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बेतहाशा खर्च क्यों? 1 पेड़ के रखरखाव के लिए मुंबई मेट्रो कर रही 2 लाख रुपए की राशि खर्च, RTI से हुआ खुलासा

मुंबई मेट्रो रेल कॉपरपोरेशन लिमिटेड ने 12 करोड़ रुपये की लागत से 584 पेड़ लगाए हैं. वॉचडॉग वॉचडॉग फाउंडेशन को आरटीआई से यह जानकारी मिली है.

बेतहाशा खर्च क्यों? 1 पेड़ के रखरखाव के लिए मुंबई मेट्रो कर रही 2 लाख रुपए की राशि खर्च, RTI से हुआ खुलासा
मुंबई के आरे में मेट्रो कारशेड से कुछ ही दूर कई ट्रांसप्‍लांट पेड़ों की हालत खराब है. (फाइल फोटो)
मुंबई:

मॉनसून के सीजन में बहुत से लोग पेड़ लगाते हैं. धरती को रहने लायक बनाए रखने में पेड़ों का योगदान किसी से छिपा नहीं है, लेकिन एक पेड़ लगाने और उसके रखरखाव की कीमत 2 लाख रुपये हो तो क्‍या आप यह बात हजम कर सकते हैं? आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के बाद मुंबई मेट्रो विवादों में है. मुंबई मेट्रो प्रोजेक्ट पर काम कर रही मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (Mumbai Metro Rail Corporation Limited) के जवाब पर सवाल उठ रहे हैं. इसके बाद NDTV की टीम आरे में मेट्रो कार शेड के पास पहुंची और उसने ट्रांसप्‍लांट किए गए कई पेड़ों का बुरा हाल अपने कैमरे पर रिकॉर्ड किया है. 

MMRCL देश की आर्थिक राजधानी में मेट्रो लाइन 3 प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. प्रोजेक्ट के तहत पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने पर होने वाले खर्चे को लेकर MMRCL विवादों में है. वॉचडॉग फाउंडेशन द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड ने हैरान करने वाली जानकारी दी है. आरटीआई के तहत पूछे गए सवालों के जवाब में MMRCL ने बताया कि करीब 12 करोड़ रुपये की लागत से 584 पेड़ लगाए गए हैं. आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि टेंडर, एडवांस नर्सरी के पौधों की सप्लाई, उनकी डिलीवरी, मेंटेनेंस और प्लांटेशन के लिए था. प्लांटेशन के बाद मेंटेनेंस पीरियड 3 साल का है. यानी एक पेड़ लगाने और उसके रखरखाव पर करीब 2 लाख रुपये प्रति पेड़ खर्च किया गया है. 

कई संस्‍थाएं 200 रुपये में भी लगा रही पेड़ 

मुंबई के आरे में मेट्रो कारशेड से कुछ ही मीटर की दूरी पर ट्रांसप्‍लांट पेड़ पूरी तरह से सूख चुका है. दूसरे बड़े पेड़ में लोहे की कील है. बताया जाता है कि बीएमसी वृक्षारोपण अभियान में एक पौधे पर करीब आठ सौ रुपये खर्च करती है, लेकिन उस पर भी कुछ संस्थाओं ने ज्‍यादा पैसे खर्च करने के आरोप लगाए थे. बहुत सी संस्‍थाएं 200 रुपये में पौधे लगवा रही हैं. इसलिए दो लाख रुपये के बेतहाशा खर्च पर बड़े सवाल उठ रहे हैं.

584 पेड़ों पर 12 करोड़ की राशि खर्च : पिमेंटा 

वॉचडॉग फाउंडेशन के संस्थापक एडवोकेट गॉडफ्रे पिमेंटा और निकोलस अल्मेइडा इस बेतहाशा खर्च पर जांच की मांग कर रहे हैं. गॉडफ्रे पिमेंटा ने कहा कि जब मेट्रो कार शेड आरे में लाया गया था तो 2,298 पेड़ काटने की मंजूरी ली गई थी. फिर दूसरी बार एप्लीकेशन दी गई, जिसमें 531 काटने का प्रस्ताव और आखिर में 270 पेड़ काटने का प्रस्‍ताव रखा गया. बदले में यहां पेड़ों को ट्रांसप्‍लांट किया गया और नए पेड़ भी लगाए गए.

गॉडफ्रे पिमेंटा ने कहा कि पेड़ की लोकेशन की जानकारी नहीं दी गई तो दोबारा आरटीआई डाली. फिर पता चला कि 584 पेड़ों पर बारह करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. हर पेड़ पर करीब 2 लाख 5 हजार रुपये का खर्च आया है. यदि इनका मेंटेनेंस किया गया है तो ये खराब कैसे हुए. यह सरासर फ्रॉड हुआ है. 

मेट्रो प्रोजेक्‍ट में भी स्‍कैम हुआ होगा : अल्मेइडा

निकोलस अल्मेइडा ने कहा कि इतना खर्च अगर पेड़ पर कर रहे हैं तो मुझे अंदेशा है कि मेट्रो प्रोजेक्ट में भी स्‍कैम हुआ होगा. यह मेट्रो प्रोजेक्‍ट को 23,000 करोड़ रुपये का बताते हैं.

अल्मेइडा ने सवाल किया कि यह कैसी मेंटेनेंस? उन्‍होंने कहा कि यहां पर लोग शौच के लिए आते हैं. यहां न खाद डाली जाती है और न ही पेड़ों की देखरेख की जाती है. उन्‍होंने कहा कि महाराष्‍ट्र के पर्यावरण मंत्री सुधीर मुनगंटीवर कहते हैं कि एक साल में 5 लाख पेड़ लगाए गए. वह पेड़ कहां है? चुनाव में यह पर्यावरण का बड़ा मुद्दा बन सकता है. 

काटे गए पेड़ों से तीन गुना पेड़ लगाने की शर्त 

इस परियोजना को लेकर पहले कहा गया था कि इससे 5,012 पेड़ प्रभावित होंगे, जिनमें से 1,331 काटे जाएंगे और शेष 3,681 को शहर के अन्य हिस्सों में फिर से लगाया जाएगा. इस तरह के कांट्रेक्‍ट की शर्तों के अनुसार, प्रभावित पेड़ों को ट्रांसप्‍लांट करने और काटे गए पेड़ों की भरपाई के लिए नए पेड़ लगाने हैं. नियमानुसार काटे गए पेड़ों की संख्या से तीन गुना अधिक पेड़ लगाए जाने चाहिए और कम से कम तीन साल तक उनका रखरखाव करना चाहिए. 

इन सभी शर्तों को देखते हुए MMRCL से लगाए गए पेड़ों की संख्या के बारे में स्पष्ट जानकारी देने की मांग की गई है, क्‍योंकि यह किसी भी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी हासिल करने के प्रमुख मानदंडों में से एक है. 

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