गाजियाबाद के इंदिरापुरम के मइउद्दीनपुर का दृश्य।
नई दिल्ली:
दिल्ली से सटे गाजियाबाद में 3000 रुपये के बिजली के मीटर घरों में लगवाने के लिए लोगों को 15000 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं। इंदिरापुरम से सटे इलाके मइउद्दीनपुर कनावनी इलाके के चमन कॉलोनी के लोगों को अपने घरों तक रोशनी पहुंचाने के लिए मीटर की कीमत 5-5 गुनी ज्यादा अदा करनी पड़ रही है।
इंदिरापुरम की दस साल पुरानी कॉलोनी में बिजली नहीं!
एनसीआर के पॉश इलाके इंदिरापुरम अहिंसा खंड 2 के पास की यह कॉलोनी करीब 10 साल पहले बसी, लेकिन बिजली का कनेक्शन आज भी सबकी पहुंच के दूर है। जिनके घर पहुंची उन्हें तय पैसे से पांच गुनी तक ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी है।
चंदा जुटाकर लगवाया ट्रांसफार्मर
चमन कॉलोनी के करीब 43 घरों में मीटर लगे हैं। जिनके घर में मीटर नहीं है उन्हें मजबूरन चोरी की बिजली जलानी पड़ रही है। उन्हें इसके बदले विभाग के कर्मचारी को 500 से 1000 रुपये चुकाने पड़ते हैं। तीन हजार का मीटर लगवाने में पंद्रह हजार भी कम पड़ जाते है। यहां तक कि ट्रांसफार्मर भी बिजली विभाग का नहीं, लोगों के चंदे से जुटाए गए तीन लाख रुपए से खंबे पर टंग सका है। अब कनेक्शन के लिए एक मुश्त रिश्वत और अदा करनी है। लोग भी बताते हैं कि कोई 12000 रुपये मांग रहा है तो कोई 15000 रुपये।
यहां रह रहे लोगों के पास राशन कार्ड भी है और वोटर कार्ड भी, लेकिन घरों में बिजली रिश्वत की मोहताज है। इस इलाके की हालत और बिजली विभाग की हकीकत टटोलने हम लोगों के साथ चल पड़े। दृश्य -एक
इंदिरापुरम के नीति खंड 2 के बिजली ऑफिस में पहली मुलाकात इलाके के लाइनमैन सज्जन से हुई जो पैसे के लेनदेन की दलाली में जुटा था।
पब्लिक - आप लाइन खींच दो, पर्ची काट दो और पैसे ले लो।
लाइनमैन - भाई पर्ची इस तरह नहीं कटेगी। पैसे आप देकर जाओ। पर्ची मंगलवार को मिलेगी।
रिपोर्टर - सज्जन जी, हम तो यह चाह रहे हैं कि मान लीजिए पैसे दें तो सबसे बड़ा अधिकारी SDO हैं यहां पर। हम यह चाह रहे हैं कि मान लीजिए पैसा देंगे तो कुछ पैसा तो उनके पास भी जाएगा?
लाइनमैन - सारा पैसा ऊपर से नीचे तक जाता है।
रिपोर्टर - उनको ऐसे ही बोल देंगे कि सर कब तक हो जाएगा। एक भरोसे वाली बात... जुबान वाली बात।
लाइनमैन - उनकी जुबान का वैल्यू है, मेरी जुबान का नहीं है?
दृश्य- दो
फिर लगा जूनियर इंजीनियर साहब को भी टटोल लें।
जेई - 2850 रुपये की तुम्हारी रसीद बन गई। वह तो गवर्नमेंट को चला गया। उसमें लाइन लगेगी उसका खर्चा कौन देगा ?
रिपोर्टर - सरकार नहीं देगी ?
जेई - सरकार क्यों देगी?
रिपोर्टर - हम उनको वोट देते हैं।
जेई - अरे यार। वो सरकार तो गई अलग। सरकार को मतलब नहीं है। यह विभाग है एक, यह सरकार नहीं चलाती। यह खुद अपने पैसे से चलता है।
जेई - जो भी नई चीज बनती है न। नई कॉलोनी बनी हैं, उसमें सरकार पैसे खर्च नहीं करती। जनरल पब्लिक के लिए तो विभाग ही सरकार है। देखो अब जैसे आपकी लाइन बन जाएगी। बाद में अगर कोई खंभा टूट जाता है या कोई चीज होती है तो उसमें फिर वह विभाग रिपेयर करता है। नई लाइन नहीं लगवाती।
रिपोर्टर - मानी जाए 2800 या 3000 की है पर्ची..वहां यह 15000 रुपये?
जेई - तो यह बताओ न 2800 की तब है न पर्ची जब आपके यहां पर लाइन हो। आपके यहां पर लाइन नहीं है।
रिपोर्टर - ये कितने दिन में हो जाएगा पैसे अगर दे दें तो?
जेई - तीन से चार दिन में तुम्हारा काम हो जाएगा। आज पैसे दे जाओगे, आज ही ऑर्डर कर दूंगा। तुम्हारी केबल आ जाएगी। ट्रांसफॉर्मर के कनेक्शन हो जाएंगे। ट्रांसफॉर्मर से आगे की लाइन बिछ जाएगी।
रिपोर्टर - एक बार एसडीओ साहब से तसल्ली न कर लें?
जेई - आपको किसी से कोई बात नहीं करनी है, ठीक है। क्यों मिलना? उन्होंने तुमसे कहा है कि तुम पैसे दो उन्हें?
रिपोर्टर - जी।
जेई - तो जब बोला था तब यह नहीं कहा था कि आधा काम बीच में रोककर फिर आना। 1.5 लाख की है ट्रांसफॉर्मर की कीमत।
रिपोर्टर - हमने तो सर तीन लाख दिए हैं।
जेई - तीन दिए हैं तो तुम्हें सारा का हिसाब थोड़े मिलेगा। रसीद थोड़े मिल रही है तीन की। खंभे न लगवाए..उसमें लेबर न लगी चार दिन तक।
रिपोर्टर - एक चीज और इसको बुरा मत मानिए। लोगों को दिखाने के लिए किसी कागज पर कि इतने लाख लिए... बस दिखाने के लिए।
जेई - सही में जॉब करते हो? जॉब भी करते हो? ऐसा होता है कहीं? होता है कहीं?
दृश्य- तीन
आखिर में एसडीओ साहब के दफ्तर की बारी आई। वीडियो तो रिकॉर्ड नहीं हो पाया, लेकिन आवाज ने सारी कहानी खोल दी कि कैसे नीचे से ऊपर तक सब इस गोरखधंधे में शामिल हैं।
एसडीओ - 12000 में नहीं होने का और मैंने उस दिन भी बोला था। 15-15 हजार रुपये...आपकी कॉलोनी में कराया है। उनको 15-15 हजार रुपये खर्चा आया है।
पब्लिक - 15000 रुपये एक आदमी के?
एसडीओ - 15000 एक आदमी के।
रिपोर्टर - जेई साहब से हम लोग मिले। हमने बात भी की, लेकिन वे गुस्सा हो गए।
एसडीओ - गुस्सा ही होगा न। आपकी करी कराई बात थी।
रिपोर्टर - नहीं-नहीं हमको काम करवाना है सर।
एसडीओ - स्पष्ट बात थी कि आप 60 कनेक्शन लाओगे।
इंदिरापुरम की दस साल पुरानी कॉलोनी में बिजली नहीं!
एनसीआर के पॉश इलाके इंदिरापुरम अहिंसा खंड 2 के पास की यह कॉलोनी करीब 10 साल पहले बसी, लेकिन बिजली का कनेक्शन आज भी सबकी पहुंच के दूर है। जिनके घर पहुंची उन्हें तय पैसे से पांच गुनी तक ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी है।
मइउद्दीनपुर
चंदा जुटाकर लगवाया ट्रांसफार्मर
चमन कॉलोनी के करीब 43 घरों में मीटर लगे हैं। जिनके घर में मीटर नहीं है उन्हें मजबूरन चोरी की बिजली जलानी पड़ रही है। उन्हें इसके बदले विभाग के कर्मचारी को 500 से 1000 रुपये चुकाने पड़ते हैं। तीन हजार का मीटर लगवाने में पंद्रह हजार भी कम पड़ जाते है। यहां तक कि ट्रांसफार्मर भी बिजली विभाग का नहीं, लोगों के चंदे से जुटाए गए तीन लाख रुपए से खंबे पर टंग सका है। अब कनेक्शन के लिए एक मुश्त रिश्वत और अदा करनी है। लोग भी बताते हैं कि कोई 12000 रुपये मांग रहा है तो कोई 15000 रुपये।
चंदा जुटाकर लगवाया गया ट्रांसफार्मर
यहां रह रहे लोगों के पास राशन कार्ड भी है और वोटर कार्ड भी, लेकिन घरों में बिजली रिश्वत की मोहताज है। इस इलाके की हालत और बिजली विभाग की हकीकत टटोलने हम लोगों के साथ चल पड़े।
इंदिरापुरम के नीति खंड 2 के बिजली ऑफिस में पहली मुलाकात इलाके के लाइनमैन सज्जन से हुई जो पैसे के लेनदेन की दलाली में जुटा था।
पब्लिक - आप लाइन खींच दो, पर्ची काट दो और पैसे ले लो।
लाइनमैन - भाई पर्ची इस तरह नहीं कटेगी। पैसे आप देकर जाओ। पर्ची मंगलवार को मिलेगी।
रिपोर्टर - सज्जन जी, हम तो यह चाह रहे हैं कि मान लीजिए पैसे दें तो सबसे बड़ा अधिकारी SDO हैं यहां पर। हम यह चाह रहे हैं कि मान लीजिए पैसा देंगे तो कुछ पैसा तो उनके पास भी जाएगा?
लाइनमैन - सारा पैसा ऊपर से नीचे तक जाता है।
रिपोर्टर - उनको ऐसे ही बोल देंगे कि सर कब तक हो जाएगा। एक भरोसे वाली बात... जुबान वाली बात।
लाइनमैन - उनकी जुबान का वैल्यू है, मेरी जुबान का नहीं है?
दृश्य- दो
फिर लगा जूनियर इंजीनियर साहब को भी टटोल लें।
जेई - 2850 रुपये की तुम्हारी रसीद बन गई। वह तो गवर्नमेंट को चला गया। उसमें लाइन लगेगी उसका खर्चा कौन देगा ?
रिपोर्टर - सरकार नहीं देगी ?
जेई - सरकार क्यों देगी?
रिपोर्टर - हम उनको वोट देते हैं।
जेई - अरे यार। वो सरकार तो गई अलग। सरकार को मतलब नहीं है। यह विभाग है एक, यह सरकार नहीं चलाती। यह खुद अपने पैसे से चलता है।
जेई - जो भी नई चीज बनती है न। नई कॉलोनी बनी हैं, उसमें सरकार पैसे खर्च नहीं करती। जनरल पब्लिक के लिए तो विभाग ही सरकार है। देखो अब जैसे आपकी लाइन बन जाएगी। बाद में अगर कोई खंभा टूट जाता है या कोई चीज होती है तो उसमें फिर वह विभाग रिपेयर करता है। नई लाइन नहीं लगवाती।
रिपोर्टर - मानी जाए 2800 या 3000 की है पर्ची..वहां यह 15000 रुपये?
जेई - तो यह बताओ न 2800 की तब है न पर्ची जब आपके यहां पर लाइन हो। आपके यहां पर लाइन नहीं है।
रिपोर्टर - ये कितने दिन में हो जाएगा पैसे अगर दे दें तो?
जेई - तीन से चार दिन में तुम्हारा काम हो जाएगा। आज पैसे दे जाओगे, आज ही ऑर्डर कर दूंगा। तुम्हारी केबल आ जाएगी। ट्रांसफॉर्मर के कनेक्शन हो जाएंगे। ट्रांसफॉर्मर से आगे की लाइन बिछ जाएगी।
रिपोर्टर - एक बार एसडीओ साहब से तसल्ली न कर लें?
जेई - आपको किसी से कोई बात नहीं करनी है, ठीक है। क्यों मिलना? उन्होंने तुमसे कहा है कि तुम पैसे दो उन्हें?
रिपोर्टर - जी।
जेई - तो जब बोला था तब यह नहीं कहा था कि आधा काम बीच में रोककर फिर आना। 1.5 लाख की है ट्रांसफॉर्मर की कीमत।
रिपोर्टर - हमने तो सर तीन लाख दिए हैं।
जेई - तीन दिए हैं तो तुम्हें सारा का हिसाब थोड़े मिलेगा। रसीद थोड़े मिल रही है तीन की। खंभे न लगवाए..उसमें लेबर न लगी चार दिन तक।
रिपोर्टर - एक चीज और इसको बुरा मत मानिए। लोगों को दिखाने के लिए किसी कागज पर कि इतने लाख लिए... बस दिखाने के लिए।
जेई - सही में जॉब करते हो? जॉब भी करते हो? ऐसा होता है कहीं? होता है कहीं?
दृश्य- तीन
आखिर में एसडीओ साहब के दफ्तर की बारी आई। वीडियो तो रिकॉर्ड नहीं हो पाया, लेकिन आवाज ने सारी कहानी खोल दी कि कैसे नीचे से ऊपर तक सब इस गोरखधंधे में शामिल हैं।
एसडीओ - 12000 में नहीं होने का और मैंने उस दिन भी बोला था। 15-15 हजार रुपये...आपकी कॉलोनी में कराया है। उनको 15-15 हजार रुपये खर्चा आया है।
पब्लिक - 15000 रुपये एक आदमी के?
एसडीओ - 15000 एक आदमी के।
रिपोर्टर - जेई साहब से हम लोग मिले। हमने बात भी की, लेकिन वे गुस्सा हो गए।
एसडीओ - गुस्सा ही होगा न। आपकी करी कराई बात थी।
रिपोर्टर - नहीं-नहीं हमको काम करवाना है सर।
एसडीओ - स्पष्ट बात थी कि आप 60 कनेक्शन लाओगे।
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