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This Article is From Feb 19, 2017

कीमतों पर नकेल के बाद मार्केट से गायब हुए कार्डिएक स्टेंट

मुंबई: सोमवार को नेशनल फार्मासुटिकल प्राइसिंग ऑथोरिटी ने कार्डिएक स्टेंट की कीमतों पर नकेल कसते हुए उनके दाम लगभग 85 फीसदी कम कर दिए. लेकिन इस फैसले के बाद कंपनियों ने फ़िर से लेबलिंग के नाम पर 3rd और 4th जनरेशन के स्‍टेंट मार्केट से हटा लिये. 66 साल के रमेश साल्‍वे दिल के मरीज़ हैं. डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने को कहा है. लेकिन ऑपरेशन में जो स्टेंट लगने हैं वो उपलब्ध नहीं हैं. सोमवार को हुई प्राइस कैपिंग के बाद 3rd और 4th जनरेशन स्टेंट अब उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में रमेश साल्‍वे के बेटे संजय साल्‍वे समझ नहीं पा रहे कि क्या किया जाये. बेहतर स्टेंट भी इस्तेमाल करना चाह रहे हैं और ऑपरेशन भी टालना नहीं चाह रहे. स्टेंट की कीमत कम हुई और कंपनियों ने दुबारा लेबल करने के नाम पर स्टेंट बाज़ार से हटा लिए. अब मरीजों के साथ डॉक्टर भी लाचार महसूस कर रहे हैं. हिंदुजा एंड होली फॅमिली हॉस्पिटल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. आनंद रॉव ने बताया, "स्थिति ऐसी है कि यही स्टेंट मौजूद हैं, लेना है तो लीजिये. बेहद ज़रूरी प्रोसीजर जिन्हें टाला नहीं जा सकता वो तो किये ही जा रहे हैं, लेकिन कुछ प्रोसीजर डिले हो रहे हैं."

स्टेंट चार किस्मों के होते हैं. फर्स्ट डी जनरेशन के स्टेंट को बैर मेटल स्टेंट कहा जाता है. इस पर कोई ड्रग-कोटिंग नहीं होती. नई किस्म के स्टेंट आने से इसकी मांग कम हुई है. कैपिंग के बाद इसकी कीमत 7,260 रुपये है. सेकेंड जनरेशन के स्टेंट को ड्रग इल्यूटिंग स्टेंट यानी डीइएस कहा जाता है. ये स्टेंट धमनियों में दवा सप्लाई करते हैं. कैपिंग से पहले इनकी कीमत 50 से 90 हज़ार रुपये थी और कैपिंग के बाद इसकी कीमत 29,600 रुपये हो गई है.

थर्ड जनरेशन के स्टेंट पहली पीढ़ियों से ज़्यादा आधुनिक होते हैं. कैपिंग से पहले इनकी कीमत 1 लाख़ 20 हज़ार से लेकर 1 लाख़ 70 हज़ार रुपये थी और अब कैपिंग के बाद इसकी कीमत 29,600 रुपये है. फोर्थ जनरेशन के स्‍टेंट को बायोरिसोरबेबल वैस्कुलर स्काफ्फोल्ड कहा जाता है. ये स्टेंट दो साल में शरीर में ही घुल जाते हैं. कैपिंग के पहले इसकी कीमत डेढ़ लाख़ से 1 लाख़ 70 हज़ार रुपये थी. कैपिंग के बाद इसकी कीमत 29,600 रुपए है. बाज़ार से 3rd और 4th जनरेशन स्टेंट हटाये गए हैं. कम्पनियों का कहना है कि बाज़ार से स्टेंट हटाने का कीमतों पर कसी नकेल से कोई लेना देना नहीं है. कम्पनियां भले ही कह रहीं हो कि बाज़ार से स्टेंट हटाने की वजह उन्हें रीलेबल करना है, लेकिन जानकार इसे सीधे-सीधे कीमत में आये बदलाव से जोड़ रहे हैं. ऐसे में इस मामले में सरकार की दखलंदाज़ी ज़रूरी है.

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