जयललिता के साथ शशिकला (फाइल फोटो).
बेंगलुरु:
तमिलनाडु की राजनीति की धुरी पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के फौरन बाद जो कुछ हुआ वह अप्रत्याशित था. पनीरसेल्वम फौरन देर रात तकरीबन पौने बारह बजे चेन्नई के माउंट रोड पर बने एआईएडीएमके (अन्नाद्रमुक) के मुख्यालय पहुंचे. विधायकों ने उन्हें अपना नेता चुना, यानी मुख्यमंत्री.
इसके फौरन बाद रात के तकरीबन एक बजे उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. यह काफी मत्वपूर्ण कदम था. पनीरसेल्वम के तौर पर राज्य को सरकार चलाने वाला मुख्यमंत्री तो मिल गया लेकिन पार्टी कौन चलाएगा. क्या शशिकला इस महत्वपूर्ण ओहदे को संभालेंगी?
शशिकला की बाधाएं
शशिकला जयललिता की सबसे नजदीकी रही हैं. वे एआईएडीएमके की महासचिव बनकर पार्टी चलाएंगी, फिलहाल ऐसा लगता नहीं है. इसकी दो वजह हैं. आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है. इसमें वे जयललिता के बाद अभियुक्त नम्बर दो हैं. यानी अगर फैसला शशिकला के खिलाफ आया तो उन्हें पद छोड़ना होगा और उनके विरोधी किसी भी हालात में उनके राजनीतिक करियर को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. दूसरी वजह है शाशिकला की जाति. वे भी मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम की ही तरह पिछड़ी जाति थेवर कम्युनिटी से हैं. यानी पार्टी और सरकार अगर दोनों पर थेवर जाति का वर्चस्व हुआ तो दूसरी शक्तिशाली गाउंडर जाति नाराज हो जाएगी जिसके लगभग एक तिहाई विधायक हैं.
अगर यह विधायक नाराज हुए तो वे डीएमके के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ कर सकते हैं. डीएमके इस मौके को भुनाने यानी एआईएडीएमके में सेंधमारी में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.
ऐसे में फिलहाल सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि लोकसभा में डिप्टी स्पीकर एम थम्बीदोरई को एआईएडीएमके के महासचिव पद पर नियुक्त किया जा सकता है. उनका विरोध नहीं होगा क्योंकि वे गाउंडर जाति के हैं और शशिकला पर्दे के पीछे से पार्टी पर अपना नियंत्रण बनाए रखेंगी. जयललिता के समय भी उनकी पार्टी और सरकार पर बेहद मजबूत पकड़ थी. ऐसे में पर्दे के पीछे से रिमोट कंट्रोल का उनका अच्छा अनुभव रहा है.
अब देखना है कि चेन्नई के आरके नगर में होने वाले विधानसभा उप चुनाव में शशिकला लड़ती हैं या नहीं. यह सीट जयललिता के निधन की वजह से खाली हुई है. अगर शशिकला चुनाव लड़ती हैं तो पनीरसेल्वम की मुश्किलें बढ़ सकती है. क्योंकि वे शशिकला के खिलाफ नहीं जा सकते. एक अनुमान के मुताबिक लगभग 100 विधायक शशिकला के साथ खड़े हैं.
अगर शशिकला की अभिलाषा मुख्यमंत्री बनने की होगी तो ऐसे में पनीरसेल्वम को सांसद के तौर पर दिल्ली की कमान सौंपी जा सकती है. लेकिन यह सब इतना आसान भी नहीं है. शशिकला को भले ही समर्थन विधायकों का है लेकिन जनता पनीरसेल्वम के साथ खड़ी दिखती है क्योंकि वे जयललिता के सबसे भरोसेमंद नेता हैं. उन्हें दो बार जयललिता ने मुख्यमंत्री बनाया और अपने अंतिम समय में अपना मुख्यमंत्री का पोर्टफोलियो सौंपा.
इसके फौरन बाद रात के तकरीबन एक बजे उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. यह काफी मत्वपूर्ण कदम था. पनीरसेल्वम के तौर पर राज्य को सरकार चलाने वाला मुख्यमंत्री तो मिल गया लेकिन पार्टी कौन चलाएगा. क्या शशिकला इस महत्वपूर्ण ओहदे को संभालेंगी?
शशिकला की बाधाएं
शशिकला जयललिता की सबसे नजदीकी रही हैं. वे एआईएडीएमके की महासचिव बनकर पार्टी चलाएंगी, फिलहाल ऐसा लगता नहीं है. इसकी दो वजह हैं. आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है. इसमें वे जयललिता के बाद अभियुक्त नम्बर दो हैं. यानी अगर फैसला शशिकला के खिलाफ आया तो उन्हें पद छोड़ना होगा और उनके विरोधी किसी भी हालात में उनके राजनीतिक करियर को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. दूसरी वजह है शाशिकला की जाति. वे भी मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम की ही तरह पिछड़ी जाति थेवर कम्युनिटी से हैं. यानी पार्टी और सरकार अगर दोनों पर थेवर जाति का वर्चस्व हुआ तो दूसरी शक्तिशाली गाउंडर जाति नाराज हो जाएगी जिसके लगभग एक तिहाई विधायक हैं.
अगर यह विधायक नाराज हुए तो वे डीएमके के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ कर सकते हैं. डीएमके इस मौके को भुनाने यानी एआईएडीएमके में सेंधमारी में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.
ऐसे में फिलहाल सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि लोकसभा में डिप्टी स्पीकर एम थम्बीदोरई को एआईएडीएमके के महासचिव पद पर नियुक्त किया जा सकता है. उनका विरोध नहीं होगा क्योंकि वे गाउंडर जाति के हैं और शशिकला पर्दे के पीछे से पार्टी पर अपना नियंत्रण बनाए रखेंगी. जयललिता के समय भी उनकी पार्टी और सरकार पर बेहद मजबूत पकड़ थी. ऐसे में पर्दे के पीछे से रिमोट कंट्रोल का उनका अच्छा अनुभव रहा है.
अब देखना है कि चेन्नई के आरके नगर में होने वाले विधानसभा उप चुनाव में शशिकला लड़ती हैं या नहीं. यह सीट जयललिता के निधन की वजह से खाली हुई है. अगर शशिकला चुनाव लड़ती हैं तो पनीरसेल्वम की मुश्किलें बढ़ सकती है. क्योंकि वे शशिकला के खिलाफ नहीं जा सकते. एक अनुमान के मुताबिक लगभग 100 विधायक शशिकला के साथ खड़े हैं.
अगर शशिकला की अभिलाषा मुख्यमंत्री बनने की होगी तो ऐसे में पनीरसेल्वम को सांसद के तौर पर दिल्ली की कमान सौंपी जा सकती है. लेकिन यह सब इतना आसान भी नहीं है. शशिकला को भले ही समर्थन विधायकों का है लेकिन जनता पनीरसेल्वम के साथ खड़ी दिखती है क्योंकि वे जयललिता के सबसे भरोसेमंद नेता हैं. उन्हें दो बार जयललिता ने मुख्यमंत्री बनाया और अपने अंतिम समय में अपना मुख्यमंत्री का पोर्टफोलियो सौंपा.
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