वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में होली।
वाराणसी:
वाराणसी में होली उत्सव शनिवार को शुरू हो गया। डमरू की थाप और शहनाई की धुन के बीच शनिवार को दोपहर में बाबा भोलेनाथ की सवारी निकली जिसमें सभी होली की मस्ती में सराबोर रहे। हरे, लाल अबीर का रंग सबको फागुनी बयार की मस्ती में डुबोए हुए था। काशी के विश्वनाथ मंदिर की गली में इस दिन जो भी गया वह इस रंग में सराबोर हो गया।
बनारस में एकादशी से शुरू होती है होली
मथुरा में नवमी और दशमी से होली की शुरुआत हो जाती है। इसी कड़ी में वाराणसी में एकादशी के दिन से होली की शुरुआत हो जाती है जिसे रंग भरी एकादशी कहते हैं। इस दिन बाबा विश्वनाथ के साथ भक्त अबीर-गुलाल से होली खेलते हैं। मंदिर की पूरी गली हर-हर महादेव के नारे और अबीर गुलाल से सराबोर हो जाती है। एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ की चल प्रतिमा अपने परिवार के साथ निकलती है जिसके साथ बाबा के भक्तों का रेला चलता है जो अबीर और गुलाल से नहा उठता है।
हर-हर महादेव के नारे गूंजे
शनिवार को हर तरफ हर-हर महादेव के नारे के साथ होली की ही मस्ती नजर आ रही थी। और ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि आज यह लोग अपने भोले नाथ और माता पार्वती के साथ होली जो खेल रहे थे। इस होली के पीछे मान्यता यह है कि शिवरात्रि के दिन विवाह के बाद बाबा इस दिन मां पार्वती का गौना कराकर वापस लौटे। लिहाजा देवलोक के सारे देवी-देवता भी इस दिन स्वर्गलोक से बाबा के ऊपर गुलाल फेंकते हैं। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास भक्त जमकर बाबा के साथ होली खेलते हैं।
आज के पावन दिन बाबा की चल प्रतिमा का दर्शन भी श्रद्धालुओं को होता है। आस्था का जनसैलाब काशी की इन गलियों में उमड़ पड़ता है। मान्यता है कि बाबा के साथ आज के दिन होली खेलकर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
बनारस में एकादशी से शुरू होती है होली
मथुरा में नवमी और दशमी से होली की शुरुआत हो जाती है। इसी कड़ी में वाराणसी में एकादशी के दिन से होली की शुरुआत हो जाती है जिसे रंग भरी एकादशी कहते हैं। इस दिन बाबा विश्वनाथ के साथ भक्त अबीर-गुलाल से होली खेलते हैं। मंदिर की पूरी गली हर-हर महादेव के नारे और अबीर गुलाल से सराबोर हो जाती है। एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ की चल प्रतिमा अपने परिवार के साथ निकलती है जिसके साथ बाबा के भक्तों का रेला चलता है जो अबीर और गुलाल से नहा उठता है।
हर-हर महादेव के नारे गूंजे
शनिवार को हर तरफ हर-हर महादेव के नारे के साथ होली की ही मस्ती नजर आ रही थी। और ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि आज यह लोग अपने भोले नाथ और माता पार्वती के साथ होली जो खेल रहे थे। इस होली के पीछे मान्यता यह है कि शिवरात्रि के दिन विवाह के बाद बाबा इस दिन मां पार्वती का गौना कराकर वापस लौटे। लिहाजा देवलोक के सारे देवी-देवता भी इस दिन स्वर्गलोक से बाबा के ऊपर गुलाल फेंकते हैं। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास भक्त जमकर बाबा के साथ होली खेलते हैं।
आज के पावन दिन बाबा की चल प्रतिमा का दर्शन भी श्रद्धालुओं को होता है। आस्था का जनसैलाब काशी की इन गलियों में उमड़ पड़ता है। मान्यता है कि बाबा के साथ आज के दिन होली खेलकर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
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