेज मिलता है.
चार्जिंग बिजली से, बिजली कोयले से
इस स्टडी में कहा गया, 'बैटरी इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में बैटरी को बिजली से चार्ज करना पड़ता है, जबकि वर्तमान में देश में 75% बिजली कोयले से पैदा होती है और ये कोयला कार्बन-डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन करता है. हाइब्रिड और पारंपरिक कारों की तुलना में बैटरी कारों को खरीदने, उपयोग करने और बनाए रखने की लागत प्रति किमी 15-60% अधिक है.'
हाइब्रिड कारों को बढ़ावा दे सरकार
हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (HEV) अन्य दो श्रेणियों के वाहनों की तुलना में कम से कम GHG का उत्सर्जन करते हैं, लेकिन कारों की अन्य दो श्रेणियों की तुलना में थोड़े अधिक महंगे हैं. हाइब्रिड कारों की कीमत ज्यादा होने के पीछे एक कारण सरकार द्वारा इस पर लगाया जाने वाला ऊंचा टैक्स भी है.
- IIT की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के बावजूद बैटरी इलेक्ट्रिक कारों को कम टैक्स और खरीदारों को अन्य लाभों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा रहा है.
- रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि अगर सरकार क्लीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना चाहती है, तो हाइब्रिड कारों पर बैटरी वाहनों के बराबर टैक्स लगाया जाना चाहिए.
प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि निजी इस्तेमाल के लिए पारंपरिक इंजन वाली कार, बैटरी से चलने वाली कार से सस्ती है. लेकिन टैक्सी ऑपरेटर्स के लिए बैटरी से चलने वाली कार अधिक कुशल है. जबकि हाईब्रिड वाहन पर्यावरण के लिहाज से सबसे बेहतर होते हैं.
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