पीएम आवास योजना से वंचित बुजुर्ग महिला
रायपुर:
केन्द्र सरकार ने बड़े जोर-शोर से पीएम आवास योजना शुरू की. मगर जमीनी स्तर पर उसकी हकीकत कुछ और है. बड़े शहरों में तो शायद हितग्राहियों को फायदा मिल जाता होगा. मगर राजधानी से दूर क्या हालात हैं, इसका नमूना छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में दिख जा सकता है. यहां गांव के दबंग पर योजना के पैसे से दो-मंजिला घर बनाने का आरोप है, तो वहीं गरीब आदिवासी बुजुर्ग सामुदायिक भवन में रात काटने को मजबूर हैं.
जगतरा गांव की अंजनी बाई को आवास योजना का पैसा नहीं मिला. वो सवाल पूछने पर गुस्से में कहती हैं कि 'नहीं आया, नहीं आया तो रखे रहो... क्या करना है.' अंजनी बाई की तरह गांव में बिराजो बाई के लिए उज्जवला योजना फेल है. खाना चूल्हे में बनाती हैं, आवास योजना के मायने नहीं हैं उनके लिए. क्योंकि रात सामुदायिक भवन में बिताती हैं. घर की छत गिर गई है, मरम्मत के लिये पैसे नहीं हैं. बिराजो ने कहा कि 'दो महीना हो गया, ठंड के दिन हैं. सरपंच ने कहा है कि फरवरी के बाद होगा. अब कैसे दिन बिताऊं आप ही बताओ ना...'
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गांव में 147 परिवार ऐसे हैं, जिनके घर मिट्टी से बने हैं. इन सबके बीच कलंगपुर में गांव के दबंग का घर है, जिन्होंने अपने घर की पहली मंजिल पर प्रधानमंत्री आवास बना लिया है. अफसरों ने इसकी मंजूरी भी दी है. घर की मालकिन केकती बाई निषाद ने कहा 'मुझे मालूम नहीं है, मेरे बेटे को पता है. योजना के बारे में मुझे मालूम नहीं है. मकान सरपंच ने बनवाया है.'
वहीं मामले में शिकायतकर्ता वकील चन्दन का कहना है 'प्रधानमंत्री आवास के तहत मकान आधा अधूरा है, कई बार आवेदन दिया लेकिन मकान बनाया नहीं गया. ऐसे लोगों का बनाया गया, जिसका ढलाई वाला मकान था. उसके ऊपर बना दिया गया.'
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सपनों के आशियाने के बारे में शिकायत कलेक्टर से की गई तो वो कार्रवाई की बात कह रहे हैं. बालोद के कलेक्टर डॉ. सारांश मित्तर ने कहा योजना के अंतर्गत पात्रता की शर्तें बहुत कड़ी हैं ... कैसे घर बनेंगे, कैसी डिजाइन होगी ... इसकी जांच करवाई जाएगी.'
फिलहाल बेघरों को भरोसा मिला है, नये वित्तीय वर्ष का. यानी दो महीने वो और ठंड में ठिठुरेंगे. स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रधानमंत्री आवास योजना में हितग्राहियों का चयन उनकी हालत नहीं बल्कि शक्ल देखकर होता है. उन्हीं आवेदकों की फाइल आगे बढ़ती है जिन पर राजनीतिक रसूख का वजन रखा होता है.
VIDEO: छत्तीसगढ़ में PM आवास योजना के पैसे का गलत इस्तेमाल
जगतरा गांव की अंजनी बाई को आवास योजना का पैसा नहीं मिला. वो सवाल पूछने पर गुस्से में कहती हैं कि 'नहीं आया, नहीं आया तो रखे रहो... क्या करना है.' अंजनी बाई की तरह गांव में बिराजो बाई के लिए उज्जवला योजना फेल है. खाना चूल्हे में बनाती हैं, आवास योजना के मायने नहीं हैं उनके लिए. क्योंकि रात सामुदायिक भवन में बिताती हैं. घर की छत गिर गई है, मरम्मत के लिये पैसे नहीं हैं. बिराजो ने कहा कि 'दो महीना हो गया, ठंड के दिन हैं. सरपंच ने कहा है कि फरवरी के बाद होगा. अब कैसे दिन बिताऊं आप ही बताओ ना...'
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गांव में 147 परिवार ऐसे हैं, जिनके घर मिट्टी से बने हैं. इन सबके बीच कलंगपुर में गांव के दबंग का घर है, जिन्होंने अपने घर की पहली मंजिल पर प्रधानमंत्री आवास बना लिया है. अफसरों ने इसकी मंजूरी भी दी है. घर की मालकिन केकती बाई निषाद ने कहा 'मुझे मालूम नहीं है, मेरे बेटे को पता है. योजना के बारे में मुझे मालूम नहीं है. मकान सरपंच ने बनवाया है.'
वहीं मामले में शिकायतकर्ता वकील चन्दन का कहना है 'प्रधानमंत्री आवास के तहत मकान आधा अधूरा है, कई बार आवेदन दिया लेकिन मकान बनाया नहीं गया. ऐसे लोगों का बनाया गया, जिसका ढलाई वाला मकान था. उसके ऊपर बना दिया गया.'
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सपनों के आशियाने के बारे में शिकायत कलेक्टर से की गई तो वो कार्रवाई की बात कह रहे हैं. बालोद के कलेक्टर डॉ. सारांश मित्तर ने कहा योजना के अंतर्गत पात्रता की शर्तें बहुत कड़ी हैं ... कैसे घर बनेंगे, कैसी डिजाइन होगी ... इसकी जांच करवाई जाएगी.'
फिलहाल बेघरों को भरोसा मिला है, नये वित्तीय वर्ष का. यानी दो महीने वो और ठंड में ठिठुरेंगे. स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रधानमंत्री आवास योजना में हितग्राहियों का चयन उनकी हालत नहीं बल्कि शक्ल देखकर होता है. उन्हीं आवेदकों की फाइल आगे बढ़ती है जिन पर राजनीतिक रसूख का वजन रखा होता है.
VIDEO: छत्तीसगढ़ में PM आवास योजना के पैसे का गलत इस्तेमाल
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