प्रतीकात्मक फोटो
जयपुर:
राजस्थान में अवैध हथियारों के लाइसेंस बनाने के रैकेट के खुलासे के बाद सुरक्षा एजेंसियों की चिंताएं बढ़ गयी हैं. जिस तरह से ये रैकेट चल रहा था, उससे राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठते हैं. सुरक्षा और खुफिया एजेंसी इसमें आतंकवाद से जुड़े तार को भी जांच रहे हैं. इस रैकेट का खुलासा हुआ इस साल सितम्बर में हुआ, जब राजस्थान पुलिस ने अवैध हथियार बेचने पर रोक लगाने के लिए ऑपरेशन जुबैदा चलाया. अजमेर की वली गन शॉप पर हुई रेड में पुलिस को भी यह अंदाजा नहीं था कि वो इतने बड़े रैकेट का भंडाफोड़ करेंगे. वली गन शॉप में सिर्फ हथियार ही नहीं बेची जा रहे थे, बल्कि हथियारों के जाली लाइसेंस और अवैध हथियार का भी कारोबार था.
पुलिस ने जो हथियार लाइसेंस यहां से जब्त किये हैं, उनसे एक अलग ही कहानी सामने आयी है इस सारे रेड का नेतृत्व करने वाले एसपी विकास कुमार ने बताया " सिविलियन्स का जिनका आर्म्ड फोर्सेज से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है, उनको ये देखते हुए कि वो आर्म्ड फोर्सेज के क्रमिक हैं उनके लाइसेंस बनाये गए. सिविलियन की फोटो और आईडी पर आर्म्ड फोर्सेस का टोरसो लगा के मॉर्फिंग, सीओ और आर्म्ड फोर्सेज का फेक आईडी दे दिया गया." उदाहरण के तौर पे विकास कुमार ने बताया कि कांस्टेबल मोहम्मद हुसैन के नाम से एक नहीं दो लाइसेंस हैं. उन्हें जम्मू में बीएसएफ में तैनात दिखाया गया है.
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इसी प्रकार कांस्टेबल अयूब की फोटो मिलिट्री ड्रेस में है और वह भी बीएसएफ के साथ जम्मू में पोस्टेड हैं. लेकिन हैरत की बात यह है कि पुलिस जांच में यह पता चला की दोनों कभी जम्मू और कश्मीर गए ही नहीं हैं. यह चित्तौड़गढ़ के निम्बाहेड़ा कस्बे के रहने वाले हैं और अपना बिजनेस चलाते है. पुलिस के मुताबिक, इन सबका मास्टरमाइंड जुबेर और उसके पिता उस्मान हैं. वली गन शॉप के मालिक जुबेर फिलहाल पुलिस गिरफ्त में है और उस्मान अभी फरार है. फर्जी कमांडिंग अफसर की चिठ्ठी बनाकर उन्होंने कई लोगों को बीएसएफ के नाम से लाइसेंस दिलवाये हैं. आर्मी और पारा मिलिट्री के लोगों को कमांडिंग अफसर की चिठ्ठी पर हिथयार लाइसेंस मिल जाता है और उन्हें पुलिस वेरिफिकेशन या तस्दीक नहीं करवानी पड़ती है.
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जुबेर ने इसी प्रावधान का फयदा उठाते हुए यूनिट के कमांडिंग अफसर की चिठ्ठी का फर्जीवाड़ा किया, लेकिन सभी अवैध लाइसेंस धारी आर्मी या बीएसएफ से नहीं थे. कई लोगों ने जम्मू का फर्जी पता बताकर भी लाइसेंस लिया है. सुशील वर्मा पेशे से जौहरी हैं. 2008 में उनका लाइसेंस बनाया गया है, लेकिन इसमें हथियार की खरीद 2015 की है. पुलिस को शक है कि यह लाइसेंस बैक डेट तरीके से फर्जी है, क्योंकि जिस साल लाइसेंस बनता है उसके एक साल के अंदर हथियार खरीदना जरूरी होता है. पुलिस ऐसे 1250 लाइसेंस के मामले की जांच कर रही है. फिलहाल, पुलिस की जांच उस्मान और जुबेर तक पहुची है, लेकिन पुलिस का मानना है की ये जाल राजस्थान से कश्मीर और मध्य प्रदेश तक फैला हुआ है.
VIDEO: राजस्थान में फर्जी हथियार लाइसेंस देने के रैकेट का भंडाफोड़
राजस्थान में एक साल में 100 से अधिक हथियार लाइसेंस नहीं बनते हैं, लेकिन जम्मू में एक साल में 3 लाख के करीब लाइसेंस बने हैं. 2003 में उत्तर प्रदेश के बाद यह दूसरे नंबर पर है, जबकि जनसंख्या में जम्मू और कश्मीर देश के 20वें स्थान पर आता है. क्या इसमें जिला प्रशासन की मिलीभगत है यह भी एक जांच का विषय है.
पुलिस ने जो हथियार लाइसेंस यहां से जब्त किये हैं, उनसे एक अलग ही कहानी सामने आयी है इस सारे रेड का नेतृत्व करने वाले एसपी विकास कुमार ने बताया " सिविलियन्स का जिनका आर्म्ड फोर्सेज से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है, उनको ये देखते हुए कि वो आर्म्ड फोर्सेज के क्रमिक हैं उनके लाइसेंस बनाये गए. सिविलियन की फोटो और आईडी पर आर्म्ड फोर्सेस का टोरसो लगा के मॉर्फिंग, सीओ और आर्म्ड फोर्सेज का फेक आईडी दे दिया गया." उदाहरण के तौर पे विकास कुमार ने बताया कि कांस्टेबल मोहम्मद हुसैन के नाम से एक नहीं दो लाइसेंस हैं. उन्हें जम्मू में बीएसएफ में तैनात दिखाया गया है.
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इसी प्रकार कांस्टेबल अयूब की फोटो मिलिट्री ड्रेस में है और वह भी बीएसएफ के साथ जम्मू में पोस्टेड हैं. लेकिन हैरत की बात यह है कि पुलिस जांच में यह पता चला की दोनों कभी जम्मू और कश्मीर गए ही नहीं हैं. यह चित्तौड़गढ़ के निम्बाहेड़ा कस्बे के रहने वाले हैं और अपना बिजनेस चलाते है. पुलिस के मुताबिक, इन सबका मास्टरमाइंड जुबेर और उसके पिता उस्मान हैं. वली गन शॉप के मालिक जुबेर फिलहाल पुलिस गिरफ्त में है और उस्मान अभी फरार है. फर्जी कमांडिंग अफसर की चिठ्ठी बनाकर उन्होंने कई लोगों को बीएसएफ के नाम से लाइसेंस दिलवाये हैं. आर्मी और पारा मिलिट्री के लोगों को कमांडिंग अफसर की चिठ्ठी पर हिथयार लाइसेंस मिल जाता है और उन्हें पुलिस वेरिफिकेशन या तस्दीक नहीं करवानी पड़ती है.
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जुबेर ने इसी प्रावधान का फयदा उठाते हुए यूनिट के कमांडिंग अफसर की चिठ्ठी का फर्जीवाड़ा किया, लेकिन सभी अवैध लाइसेंस धारी आर्मी या बीएसएफ से नहीं थे. कई लोगों ने जम्मू का फर्जी पता बताकर भी लाइसेंस लिया है. सुशील वर्मा पेशे से जौहरी हैं. 2008 में उनका लाइसेंस बनाया गया है, लेकिन इसमें हथियार की खरीद 2015 की है. पुलिस को शक है कि यह लाइसेंस बैक डेट तरीके से फर्जी है, क्योंकि जिस साल लाइसेंस बनता है उसके एक साल के अंदर हथियार खरीदना जरूरी होता है. पुलिस ऐसे 1250 लाइसेंस के मामले की जांच कर रही है. फिलहाल, पुलिस की जांच उस्मान और जुबेर तक पहुची है, लेकिन पुलिस का मानना है की ये जाल राजस्थान से कश्मीर और मध्य प्रदेश तक फैला हुआ है.
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राजस्थान में एक साल में 100 से अधिक हथियार लाइसेंस नहीं बनते हैं, लेकिन जम्मू में एक साल में 3 लाख के करीब लाइसेंस बने हैं. 2003 में उत्तर प्रदेश के बाद यह दूसरे नंबर पर है, जबकि जनसंख्या में जम्मू और कश्मीर देश के 20वें स्थान पर आता है. क्या इसमें जिला प्रशासन की मिलीभगत है यह भी एक जांच का विषय है.
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