Rakesh Malviya Blog
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भोपाल में फिर चल गया रंग विदूषक का ‘तुक्का’
- Thursday September 7, 2023
- Rakesh Kumar Malviya
हम भले ही वैश्विक दुनिया में आज जी रहे हों लेकिन स्थानीयता का रस हमेशा हमें गुदगुदाता रहेगा। तुक्के पे तुक्का नाटक फिर से इसी एक बात को स्थापित करता है. भाषा, किरदार, कलाकारों की नाम, दैहिक गतिविधियों का प्रयोग और उपमाएं देख-सुनकर लगता है कि हमारे ही आसपास का किस्सा तो चल रहा है.
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सवालों में अर्थव्यवस्था और स्वदेशी पर विचार
- Monday August 26, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
सौ साल के विकास के बाद आज जब हर दिन बाजार में मंदी की खबरें हमें डराती हैं, हर दिन नौकरी जाने की खबरें अखबार के पन्नों पर अंदर डर-डरकर, छिपा-छिपाकर छापी जाती हों, शेयर बाजार के उठती-गिरती रेखाओं से धड़कनें सामान्य गति से नहीं चल रही हों, उन परिस्थितियों में क्या केवल सरकार के राहत पैकेज भर को एक उचित इलाज माना जाना चाहिए, जैसा वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने दो दिन पहले प्रस्तुत किया और गिरते बाजार को राहत देने की कोशिश की. निश्चित ही आज की परिस्थितियों में सौ साल पहले की गांधी की बातें आपको अप्रासंगिक लग सकती हैं, लेकिन पूंजीवाद को अपनाकर भी यदि आप आज अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत होने के बारे में आश्वस्त नहीं हैं, तो एक बार यह भी जरूर सोचिएगा कि गांधी सौ साल पहले क्या कुछ कह रहे थे.
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क्या स्कूल में श्रम करना अपराध है...?
- Tuesday July 30, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
बुनियादी तालीम इस जमाने में बीते दिनों की बात ही लगती है, क्योंकि इसमें श्रम पर जोर दिया गया है. खेती, किसानी, साफ-सफाई, खाना बनाने, सिलाई, कढ़ाई, चित्रकारी और बहुत सारी गतिविधियों पर जोर दिया गया है, अब ये काम यदि स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर लिए जाएं, तो अख़बार या टीवी चैनल की ख़बर बनते देर नहीं लगेगी.
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दस साल में बच्चों के बजट पर सबसे कम प्रावधान
- Tuesday July 16, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
जब हम बच्चों के लिए खास बजट की बात करते हैं तो उसका मतलब क्या है? उसका मतलब दो दर्जन से अधिक विभागों से जुड़ी उन 89 योजनाओं से है जो सीधे तौर पर देश की चालीस प्रतिशत आबादी यानी बच्चों से जाकर जुड़ती है. अच्छी बात है कि इसको अलग करके देखा जाता है यानी कि एक पूरा दस्तावेज ही बच्चों के कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर आधारित होता है. भारी बहुमत लेकर संसद पहुंची बीजेपी सरकार ने 5 जुलाई को जो बजट पेश किया उसमें चालीस प्रतिशत आबादी यानी बच्चों का हिस्सा केवल 3.29 प्रतिशत है. भारत के कुल 27,86,349 करोड़ रुपये के बजट में से 91,644.29 करोड़ रुपये बाल कल्याण के लिए आवंटित किए गए हैं.
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जब सिर्फ दो दिन जंगल जाने से हो जाता था शादी का इंतज़ाम...
- Friday June 28, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
अब यह सुनने में थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन जंगल से सटे एक गांव के उस बुजुर्ग के मुंह से निकली यह सच्चाई हमें बताती है कि परतंत्र होने का मतलब ऐसा भी होता है. गर्मी के चलते तकरीबन सूख चुके एक कुएं के ठीक बाजू में एक पेड़ की छांव तले जब बातचीत के लिए गांव के कुछ लोग जमा हुए, तो एक व्यक्ति की नई सफेद बंडी, लंबा सफेद गमछा, जिसे लुंगी की तरह लपेटा गया था, में हल्दी से पुते शरीर और उनींदी आंखों को देखकर ही समझ में आ रहा था कि पिछली रात ही उनके घर में विवाह समारोह हुआ है.
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बच्चों की जान बचाने के लिए गंभीरता से सोचना होगा...
- Thursday June 20, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
दोष केवल सरकार पर, डॉक्टरों पर और अस्पताल पर थोप देना भी अपने पर उठे सवालों से बचना होगा, व्यवस्था पर सवाल तो उतने गंभीर हैं ही, लेकिन उन्हें उठाने से पहले जरा एक बार खुद से पूछिएगा. जब आप एक मुल्क बनाने की बात करते हैं, तो उसमें बच्चे कहां होते हैं, उनके लिए कितना स्थान होता है, उनके लिए कितनी नीति-नियम और प्राथमिकताएं होती हैं, क्या आप बच्चों की दुनिया बेहतर बनाने के लिए वोट करते हैं...? इसलिए आश्चर्य मत कीजिएगा.
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झूठ के दौर में दुनिया को आईना दिखाती है सुनयना की आवाज
- Thursday May 9, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
ऐसे दौर में जब टीवी स्क्रीन पर न्यूज चैनल से दिनरात आती ‘तू,तू—मैं,मैं’ की डरावनी आवाजों से लोग आजिज आ चुके हों, सातवी कक्षा में पढ़ने वाली एक बच्ची सुनयना के मार्फत कही गई कहानी नजीर बनकर आती है. यदि आप इस कहानी में को यूं न भी मानें कि इसे बतौर एंकर एनडीटीवी के प्रमुख प्रणय रॉय अंजाम दे रहे हैं तो ही इसका महत्व कम नहीं हो जाता! आप केवल यह देखिए कि वह किस धैर्य से बातें करके जीवन के तमाम सवालों को सामने ला रहे हैं, इसलिए आलोचना के खतरे को समझते हुए भी मैं कह रहा हूं कि यह हालिया समय की सबसे बेहतरीन टीवी रिपोर्ट है.
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क्या उचित है 14 साल की लड़की से 52 साल के आदमी की शादी
- Tuesday May 7, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
अक्षय तृतीया के दिन छपे अखबार में पहले पन्ने पर खबर आई. शीर्षक है '14 साल की लड़की की 52 साल के वकील से शादी वैध : कोर्ट' . इसकी सबहेडिंग में लिखा गया है कि 'बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि हम युवती का भला देख रहे हैं अब समाज में कोई और उसे पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा.' देश में हिंदू कैलेंडर की जो तारीख बाल विवाह के लिए बदनाम मानी जाती है उस दिन पहले पन्ने पर छपी यह खबर हमें सोचने पर मजबूर करती है. बाल विवाह के तमाम कानूनों, प्रावधानों और अभियानों के बीच यह निर्णय एक व्यक्ति का जीवन बचाने के लिए भले ही इस शादी को वैध करार दे रहा हो, लेकिन आप सोचिए कि इस निर्णय का संदेश क्या जाने वाला है?
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सोचिएगा, समझिएगा, दुनिया में हिन्दुस्तान की भद्द न पिटवाइएगा
- Monday March 18, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
परीक्षा में पास होने के लिए न्यूनतम 33 प्रतिशत अंक होने चाहिए. हमने पिछली लोकसभा में 34 प्रतिशत ऐसे सांसदों को चुन लिया, जिन्होंने अपने घोषणा पत्र में स्वयं पर कोई न कोई आपराधिक मामला दर्ज होना घोषित किया था. 2019 में एक बार फिर यही राजनेता आपके सामने वोट मांगने के लिए आ खड़े हुए हैं.
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लो ये नोटबंदी फिर जवाब मांगने लगी?
- Wednesday March 13, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
एक अखबार के पहले पन्ने पर यह खबर है कि नोटबंदी के निर्णय पर देश का रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया सहमत नहीं था. नोटबंदी के ढाई घंटे पहले तक भी इस निर्णय पर सवाल किए गए थे और शंका जताई गई थी कि जिस लक्ष्य को लेकर यह फैसला लिया जा रहा है वह इससे हासिल नहीं होगा! यानी काला धन के लौटने पर आशंका जताई गई थी. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन से यह बात ऐन चुनाव के वक्त एक बार फिर सामने आ गई है. हालांकि मुख्यधारा के अखबारों ने इस खबर को कोई खास तवज्जो नहीं दी.
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पातालकोट बिका बाज़ार में...
- Monday February 4, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
सत्तर साल पहले के भारतीयों ने भी जब संविधान की प्रस्तावना आत्मार्पित की, तब समता, स्वतंत्रता, न्याय की बात का बड़ा ध्यान रखा. लेकिन उदारीकरण के बाद के केवल तीसरे दशक तक ही पूंजी के तांडव ने वह तमाशा किया, जिसमें केवल अपने लाभ के लिए संसाधनों पर कब्जा, कब्जे से अधिकतम लूट. लूट किसी भी कीमत पर. इसकी ताजा मिसाल पातालकोट का वह हिस्सा है, जिसे किसी और ने नहीं, सरकार ने एक कंपनी को साहसिक गतिविधियों के नाम पर दिया. कंपनी ने बहुत बेहयाई से वहां अपने कब्जे की बागड़ भी लगाकर 'लाभ कमाने की फैक्टरी' भी चालू कर ली.
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जानिए भारतरत्न नानाजी देशमुख के गोद लिए गांव का सीधा हाल
- Tuesday January 29, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
नानाजी देशमुख ने सक्रिय राजनीति से अवकाश लेकर जो क्षेत्र चुना, उसमें सतना का मझगवां इलाका भी है. यहां उनकी संस्था ने कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना की. यह इलाका चित्रकूट से 30 किलोमीटर दूर है. चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की. उस वक्त इस इलाके में डाकुओं का खासा आतंक था. इस क्षेत्र में उन्होंने ग्रामीण विकास का जमीनी काम शुरू किया.
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यह कैसा गणतंत्र बना रहे हैं हम ?
- Friday January 25, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
ऐसे में हम गणतंत्र का गुणगान जरूर कर सकते हैं, लेकिन 2 साल 11 महीने और 18 दिन में 166 बैठकों के बाद बनी संविधान नाम की किताब की मूल भावना के साथ जो कुछ भी हो रहा है, उसे देश कैसे स्वीकार कर सकता है ? अमीरी—गरीबी की खाई को केवल इस तर्क से तो नहीं स्वीकार किया जा सकता कि यह खाई तो हमेशा से ही रही है, नीति—नियंताओं को यह देखना होगा कि यह खाई लगातार बढ़ती जा रही है.
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भोपाल गैसकांड की बरसी : देश के दूसरे सबसे स्वच्छ शहर में आज भी मौजूद है सैकड़ों टन ज़हरीला कचरा
- Monday December 3, 2018
- Rakesh Kumar Malviya
आइए, बरसी आ गई है, जो लोग इसे भूल गए हैं, या जिन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है, उन्हें बता दें कि 1984 में 2 और 3 दिसंबर के बीच की रात भोपाल शहर पर कहर बनकर टूटी थी. यह हादसा दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था, जब यूनियन कार्बाइड कारखाने से एक खतरनाक ज़हरीली गैस रिसी थी, और पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था. इस मामले में सरकार ने 22,121 मामलों को मृत्यु की श्रेणी में दर्ज किया था, जबकि 5,74,386 मामलों में तकरीबन 1,548.59 करोड़ रुपये की मुआवज़ा राशि बांटी गई, लेकिन क्या मुआवज़ा राशि बांट दिया जाना पर्याप्त था.
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भोपाल में फिर चल गया रंग विदूषक का ‘तुक्का’
- Thursday September 7, 2023
- Rakesh Kumar Malviya
हम भले ही वैश्विक दुनिया में आज जी रहे हों लेकिन स्थानीयता का रस हमेशा हमें गुदगुदाता रहेगा। तुक्के पे तुक्का नाटक फिर से इसी एक बात को स्थापित करता है. भाषा, किरदार, कलाकारों की नाम, दैहिक गतिविधियों का प्रयोग और उपमाएं देख-सुनकर लगता है कि हमारे ही आसपास का किस्सा तो चल रहा है.
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सवालों में अर्थव्यवस्था और स्वदेशी पर विचार
- Monday August 26, 2019
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सौ साल के विकास के बाद आज जब हर दिन बाजार में मंदी की खबरें हमें डराती हैं, हर दिन नौकरी जाने की खबरें अखबार के पन्नों पर अंदर डर-डरकर, छिपा-छिपाकर छापी जाती हों, शेयर बाजार के उठती-गिरती रेखाओं से धड़कनें सामान्य गति से नहीं चल रही हों, उन परिस्थितियों में क्या केवल सरकार के राहत पैकेज भर को एक उचित इलाज माना जाना चाहिए, जैसा वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने दो दिन पहले प्रस्तुत किया और गिरते बाजार को राहत देने की कोशिश की. निश्चित ही आज की परिस्थितियों में सौ साल पहले की गांधी की बातें आपको अप्रासंगिक लग सकती हैं, लेकिन पूंजीवाद को अपनाकर भी यदि आप आज अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत होने के बारे में आश्वस्त नहीं हैं, तो एक बार यह भी जरूर सोचिएगा कि गांधी सौ साल पहले क्या कुछ कह रहे थे.
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क्या स्कूल में श्रम करना अपराध है...?
- Tuesday July 30, 2019
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बुनियादी तालीम इस जमाने में बीते दिनों की बात ही लगती है, क्योंकि इसमें श्रम पर जोर दिया गया है. खेती, किसानी, साफ-सफाई, खाना बनाने, सिलाई, कढ़ाई, चित्रकारी और बहुत सारी गतिविधियों पर जोर दिया गया है, अब ये काम यदि स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर लिए जाएं, तो अख़बार या टीवी चैनल की ख़बर बनते देर नहीं लगेगी.
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दस साल में बच्चों के बजट पर सबसे कम प्रावधान
- Tuesday July 16, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
जब हम बच्चों के लिए खास बजट की बात करते हैं तो उसका मतलब क्या है? उसका मतलब दो दर्जन से अधिक विभागों से जुड़ी उन 89 योजनाओं से है जो सीधे तौर पर देश की चालीस प्रतिशत आबादी यानी बच्चों से जाकर जुड़ती है. अच्छी बात है कि इसको अलग करके देखा जाता है यानी कि एक पूरा दस्तावेज ही बच्चों के कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर आधारित होता है. भारी बहुमत लेकर संसद पहुंची बीजेपी सरकार ने 5 जुलाई को जो बजट पेश किया उसमें चालीस प्रतिशत आबादी यानी बच्चों का हिस्सा केवल 3.29 प्रतिशत है. भारत के कुल 27,86,349 करोड़ रुपये के बजट में से 91,644.29 करोड़ रुपये बाल कल्याण के लिए आवंटित किए गए हैं.
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जब सिर्फ दो दिन जंगल जाने से हो जाता था शादी का इंतज़ाम...
- Friday June 28, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
अब यह सुनने में थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन जंगल से सटे एक गांव के उस बुजुर्ग के मुंह से निकली यह सच्चाई हमें बताती है कि परतंत्र होने का मतलब ऐसा भी होता है. गर्मी के चलते तकरीबन सूख चुके एक कुएं के ठीक बाजू में एक पेड़ की छांव तले जब बातचीत के लिए गांव के कुछ लोग जमा हुए, तो एक व्यक्ति की नई सफेद बंडी, लंबा सफेद गमछा, जिसे लुंगी की तरह लपेटा गया था, में हल्दी से पुते शरीर और उनींदी आंखों को देखकर ही समझ में आ रहा था कि पिछली रात ही उनके घर में विवाह समारोह हुआ है.
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बच्चों की जान बचाने के लिए गंभीरता से सोचना होगा...
- Thursday June 20, 2019
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दोष केवल सरकार पर, डॉक्टरों पर और अस्पताल पर थोप देना भी अपने पर उठे सवालों से बचना होगा, व्यवस्था पर सवाल तो उतने गंभीर हैं ही, लेकिन उन्हें उठाने से पहले जरा एक बार खुद से पूछिएगा. जब आप एक मुल्क बनाने की बात करते हैं, तो उसमें बच्चे कहां होते हैं, उनके लिए कितना स्थान होता है, उनके लिए कितनी नीति-नियम और प्राथमिकताएं होती हैं, क्या आप बच्चों की दुनिया बेहतर बनाने के लिए वोट करते हैं...? इसलिए आश्चर्य मत कीजिएगा.
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झूठ के दौर में दुनिया को आईना दिखाती है सुनयना की आवाज
- Thursday May 9, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
ऐसे दौर में जब टीवी स्क्रीन पर न्यूज चैनल से दिनरात आती ‘तू,तू—मैं,मैं’ की डरावनी आवाजों से लोग आजिज आ चुके हों, सातवी कक्षा में पढ़ने वाली एक बच्ची सुनयना के मार्फत कही गई कहानी नजीर बनकर आती है. यदि आप इस कहानी में को यूं न भी मानें कि इसे बतौर एंकर एनडीटीवी के प्रमुख प्रणय रॉय अंजाम दे रहे हैं तो ही इसका महत्व कम नहीं हो जाता! आप केवल यह देखिए कि वह किस धैर्य से बातें करके जीवन के तमाम सवालों को सामने ला रहे हैं, इसलिए आलोचना के खतरे को समझते हुए भी मैं कह रहा हूं कि यह हालिया समय की सबसे बेहतरीन टीवी रिपोर्ट है.
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क्या उचित है 14 साल की लड़की से 52 साल के आदमी की शादी
- Tuesday May 7, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
अक्षय तृतीया के दिन छपे अखबार में पहले पन्ने पर खबर आई. शीर्षक है '14 साल की लड़की की 52 साल के वकील से शादी वैध : कोर्ट' . इसकी सबहेडिंग में लिखा गया है कि 'बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि हम युवती का भला देख रहे हैं अब समाज में कोई और उसे पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा.' देश में हिंदू कैलेंडर की जो तारीख बाल विवाह के लिए बदनाम मानी जाती है उस दिन पहले पन्ने पर छपी यह खबर हमें सोचने पर मजबूर करती है. बाल विवाह के तमाम कानूनों, प्रावधानों और अभियानों के बीच यह निर्णय एक व्यक्ति का जीवन बचाने के लिए भले ही इस शादी को वैध करार दे रहा हो, लेकिन आप सोचिए कि इस निर्णय का संदेश क्या जाने वाला है?
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सोचिएगा, समझिएगा, दुनिया में हिन्दुस्तान की भद्द न पिटवाइएगा
- Monday March 18, 2019
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परीक्षा में पास होने के लिए न्यूनतम 33 प्रतिशत अंक होने चाहिए. हमने पिछली लोकसभा में 34 प्रतिशत ऐसे सांसदों को चुन लिया, जिन्होंने अपने घोषणा पत्र में स्वयं पर कोई न कोई आपराधिक मामला दर्ज होना घोषित किया था. 2019 में एक बार फिर यही राजनेता आपके सामने वोट मांगने के लिए आ खड़े हुए हैं.
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लो ये नोटबंदी फिर जवाब मांगने लगी?
- Wednesday March 13, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
एक अखबार के पहले पन्ने पर यह खबर है कि नोटबंदी के निर्णय पर देश का रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया सहमत नहीं था. नोटबंदी के ढाई घंटे पहले तक भी इस निर्णय पर सवाल किए गए थे और शंका जताई गई थी कि जिस लक्ष्य को लेकर यह फैसला लिया जा रहा है वह इससे हासिल नहीं होगा! यानी काला धन के लौटने पर आशंका जताई गई थी. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन से यह बात ऐन चुनाव के वक्त एक बार फिर सामने आ गई है. हालांकि मुख्यधारा के अखबारों ने इस खबर को कोई खास तवज्जो नहीं दी.
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पातालकोट बिका बाज़ार में...
- Monday February 4, 2019
- Rakesh Kumar Malviya
सत्तर साल पहले के भारतीयों ने भी जब संविधान की प्रस्तावना आत्मार्पित की, तब समता, स्वतंत्रता, न्याय की बात का बड़ा ध्यान रखा. लेकिन उदारीकरण के बाद के केवल तीसरे दशक तक ही पूंजी के तांडव ने वह तमाशा किया, जिसमें केवल अपने लाभ के लिए संसाधनों पर कब्जा, कब्जे से अधिकतम लूट. लूट किसी भी कीमत पर. इसकी ताजा मिसाल पातालकोट का वह हिस्सा है, जिसे किसी और ने नहीं, सरकार ने एक कंपनी को साहसिक गतिविधियों के नाम पर दिया. कंपनी ने बहुत बेहयाई से वहां अपने कब्जे की बागड़ भी लगाकर 'लाभ कमाने की फैक्टरी' भी चालू कर ली.
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जानिए भारतरत्न नानाजी देशमुख के गोद लिए गांव का सीधा हाल
- Tuesday January 29, 2019
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नानाजी देशमुख ने सक्रिय राजनीति से अवकाश लेकर जो क्षेत्र चुना, उसमें सतना का मझगवां इलाका भी है. यहां उनकी संस्था ने कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना की. यह इलाका चित्रकूट से 30 किलोमीटर दूर है. चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की. उस वक्त इस इलाके में डाकुओं का खासा आतंक था. इस क्षेत्र में उन्होंने ग्रामीण विकास का जमीनी काम शुरू किया.
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यह कैसा गणतंत्र बना रहे हैं हम ?
- Friday January 25, 2019
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ऐसे में हम गणतंत्र का गुणगान जरूर कर सकते हैं, लेकिन 2 साल 11 महीने और 18 दिन में 166 बैठकों के बाद बनी संविधान नाम की किताब की मूल भावना के साथ जो कुछ भी हो रहा है, उसे देश कैसे स्वीकार कर सकता है ? अमीरी—गरीबी की खाई को केवल इस तर्क से तो नहीं स्वीकार किया जा सकता कि यह खाई तो हमेशा से ही रही है, नीति—नियंताओं को यह देखना होगा कि यह खाई लगातार बढ़ती जा रही है.
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भोपाल गैसकांड की बरसी : देश के दूसरे सबसे स्वच्छ शहर में आज भी मौजूद है सैकड़ों टन ज़हरीला कचरा
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आइए, बरसी आ गई है, जो लोग इसे भूल गए हैं, या जिन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है, उन्हें बता दें कि 1984 में 2 और 3 दिसंबर के बीच की रात भोपाल शहर पर कहर बनकर टूटी थी. यह हादसा दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था, जब यूनियन कार्बाइड कारखाने से एक खतरनाक ज़हरीली गैस रिसी थी, और पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था. इस मामले में सरकार ने 22,121 मामलों को मृत्यु की श्रेणी में दर्ज किया था, जबकि 5,74,386 मामलों में तकरीबन 1,548.59 करोड़ रुपये की मुआवज़ा राशि बांटी गई, लेकिन क्या मुआवज़ा राशि बांट दिया जाना पर्याप्त था.
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