
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
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नवजात को घंटों बाद बमुश्किल एंबुलेंस नसीब हुई.
मां-बाप ड्रिप हाथ में लेकर अस्पताल में दौड़ लगाते रहे.
अस्पताल में 3-3 एंबुलेंस खड़ी थीं लेकिन किसी में ड्राइवर नहीं.
बच्चे को हाथ में उठाए आशा कार्यकर्ता जानकी सेन ने भी घबराई आवाज़ में बताया नरसिंहपुर ज़िला अस्पताल ले जाना है उसको जल्दी ऑक्सीजन लगना है. अस्पताल में 3-3 एंबुलेंस खड़ी थीं लेकिन किसी में ड्राइवर नहीं.
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मीडिया के पहुंचने के बाद आनन- फानन में 108 जननी एक्सप्रेस को बुलाया गया और इमरजेंसी में ऑक्सीजन लगाकर नवजात को नरसिंहपुर रेफर किया जा सका. डॉक्टर भी बेबस दिखे उनका कहना है ऐसी तस्वीरें वो रोज देखते हैं. करेली अस्पताल में तैनात डॉक्टर मधुसूदन उपाध्याय ने कहा कहीं एंबुलेंस में ऑक्सीजन नहीं है, कहीं ड्राइवर नहीं है. यहां तो जीवन मृत्यु से संघर्ष करता बच्चा होता है तो इसी हालत में नरसिंहपुर भेजना पड़ता है दो ड्राइवर अस्पताल के हैं लेकिन जिसकी आज ड्यूटी है वो उपलब्ध नहीं है.
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एसएएस सर्वे के मुताबिक मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मौत के आंकड़े लगभग 38 फीसद हैं, प्रदेश के 51 जिलों के 250 अस्पतालों में डॉक्टर की कमी है.- गायनॉकोलॉजिस्ट के 54 फीसदी पद खाली हैं, और शिशु रोग विशेषज्ञों के 40 फीसदी पद खाली हैं. नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी है, एंबुलेंस है तो लेकिन चलाने वाला नहीं. मध्यप्रदेश की 7 करोड़ आबादी पर बमुश्किल 5000 सरकारी डॉक्टर हैं जरूरत इसकी तिगुनी संख्या की है. सरकार ने कुछ दिनों पहले विज्ञापन निकालकर कहा डॉक्टर जितनी तनख्वाह चाहते हैं बताएं और नौकरी पाएं लेकिन कामयाबी नहीं मिली ऐसे में वाकई लगने लगा है मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को दवा की नहीं दुआ की जरूरत है.
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