पुणे-मुंबई एक्सप्रेस-वे (फाइल फोटो)
मुंबई:
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई सड़क हादसों के मामले में अव्वल नंबर पर है। रविवार को मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर हुए हादसे ने इस अहम सड़क के अलावा मुंबई की सड़कों पर सुरक्षा को लेकर नए सवाल खड़े किए हैं।
बीते साल मुंबई में 23 हजार से अधिक दुर्घटनाएं
साल 2015 में मुंबई में 23,468 सड़क हादसे हुए। यानी औसतन 64 दुर्घटनाएं रोज़ हुईं, जबकि दिल्ली दूसरे नंबर पर रही जहां 8,085 सड़क हादसे हुए। शहरों में और शहरों को जोड़ने वाली सड़कों पर रफ्तार जानलेवा साबित हो रही है। रविवार को मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर 17 लोगों की मौत हुई। राज्य में 2014 में सड़क हादसों में 12803 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 13212 तक पहुंच गया। शहर में तो पुलिस नशेड़ी ड्राइवरों से लेकर तेज़ रफ्तार में गाड़ी चलाने वालों को पकड़ रही है लेकिन एक्सप्रेस-वे पर हालात और मुश्किलें अलग हैं।
खतरों से भरा पुणे-मुंबई एक्सप्रेस-वे
94 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे पर पिछले साल चट्टानों ने कुछ लोगों की जिंदगी छीन ली। कई दिनों तक ट्रैफिक की भी रफ्तार धीमे रखी। इसके बाद पत्थरों को लोहे के नए जाल से बांधा गया। साल 2002 में पूरे हुए इस हाईवे पर सुरक्षा के हिसाब से कई काम अब तक अधूरे हैं। गैस कटर, जनेरेटर, स्ट्रेचर, क्रेन से लैस क्यूआरवी यानी क्विक रिस्पॉन्स गाड़ियां खरीदी तो गईं, लेकिन उनकी तैनाती महीने भर पहले ही हुई। एक्सप्रेस-वे को सीसीटीवी से लैस करने का काम 8 साल से अटका पड़ा है। 94 किलोमीटर में सुरक्षा के लिहाज़ से जरूरी ब्रिफेन तार सिर्फ 14 किलोमीटर में लगा है।ओझरडे का ट्रॉमा सेंटर अब तक शुरू नहीं हो पाया है। हाईवे सेफ्टी पेट्रोल में 43% कम कर्मचारी हैं।
सुरक्षा उपाय पुख्ता करने की कोई मियाद नहीं
इसके बावजूद सरकार सिर्फ भरोसा दे रही है, काम पूरा कब होगा, इसकी कोई मियाद नहीं। राज्य के पीडब्लूडी मंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा " सेव लाइफ फाउंडेशन और एमएसआरडीसी दोनों काम कर रहे हैं। जहां दुर्घटना घटती है, उन जगहों को चिन्हित कर लिया गया है। ब्रिफेन वायर लगाने का काम शुरू है। आप देख रहे हैं घाट पर जहां पत्थर गिरे थे वहां भी सेफ्टी नेट लगा रहे हैं, ये सब काम चल रहा है।"
शहर में 28 फीसदी दुर्घटनाओं में दुपहिया शामिल हैं, लेकिन हाईवे पर बड़ा खतरा बड़ी गाड़ियों से है। हाईवे पुलिस के आंकड़े कहते हैं 85 फीसदी दुर्घटनाएं मानवीय चूक की वजह से होती हैं, फिर भी सरकार इन हादसों से पूरी तरह पल्ला नहीं झाड़ सकती।
बीते साल मुंबई में 23 हजार से अधिक दुर्घटनाएं
साल 2015 में मुंबई में 23,468 सड़क हादसे हुए। यानी औसतन 64 दुर्घटनाएं रोज़ हुईं, जबकि दिल्ली दूसरे नंबर पर रही जहां 8,085 सड़क हादसे हुए। शहरों में और शहरों को जोड़ने वाली सड़कों पर रफ्तार जानलेवा साबित हो रही है। रविवार को मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर 17 लोगों की मौत हुई। राज्य में 2014 में सड़क हादसों में 12803 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 13212 तक पहुंच गया। शहर में तो पुलिस नशेड़ी ड्राइवरों से लेकर तेज़ रफ्तार में गाड़ी चलाने वालों को पकड़ रही है लेकिन एक्सप्रेस-वे पर हालात और मुश्किलें अलग हैं।
खतरों से भरा पुणे-मुंबई एक्सप्रेस-वे
94 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे पर पिछले साल चट्टानों ने कुछ लोगों की जिंदगी छीन ली। कई दिनों तक ट्रैफिक की भी रफ्तार धीमे रखी। इसके बाद पत्थरों को लोहे के नए जाल से बांधा गया। साल 2002 में पूरे हुए इस हाईवे पर सुरक्षा के हिसाब से कई काम अब तक अधूरे हैं। गैस कटर, जनेरेटर, स्ट्रेचर, क्रेन से लैस क्यूआरवी यानी क्विक रिस्पॉन्स गाड़ियां खरीदी तो गईं, लेकिन उनकी तैनाती महीने भर पहले ही हुई। एक्सप्रेस-वे को सीसीटीवी से लैस करने का काम 8 साल से अटका पड़ा है। 94 किलोमीटर में सुरक्षा के लिहाज़ से जरूरी ब्रिफेन तार सिर्फ 14 किलोमीटर में लगा है।ओझरडे का ट्रॉमा सेंटर अब तक शुरू नहीं हो पाया है। हाईवे सेफ्टी पेट्रोल में 43% कम कर्मचारी हैं।
सुरक्षा उपाय पुख्ता करने की कोई मियाद नहीं
इसके बावजूद सरकार सिर्फ भरोसा दे रही है, काम पूरा कब होगा, इसकी कोई मियाद नहीं। राज्य के पीडब्लूडी मंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा " सेव लाइफ फाउंडेशन और एमएसआरडीसी दोनों काम कर रहे हैं। जहां दुर्घटना घटती है, उन जगहों को चिन्हित कर लिया गया है। ब्रिफेन वायर लगाने का काम शुरू है। आप देख रहे हैं घाट पर जहां पत्थर गिरे थे वहां भी सेफ्टी नेट लगा रहे हैं, ये सब काम चल रहा है।"
शहर में 28 फीसदी दुर्घटनाओं में दुपहिया शामिल हैं, लेकिन हाईवे पर बड़ा खतरा बड़ी गाड़ियों से है। हाईवे पुलिस के आंकड़े कहते हैं 85 फीसदी दुर्घटनाएं मानवीय चूक की वजह से होती हैं, फिर भी सरकार इन हादसों से पूरी तरह पल्ला नहीं झाड़ सकती।
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