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This Article is From Jul 14, 2020

मध्य प्रदेश: लॉकडाउन का सबसे बुरा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर, लगभग 12 लाख बच्चे कुपोषण की चपेट में

सरकारी आंकड़ें कहते हैं कि राज्य में लगभग 42 फीसद बच्चे कुपोषित हैं, 

मध्य प्रदेश: लॉकडाउन का सबसे बुरा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर, लगभग 12 लाख बच्चे कुपोषण की चपेट में
बच्चों में रोजाना की आवश्यकता के हिसाब से 693 कैलोरी यानी 51 फीसदी पोषण की कमी दर्ज की गई.
उमरिया:

मध्यप्रदेश में कई जिले कुपोषण की चपेट में हैं, राज्य में लगभग 12 लाख बच्चे इसकी चपेट में हैं कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन का सबसे बुरा असर बच्चों और गर्भवत महिलाओं के पोषण पर पड़ा है. कई जिलों में पोषण आहार बंट भी नहीं पाया है. मध्यप्रदेश का आदिवासी बहुल उमरिया जिला कुपोषण की चपेट में है. कोरोना काल में पोषण व्यवस्था चौपट हो चुकी है. शहर से बस 8 किलोमीटर दूर भर्रीटोला में माया बैगा की बेटी कुपोषण की शिकार है, हाथ पैर कमजोर हैं. वो बताती हैं कोई सरकारी मदद नहीं मिली, बच्चों में वजन होता ही नहीं, पोषण आहार नहीं मिलता है कभी जाते हैं तो भी नहीं मिलता है.

अमड़ी गांव में लाली बैगा का बच्चा कुपोषित है, तो खैरा गांव में कुपोषण की और भी बुरी तरह स्थिति है, बुंदा बाई का 5 साल का बेटा जन्म से कुपोषण का शिकार है. चलने फिरने में दिक्कत है, एक बार एनआरसी से रेफर किया, फिर कोई झांकने नहीं आया. तकलीफ है अपने साथ से नहीं खा सकता है, उमरिया में 3 बार भर्ती हो चुके हैं कोई आराम नहीं है, कुछ भी नहीं मिला है.


गांजर गांव में मैकू सिंह का परिवार बहुत परेशान हैं, 4 महीने से अचानक मैकू के आंखों की रोशनी जाने लगी, इलाज के पैसे नहीं थे, पत्नी की मानसिक स्थिति बिगड़ गई। लॉकडाउन में दो माह से खाने-पीने के लाले पड़ गए. इसके चलते मासूम दुधमुंही बेटी अतिकुपोषित हो गई है. 

ये हालात तब हैं जब कुपोषण उमरिया छोड़ो अभियान के तहत 15 अगस्त तक जिले से कुपोषण भगाने का संकल्प लिया गया था. अब कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव कहते हैं. सामान्य समय में आंगनबाड़ी में बुलाकर पोषण आहार देते हैं, इस समय आंगनबाड़ी नहीं खोल पा रहे हैं प्रशासन ने व्यवस्था की है वो आहार होता है जिसमें पोषण आहार होता है वो घर घर बांट रहे हैं. विकास संवाद नाम की संस्था ने 6 जिलों में 45 दिनों तक पोषण आहार का अध्ययन कर एक रिपोर्ट जारी की है. जिसके मुताबिक बच्चों में रोजाना की आवश्यकता के हिसाब से 693 कैलोरी यानी 51 फीसदी पोषण की कमी दर्ज की गई. वहीं गर्भवती महिलाओं में रोजाना 2157 कैलोरी यानी 67 फीसदी और स्तनपान कराने वाली माताओं में 2334 कैलोरी यानी 68 फीसदी की कमी आई. 

प्रदेश में चलने वाले विभिन्न पोषण और स्वास्थ्य कार्यक्रम 70 से 100 फीसदी तक निष्क्रिय रहे. रिपोर्ट में राज्य के 122 गांवों के परिवारों के पोषण का अध्ययन किया गया, जिसमें पाया कि 35 प्रतिशत परिवारों को इस दौरान कोई टीएचआर (टेक होम राशन) का पैकेट नहीं मिला, जबकि 38 फीसदी परिवारों को दो पैकेट ही मिले. 3 से 6 साल के 60 फीसदी बच्चों को रेडी टू ईट फूड नहीं मिला है. लॉकडाउन से पहले मां अपने बच्चे को औसतन 6 बार स्तनपान करवा पाती थी जो लॉकडाउन में बढ़कर दस से बारह बार हो गया जबकि उन्हें खुद पोषण नहीं मिल रहा था. प्राथमिक स्कूल के 58 फीसदी बच्चों को मिड डे मील की जगह कोई भोजन भत्ता नहीं दिया गया.

विकास संवाद और राइट टू फूड से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन कहते हैं, अभी हम 500 कैलोरी का पोषण आहार दे रहे हैं, लेकिन जरूरत ये है कि 1300-1400 कैलोरी का दें, प्रसव घर पर हुए हैं, उनकी स्थिति निगरानी नहीं हुई है, कुपोषण  ऊंचे स्तर पर ना जाए, अभी तक के अनुभव ये बता रहे हैं मध्यप्रदेश में कुपोषण में 5-10 फीसद वृद्धि हुई होगी ये परिस्थिति हमें 10-15 साल पहले लेकर जा सकती है. 

लॉकडाउन में राशन बांटने की खूब चर्चा हुई, लेकिन इन 6 जिलों में सर्वे से सामने आया कि सार्वजानिक वितरण प्रणाली के तहत 52 प्रतिशत परिवारों को योजना का पूरा लाभ मिला है, 18 प्रतिशत परिवार आंशिक रुप से लाभान्वित हुए हैं. 30 फीसदी परिवार योजना से वंचित रहे. करीब 9 फीसदी परिवार बीपीएल कार्ड होने के बाद भी राशन से वंचित रहे, पांच सदस्यों वाले परिवार को औसत 65 किलोग्राम मासिक राशन की जरूरत होती है लेकिन उन्हें केवल 25 किलोग्राम राशन ही मिला.

सरकारी आंकड़ें कहते हैं कि राज्य में लगभग 42 फीसद बच्चे कुपोषित हैं, कांग्रेस के वक्त महिला बाल विकास मंत्री इमरती देवी ने आंगनवाड़ी केन्द्रों में अंडा दिये जाने की बात कही, बीजेपी ने खूब विरोध किया, अब वही बीजेपी में आ गईं हैं, फिर से वही मंत्रालय मिला है, पता नहीं विरोध करेंगी या पार्टी नेताओं को मना लेंगी.


सियासत और कुर्सी बचाने गिराने से फुर्सत मिल जाए तो शायद माननीय उन पर भी नज़रे-ए-इनायत दिखा दें जो वोट बैंक नहीं.
 

पोषण भारत कार्यक्रम : कुपोषण हमारे देश की बड़ी समस्या

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