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This Article is From Oct 17, 2015

पेले का करिश्मा कितना बदल पाएगा भारतीय फुटबॉल की तस्वीर?

पेले का करिश्मा कितना बदल पाएगा भारतीय फुटबॉल की तस्वीर?
महान फुटबॉलर पेले (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: भारत की मौजूदा फीफा रैंकिंग 167 है। मुमकिन है नई रैंकिंग में भारतीय टीम 170 के पार होगी। ब्राजील के वर्ल्ड कप विजेता एडसन आरांतेस डो नासमिंटो यानी फुटबॉल के जादूगर पेले के भारत आने से फुटबॉल सुर्खियों में तो रहा, लेकिन ये फिक्र बढ़ती ही रही कि भारतीय फुटबॉल का क्या होगा?

स्कूल स्तर के भारत के सबसे बड़े टूर्नामेंट सुब्रतो कप के फाइनल में पेले की मौजूदगी से दिल्ली के अंबेडकर स्टेडियम में आने से माहौल मेले सा बन गया। फुटबॉल एक्सपर्ट नोवी कपाडिया याद करते हुए कहते हैं, "मैं इस स्टेडियम के इतिहास से अच्छी तरह वाकिफ हूं। यहां दुनिया के टॉप गोलकीपर रूस के लेव याशिन 1950 के दशक में आए थे, फिर इगोर नेट्टो (यूएससआर) भी आए, लेकिन पेले का तो कोई मुकाबला नहीं है। पेले के आने से फैन्स तो स्टेडियम आए हैं, लेकिन असल बदलाव तो तभी आएगा, जब भारतीय खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी प्रैक्टिस मिले।"

पेले को खास तौर पर देखने स्टेडियम आईं एयरफोर्स स्कूल की फुटबॉल खिलाड़ी ख़दीजा काज़मी कहती हैं, "पापा के मुंह से सुनकर मैं पेले की फैन हो गई हूं। पेले शानदार खिलाड़ी रहे हैं। उनकी तकनीक बहुत अच्छी रही है। वो किसी से लड़ते भी नहीं थे। मैं बहुत खुश हूं।" ख़दीजा ने इस साल सुब्रतो कप में भी हिस्सा लिया और टूर्नामेंट की शुरुआत से ही वो फाइनल मैच का इंतज़ार कर रही थीं, ताकि पेले को करीब से देख सकें। कुछ ऐसी ही बात एक और युवा फुटबॉल खिलाड़ी रोहन भी कहते हैं। वो कहते हैं कि स्कूल स्तर के इस टूर्नामेंट को देखने पहले इतने दर्शक स्टेडियम नहीं आते थे, लेकिन पेले की वजह से अगर इतने दर्शक आए हैं, तो उन्हें स्कूल स्तर के फुटबॉल टैलेंट का भी अंदाजा हो जाएगा।

फुटबॉल की दुनिया के सबसे बड़े नाम पेले के कारनामे आज की पीढ़ी के लिए मिथकों जैसे हैं। यू-ट्यूब पर उनके कारनामों की तस्वीरें सबको हैरान करती रही हैं। ईपीएल या स्पेनिश लीग के युवा फैन्स को भी पेले के कारनामे दंग कर देते हैं।

पिछले कुछ दिनों से पेले के भारतीय मीडिया में सुर्खियां बने रहने से फैन्स के जेहन में ये सवाल भी उठता रहा कि भारतीय फुटबॉल किस दिशा में जा रहा है? राहत की बात है कि लंबे समय बाद जानकार उम्मीद जगा रहे हैं, क्योंकि, अब ग्रास रूट लेवल से ही फुटबॉल को ठीक करने की कोशिश की जा रही है।

नोवी कपाडिया कहते हैं कि पहली बार अंडर-17 या अंडर-15 के स्तर पर एक ही शैली से फुटबॉल सिखाने की कोशिश की जा रही है। पहली बार अंडर-15 या अंडर-17 स्तर पर भी अंतर्राष्ट्रीय क्लब जैसी फुटबॉल खेल रहे हैं। बच्चों को 4-3-3 या 4-2-2 से खेलने की ट्रेनिंग दी जा रही है। ये बच्चे जब सीनियर टीम में आएंगे, तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन्हें खेलने में आसानी होगी।

भारतीय फुटबॉल संघ के तकनीकी निदेशक स्कॉट ओ डोनेल (ऑस्ट्रेलिया के) कहते हैं, "मैं कोशिश कर रहा हूं कि भारतीय फुटबॉल का स्टाइल बदल सकूं। सुब्रतो कप के फाइनल मैच में भी AIFF की अंडर-17 टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया।" वो मानते हैं कि 2017 में भारत में होने वाले अंडर-17 वर्ल्ड कप के लिए जर्मन कोच निकोलाई एडम के अंदर भारतीय टीम शानदार तैयारी कर रही है। वो कहते हैं कि इसका असर दस साल बाद जरूर देखने को मिलेगा, जब
ये खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना दम दिखाते नजर आएंगे।

पेले के आने से भारतीय फुटबॉल में रातोंरात बदलाव का होना कतई मुमकिन नहीं, लेकिन फैन्स शुरुआत के फायदे की उम्मीद जरूर कर रहे हैं। फुटबॉल के जादूगर पेले का दिल्ली के अंबेडकर स्टेडियम में आना एक ऐतिहासिक घटना है, लेकिन भारतीय फुटबॉल तंत्र इसका कितना फायदा उठा पाएगा, ये कह पाना बेहद मुश्किल है। फुटबॉल का शहंशाह चाहे दिल्ली में हों, लेकिन भारतीय फुटबॉल की अंतर्राष्ट्रीय कामयाबी के लिए दिल्ली बेहद दूर है। फिलहाल नतीजे के लिए धैर्य ही रखना होगा। इसका एक अंदाजा 2017 में भारत में होने वाले वर्ल्ड कप के दौरान जरूर हो सकेगा।

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