इंटरनेट निरपेक्षता विवाद पर क्या कहते हैं तमाम जानकार, आइए जानें

नई दिल्ली:

नेट निरपेक्षता पर छिड़ी बहस के बीच इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि भारत में अभी तक तो इंटरनेट निरपेक्षता व्यावहारिक नहीं है, फिर भी इसके लिए कोशिश जारी रहनी चाहिए।

गत 30 सालों में कई डाटा-कॉम और दूरसंचार नेटवर्कों का निर्माण करने वाले दूरसंचार सलाहकार रवि वीएस प्रसाद ने कहा, "इंटरनेट निरपेक्ष नेटवर्क का निर्माण प्रौद्योगिकी रूप से संभव नहीं है। यह एक काल्पनिक विचार है, जिसका प्रौद्योगिकी रूप से कोई आधार नहीं है।"

प्रसाद ने कहा, "कोई भी दूरसंचार इंजीनियर यह नहीं कहेगा कि इंटरनेट निरपेक्षता व्यावहारिक रूप से संभव है। यह सोच है कि प्रत्येक डाटा के साथ समान व्यवहार हो, व्यावहारिक नहीं है। आप डाटा डिजाइन नहीं कर सकते। इंटरनेट 0-7 अंक के पैमाने पर डाटा की प्राथमिकता तय करता है।"

उन्होंने कहा कि नेटवर्क आर्किटेक्चर नेटवर्क प्रबंधन को शीर्ष प्राथिमिकता देता है। उसके बाद क्रमश: ऑनलाइन गेमिंग, वक्तव्य, वीडियो, स्थिर चित्र, संगीत फाइल, मूवी डाउनलोड और फाइल हस्तांतरण को प्राथमिकता देता है।

इंटरनेट निरपेक्षता की अवधारणा के मुताबिक, इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों को सभी वैध इंटरनेट सामग्रियों के साथ निरपेक्ष व्यवहार करना चाहिए।

इस अवधारणा के तहत इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों को उपयोगकर्ताओं, सामग्री, प्लेटफार्म, वेबसाइट, एप्लीकेशन या विभिन्न संचार माध्यमों पर शुल्क नहीं लगाना चाहिए। यह इंटरनेट का मूल सिद्धांत है और इसी सिद्धांत पर यह आधुनिक इतिहास में अभिव्यक्ति का सबसे विविध और विशाल मंच बन पाया है।

दावोस स्थित विश्व आर्थिक मंच की पहल 'इंटरनेट गवर्नेस पर वैश्विक आयोग' के तहत रिसर्च एडवाइजरी नेटवर्क के सदस्य सुबिमल भट्टाचार्य ने कहा, "व्यवहारिक रूप से इंटरनेट निरपेक्ष नेटवर्क का निर्माण असंभव है, लेकिन इसे बनाना होगा या कम से कम इसके लिए कोशिश तो करनी ही होगी। इसी से नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। अन्यथा, इंटरनेट सबके लिए और नि:शुल्क नहीं रह पाएगा।"

उन्होंने कहा, "दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियां सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के तहत एक माध्यम हैं। यदि वे किसी को शुल्क लेकर तरजीह देती हैं और उनकी सेवा बेहतर करते हैं, तो यह आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत अवैध है।"

ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म माईलॉ डॉट नेट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एंटनी एलेक्स के मुताबिक, कानून में हालांकि ऐसे अपवादों की व्यवस्था है, जहां इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां निरपेक्षता का उल्लंघन कर सकती हैं। पोर्नोग्राफी इसका एक उदाहरण है।

उन्होंने कहा, "लेकिन वाणिज्यिक लाभ के लिए निरपेक्षता का उल्लंघन करना एक अलग मुद्दा है। कानून अभी निरपेक्षता के मुद्दे पर मौन है। इसलिए इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां इसका लाभ उठाती हैं और विभिन्न प्रकार की योजना पेश करती हैं, जो इंटरनेट निरपेक्षता के विरुद्ध जाती है।"

भट्टाचार्य ने कहा, "अब हमारे सामने सवाल यह है कि क्या सेवा प्रदाता कंपनियों को ओवर द टॉप (ओटीपी) बैनर के तहत विशेष सेवा देने की अनुमति मिल पाएगी।" ऐसी सेवाओं में वाइबर और व्हाट्सएप शामिल हैं।

वैधानिक और कारपोरेट परामर्श कंपनी खेतान एंड कंपनी के साझेदार अभिषेक वर्मा ने कहा कि इंटरनेट की निरपेक्षता की सोच महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, "लेकिन यह भी समझना होगा कि भारत में इंटरनेट के प्रसार को देखते हुए काफी कुछ किया जाना बाकी है।"

फरवरी के अंत तक की स्थिति के मुताबिक देश में करीब 9.5 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन हैं। देश में फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किं ग साइटों का इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

प्रख्यात प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ सैम पित्रोदा के मुताबिक, "लोकतंत्र के भविष्य के लिए देश में इंटरनेट निरपेक्षता जरूरी है।"

उन्होंने अमेरिका का उदाहरण दिया और कहा कि वहां थोड़ी बहस के बाद निरपेक्षता का महत्व समझ लिया गया। उन्होंने कहा, "इसके लिए हालांकि शीर्ष स्तर पर हस्तक्षेप किए जाने की जरूरत है। छोटे-मोटे मुद्दे से भ्रमित नहीं होना चाहिए।"

नीदरलैंड, मेक्सिको, ब्राजील, चिली और इक्वोडोर ने भी इंटरनेट  निरपेक्षता को अंगीकार कर लिया है।

जहां तक भारत की स्थिति की बात है, भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने एक परामर्श पत्र जारी किया है और सभी हितधारकों से ओवर द टॉप सेवा पर राय मांगी गई है। राय भेजने की पहली समय सीमा 24 अप्रैल है और दूसरी बार अपने पक्ष रखने की आखिरी समय सीमा आठ मई है।

केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार ट्राई की सिफारिश मिलने के बाद फैसला करेगी।

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उन्होंने कहा, "एक समिति भी इस मुद्दे पर विचार कर रही है। वह मई के दूसरे सप्ताह में अपनी रपट जमा करेगी। इससे सरकार को इस मुद्दे पर निर्णय लेने में मदद मिलेगी।"