यह कहानी है एक मां-बेटी के संघर्ष की. संघर्ष से टूटकर बिखरने के बजाय, संघर्ष से लड़कर निखरने की कहानी. मां कभी स्कूल नहीं गई पर उन्हें पढ़ाई की कीमत पता थी. बेटी बारहवीं में थी तब पिता का साया सर से उठा गया. 12वीं की बोर्ड परीक्षा छूटते-छूटते बची. तिवारी सर ने प्रेरित किया था उस अनपढ़ मां की बेटी को कि परीक्षा मत छोड़ना. परीक्षा दी तो अपने स्कूल की टॉपर बन गई.
इसके बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गई तो शुरुआत में इंग्लिश की वजह से परेशानी हुई. असल में स्कूल की पूरी पढ़ाई तो हिंदी माध्यम से हुई थी. अपने हिस्से की मुश्किलों को झेलकर भी मां ने बेटी को घर से दूर शहर में भेजने में एक पल नहीं सोचा. इंजीनियरिंग के बाद नौकरियों के ऑफर आए, उसमें दो सरकारी नौकरियां भी शामिल थीं, पर नहीं उसके दिल में तो कुछ और बनने की तमन्ना थी सो वो बन गई. वो अब बन गई डिप्टी कलेक्टर.
21 साल की निकिता मंडलोई इस साल मध्यप्रदेश सिविल सेवा परीक्षा में केटेगरी टॉपर रहीं और ओवरऑल उनकी 23वीं रैंक आई है. खरगोन की निकिता को यह सफलता पहली ही कोशिश में मिली है.
निकिता कहती हैं कि जो भी करना है उसे हमें पूरे मन से करना चाहिए. खुद उन्होंने भी यही किया तभी तो इंजीनियरिंग के बाद उन्होंने प्लेसमेंट नहीं लिया. निकिता की मां बिलकुल भी पढ़ी लिखी नहीं हैं पर वे हमेशा बेटी को पढ़ने की अहमियत समझाती थीं. स्कूल के दिनों में जब निकिता के पिता नहीं रहे तब भी मां ने बेटी को बेटे से कम नहीं समझा.
जब निकिता को पढ़ने के लिए इंदौर जाना था तो बड़े भाई के मन में बहन को लेकर स्वाभाविक चिंता थीं. छोटे से गांव की लड़की इतने बड़े शहर में अकेले कैसे रहेगी. पर मां ने तय किया बेटी इंदौर जाएगी. फिर निकिता इंदौर चली गईं. सरकारी स्कूल और हिंदी माध्यम से पढ़ने के बावजूद निकिता ने खुद को कभी इंग्लिश माध्यम के छात्रों के मुकाबले कम नहीं समझा. वीडियो देखकर वे खुद के व्यक्तित्व को लगातार संवारती रहीं.
VIDEO : महिलाओं के लिए मिसाल बनीं लड़कियां
आज निकिता अपने गांव के बच्चों को अपनी संघर्ष की कहानी बताकर उन्हें भी संघर्ष करने के लिए प्रेरित कर रहीं हैं. अब वे उन सबकी आदर्श बन गईं हैं.
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