
सरकारी फ़ाइलों के तहख़ाने में दबी एक कहानी, जो अगर सच निकली, तो ये मध्यप्रदेश के इतिहास का सबसे बड़ा सैलरी घोटाला साबित हो सकती है. NDTV के हाथ लगे गोपनीय दस्तावेज़ से खुलासा हुआ है कि राज्य के 50,000 कर्मचारियों की सैलरी बीते 5-छह महीनों से ट्रेज़री से नहीं निकाली गई है. एम्पलॉई कोड हैं, पहचान नहीं. नाम हैं, काम नहीं. पद हैं, पदचिन्ह नहीं ... कुछ वैसे ही कि "कर्मचारी तो हैं, मगर सरकारी खाते में जैसे भूतों ने Aadhar लिंक करवा लिया हो!"
NDTV को मिला खजाने से निकला काग़ज़
23 मई को ट्रेज़री और अकाउंट्स विभाग के कमिश्नर भास्कर लक्षकार ने सारे कोषालय अधिकारी (DDO) को जो चिट्ठी लिखी है उसकी कॉपी NDTV के पास है. इसमें कहा गया है: "IFMIS सिस्टम में ऐसे रेगुलर और नॉन-रेगुलर कर्मचारियों का डाटा संलग्न है जिनकी सैलरी दिसंबर 2024 से नहीं निकली. इनके कोड सक्रिय हैं लेकिन मृत्यु या सेवानिवृत्ति तिथि की IFMIS में प्रविष्टि नहीं हुई है एवं IFMIS पोर्टल पर Exit प्रोसेस पूरा नहीं हुआ है, फिर भी वेतन नहीं निकाला जा रहा है."
आंकड़े जो होश उड़ा दें:
- 40,000 रेगुलर कर्मचारी
- 10,000 टेम्परेरी स्टाफ
- ₹230 करोड़ की रुकी हुई सैलरी
- 6,000 से ज्यादा DDOs अब रडार पर
भूत-कोड सक्रिय, सैलरी निष्क्रिय!
चौंकाने वाली बात ये है कि इन कर्मचारियों के कोड एक्टिव हैं, यानी वेतन किसी भी दिन निकाला जा सकता है. CTA भास्कर लक्षकार ने NDTV कहा कि हम नियमित रूप से डेटा एनालिसिस करते हैं. यह अंतर देखा गया है. स्पष्ट कर दूं कि इन खातों से सैलरी निकाली नहीं जा रही. यह जांच संभावित गड़बड़ी को रोकने की दिशा में है.
बड़ा सर्च ऑपरेशन शुरू
राज्यभर में अब सभी DDO से सर्टिफिकेट मांगा गया है कि उनके ऑफिस में कोई "अनधिकृत" कर्मचारी काम नहीं कर रहा. एक सीनियर वित्त अधिकारी NDTV से कहते हैं कि अगर किसी की सैलरी छह महीने से नहीं निकली, और वह Exit भी नहीं हुआ है — तो ये सीधा-सीधा शक पैदा करता है. हर विभाग के पास 15 दिन जवाब देने के है. कौन इस लिस्ट में है, कौन काम पर है, और कौन सिर्फ सैलरी में दर्ज है… नाम में मौजूद लेकिन शासन में ग़ायब है.
वित्त मंत्री से टकराव... और चुप्पी
NDTV की टीम मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा के घर पहुंची और उनसे जैसे ही सवाल पूछा गया कि 50 हज़ार कर्मचारियों की सैलरी छह महीने से क्यों नहीं निकली?" इस पर मंत्री जी घबरा गए. उन्होंने जवाब दिया कि जो भी प्रक्रिया होती है, नियमों के अनुसार होती है. जब उनसे पूछा गया कि क्या ये कोई बड़ा घोटाला हो सकता है?" इस पर उन्होंने कहा कि जो भी होगा, नियम के अनुसार होगा... ठीक है... ठीक है...” ये कहकर मंत्री जी बिना कैमरे की तरफ देखे भीतर चले गए.
अगर हर घोटाले का जवाब “ठीक है…” से दिया जाए, तो CAG की रिपोर्ट को कविता संग्रह में तब्दील कर देना चाहिए. यह सिर्फ सैलरी रुकने का मामला नहीं है. अगर इन 50 हज़ार में से कुछ भी 'भूत कर्मचारी' निकले, तो सवाल उठता है: इस पूरे सिस्टम को कौन चला रहा है? क्या सैलरी बैकडेट में निकालकर चुपचाप ले जाई जा सकती है? क्या ₹230 करोड़ का फर्जीवाड़ा पहले से दबा हुआ है?
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