आज भी खरे हैं तालाब
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...और इस तरह जलवायु परिवर्तन के प्रश्नों पर बनता गया मेरा ज्ञान तंत्र
- Thursday July 4, 2019
- रवीश कुमार
नदियों और जल के बारे में अनुपम मिश्र से कितना कुछ जाना. उनके संपर्क के कारण इस विषय से जुड़े कई बेहतरीन लोगों से मिला. चंडी प्रसाद भट्ट जी के संपर्क में आया, उनके काम को जाना. अनुपम जी के कारण ही ऐसे कई लोगों को जाना जो इस समस्या की आहट को पहले पहचान चुके थे और बचाने की पहल कर रहे थे. 'आज भी खरे हैं तालाब' का मुक़ाबला नहीं.
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एक लोकक्षति : अनुपम मिश्र का जाना
- Monday December 26, 2016
- विजय बहादुर सिंह
अनुपम का जाना उनके घर-परिवार, स्वयं मेरे लिए भी उतनी बड़ी क्षति नहीं, जितनी इस दुनिया और वर्तमान सभ्यता के लिए है. पुराणों में जो हम भगीरथ आदि युगान्तरकारी महान पुरुषों के बारे में पढ़ते हैं, हमारे आज के जमाने में अनुपम उसी वंश और गोत्र के थे.
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"जो समाज ने किया, उसे शब्दों में पिरोने वाला महज़ क्लर्क हूं मैं..."
- Tuesday December 20, 2016
- राकेश दीवान
हमारे समाज को अभी अनुपम की कम से कम 20 साल और ज़रूरत थी, क्योकि जो काम उन्होंने शुरू किया था, अब जाकर समाजों, सरकारों, नीति निर्माताओं और मीडिया ने समझना शुरू किया है... ऐसे समय में अनुपम जैसे लोगों की ज़्यादा ज़रूरत थी, ताकि उनकी पहल मूर्त रूप ले सके...
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जीवित आदर्श का साथ अचानक छूट जाना...
- Tuesday December 20, 2016
- सुधीर जैन
उनके लिए कोई उपमा नहीं सोची जा सकती. वह वाकई अनुपम थे. उनसे मेरी पहचान प्रभाष जोशी ने करवाई थी. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के लिए भारतीय जल प्रबंधन पर शोध के सिलसिले में अनुपम जी से पहली मुलाकात हुई, और फिर उनसे राग हो गया.
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अनुपम मिश्र : खुद भी उतने खरे, जितने उनके तालाब...
- Tuesday December 20, 2016
- राकेश कुमार मालवीय
अनुपम हमारे लिए बहुत कुछ छोड़ गए हैं. एक जीवनशैली, एक लेखनशैली, एक विचारशैली, एक व्यक्तित्वशैली. वह हमें इस दौर में भी कभी निराश नहीं करते. हमेशा उम्मीद बंधाते हैं.
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मैं अनुपम मिश्र को मिस कर रहा हूं...
- Monday December 19, 2016
- रवीश कुमार
अनुपम मिश्र को खूब पढ़ा है. तीन-चार किताबों को कई बार पढ़ा है. जब भी किताबों से धूलों की विदाई करता हूं, एक बार याद कर लेता हूं. जब भी लगता है कि भाषा बिगड़ रही है तो 'गांधी मार्ग' और 'आज भी खरे हैं तालाब' पढ़ लेता था. उनकी भाषा हिंसा रहित भाषा थी, चिन्ता रहित भाषा थी, आक्रोश रहित भाषा थी. हम सबकी भाषा में यह गुण नहीं हैं. इसीलिए वे अनुपम थे, हम अनुपम नहीं हैं. वे चले गए हैं.
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पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र के निधन पर उमा भारती ने किया शोक व्यक्त
- Monday December 19, 2016
- एजेंसियां
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने जाने-माने पर्यावरणविद् और गांधीवादी चिंतक अनुपम मिश्र के निधन पर शोक व्यक्त किया है.
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अनुपम मिश्र मौजूदा सामाजिक पर्यावरण में ओजोन परत सरीखे
- Monday December 19, 2016
- प्रियदर्शन
अनुपम मिश्र स्मार्टफोन और इंटरनेट के इस दौर में चिट्ठी-पत्री और पुराने टेलीफोन के आदमी थे. लेकिन वे ठहरे या पीछे छूटे हुए नहीं थे. वे बड़ी तेजी से हो रहे बदलावों के भीतर जमे ठहरावों को हमसे बेहतर जानते थे.
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देश में पर्यावरण पर काम शुरू करने वाले पहले शख्स और गांधीवादी अनुपम मिश्र नहीं रहे
- Monday December 19, 2016
- Reported by: इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस
प्रख्यात पर्यावरणविद् वयोवृद्ध और गांधीवादी अनुपम मिश्र नहीं रहे. उन्होंने सोमवार तड़के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली. वह 68 वर्ष के थे. अनुपम मिश्र के परिवार के एक करीबी सूत्र ने बताया कि मिश्र पिछले साल भर से कैंसर से पीड़ित थे.
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...और इस तरह जलवायु परिवर्तन के प्रश्नों पर बनता गया मेरा ज्ञान तंत्र
- Thursday July 4, 2019
- रवीश कुमार
नदियों और जल के बारे में अनुपम मिश्र से कितना कुछ जाना. उनके संपर्क के कारण इस विषय से जुड़े कई बेहतरीन लोगों से मिला. चंडी प्रसाद भट्ट जी के संपर्क में आया, उनके काम को जाना. अनुपम जी के कारण ही ऐसे कई लोगों को जाना जो इस समस्या की आहट को पहले पहचान चुके थे और बचाने की पहल कर रहे थे. 'आज भी खरे हैं तालाब' का मुक़ाबला नहीं.
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एक लोकक्षति : अनुपम मिश्र का जाना
- Monday December 26, 2016
- विजय बहादुर सिंह
अनुपम का जाना उनके घर-परिवार, स्वयं मेरे लिए भी उतनी बड़ी क्षति नहीं, जितनी इस दुनिया और वर्तमान सभ्यता के लिए है. पुराणों में जो हम भगीरथ आदि युगान्तरकारी महान पुरुषों के बारे में पढ़ते हैं, हमारे आज के जमाने में अनुपम उसी वंश और गोत्र के थे.
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"जो समाज ने किया, उसे शब्दों में पिरोने वाला महज़ क्लर्क हूं मैं..."
- Tuesday December 20, 2016
- राकेश दीवान
हमारे समाज को अभी अनुपम की कम से कम 20 साल और ज़रूरत थी, क्योकि जो काम उन्होंने शुरू किया था, अब जाकर समाजों, सरकारों, नीति निर्माताओं और मीडिया ने समझना शुरू किया है... ऐसे समय में अनुपम जैसे लोगों की ज़्यादा ज़रूरत थी, ताकि उनकी पहल मूर्त रूप ले सके...
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जीवित आदर्श का साथ अचानक छूट जाना...
- Tuesday December 20, 2016
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उनके लिए कोई उपमा नहीं सोची जा सकती. वह वाकई अनुपम थे. उनसे मेरी पहचान प्रभाष जोशी ने करवाई थी. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के लिए भारतीय जल प्रबंधन पर शोध के सिलसिले में अनुपम जी से पहली मुलाकात हुई, और फिर उनसे राग हो गया.
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अनुपम मिश्र : खुद भी उतने खरे, जितने उनके तालाब...
- Tuesday December 20, 2016
- राकेश कुमार मालवीय
अनुपम हमारे लिए बहुत कुछ छोड़ गए हैं. एक जीवनशैली, एक लेखनशैली, एक विचारशैली, एक व्यक्तित्वशैली. वह हमें इस दौर में भी कभी निराश नहीं करते. हमेशा उम्मीद बंधाते हैं.
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मैं अनुपम मिश्र को मिस कर रहा हूं...
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अनुपम मिश्र को खूब पढ़ा है. तीन-चार किताबों को कई बार पढ़ा है. जब भी किताबों से धूलों की विदाई करता हूं, एक बार याद कर लेता हूं. जब भी लगता है कि भाषा बिगड़ रही है तो 'गांधी मार्ग' और 'आज भी खरे हैं तालाब' पढ़ लेता था. उनकी भाषा हिंसा रहित भाषा थी, चिन्ता रहित भाषा थी, आक्रोश रहित भाषा थी. हम सबकी भाषा में यह गुण नहीं हैं. इसीलिए वे अनुपम थे, हम अनुपम नहीं हैं. वे चले गए हैं.
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पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र के निधन पर उमा भारती ने किया शोक व्यक्त
- Monday December 19, 2016
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केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने जाने-माने पर्यावरणविद् और गांधीवादी चिंतक अनुपम मिश्र के निधन पर शोक व्यक्त किया है.
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अनुपम मिश्र मौजूदा सामाजिक पर्यावरण में ओजोन परत सरीखे
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अनुपम मिश्र स्मार्टफोन और इंटरनेट के इस दौर में चिट्ठी-पत्री और पुराने टेलीफोन के आदमी थे. लेकिन वे ठहरे या पीछे छूटे हुए नहीं थे. वे बड़ी तेजी से हो रहे बदलावों के भीतर जमे ठहरावों को हमसे बेहतर जानते थे.
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देश में पर्यावरण पर काम शुरू करने वाले पहले शख्स और गांधीवादी अनुपम मिश्र नहीं रहे
- Monday December 19, 2016
- Reported by: इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस
प्रख्यात पर्यावरणविद् वयोवृद्ध और गांधीवादी अनुपम मिश्र नहीं रहे. उन्होंने सोमवार तड़के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली. वह 68 वर्ष के थे. अनुपम मिश्र के परिवार के एक करीबी सूत्र ने बताया कि मिश्र पिछले साल भर से कैंसर से पीड़ित थे.
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