असम के बारपेटा जिले में 55 वर्षीय अब्दुल कैजुद्दीन के लिए बाढ़ कोई नई बात नहीं है. हालांकि इस साल इसका कोरोनोवायरस संकट के साथ आना ज्यादा जटिल है. गुवाहाटी से 130 किमी पश्चिम में, बागबेर क्षेत्र के कंचनपुर गांव में, सब्जी विक्रेता और आठ के परिवार पर बाढ़ का कहर ख़ासतौर पर बरपा है. कोरोनावायरस प्रकोप की चेतावनी के चलते उन्होंने अपने गांव से बाहर कोई कामधंधा नहीं किया और अब उनकी आखिरी उम्मीद उनका खड़ी फसलों का एक क्षेत्र था जो अब बाढ़ के पानी के नीचे है. अब्दुल ने एनडीटीवी से कहा, "हमने कई बाढ़ों का सामना किया है, लेकिन इस बार स्थिति हमारे लिए कठिन है. हमने बाढ़ के पानी के इतने बड़े हिस्से पहले नहीं देखे हैं. हमारा जीवन पूरी तरह से बर्बाद हो गया है."
उनके परिवार की स्थिति असम के बागबर में आई बाढ़ की इस लहर में दूर तक गूंजती है. अतीत की तरह, बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित ग्रामीण इलाकों में गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग ही हैं.COVID-19 लॉकडाउन के कारण इन क्षेत्रों में उनकी आजीविका प्रभावित हुई और वे अपने द्वारा उत्पादित सब्जियों और अनाज पर जीवित रहे और अब वह सब धुल गया है.
गुरुवार को बाढ़ की स्थिति यथावत बनी रही. असम के 22 जिलों के 2,053 गांव बाढ़ग्रस्त हैं. 16 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं. उनमें से 12,000 से अधिक 163 राहत शिविरों में हैं. 72,000 से अधिक हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि बाढ़ के पानी के नीचे है. बाढ़ में मरने वालों की संख्या गुरुवार को एक और मौत के साथ 34 हो गई है.इस बीच, बागबर में, 35 वर्षीय फकरुद्दीन ने एनडीटीवी टीम को बाढ़ के पानी से पूरी तरह से डूबा अपना घर दिखाया. वह एक मछुआरा है और उसके परिवार में चार लोग हैं जो उसी पर आश्रित है.
वह बाढ़ के पानी के बढ़ने के बावजूद, वह कोरोनोवायरस के डर से राहत शिविर में नहीं जाना चाहता है.फकरुद्दीन ने पूछा, "लॉकडाउन के बीच बाढ़ आ गई है. इसने हमें अपंग बना दिया है. हम इस कोरोनावायरस डर के बीच राहत शिविर में कैसे जा सकते हैं?"
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