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This Article is From Sep 21, 2022

आर्थिक मार झेल रहे किसान दशरथ लक्ष्‍मण केदारी के सुसाइड नोट के बाद 'अन्‍नदाताओं' की हालत पर चर्चा तेज लेकिन..

पुणे के जुन्नर तहसील में ऐसे ही एक गांव वडगांव आनंद में 42 साल के किसान दशरथ लक्ष्मण केदारी ने पहले जहर पिया और फ़िर अपने ही खेत में बने तालाब में डूबकर जान दे दी.

आर्थिक मार झेल रहे किसान दशरथ लक्ष्‍मण केदारी के सुसाइड नोट के बाद 'अन्‍नदाताओं' की हालत पर चर्चा तेज लेकिन..
प्रतीकात्‍मक फोटो

महाराष्ट्र में किसानों की खुदकुशी कोई नई बात नहीं है लेकिन पुणे के एक किसान की खुदकुशी ने फिर देश में किसानों की 'दुर्दशा' पर चर्चा तेज कर दी है. किसान दशरथ लक्ष्मण केदारी ने मौत को गले लगाने के पहले चिट्ठी लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की बधाई तो दी लेकिन देश में किसानों की मौजूदा दुर्दशा के लिए मोदी की नीतियों और निष्क्रियता को जिम्मेदार ठहराया. विदर्भ की तुलना में पश्चिम महाराष्ट्र के किसान ज्यादा संपन्न हैं फिर क्यों दशरथ केदारी को खुदकुशी करनी पड़ी ? NDTV संवाददाता ने इसकी पड़ताल की. राज्‍य के ग्रामीण इलाकों में सड़क पर बाजारों की रौनक देख लगता है कि सभी के अच्छे दिन आ गए हैं, लेकिन सड़क छोड़कर गांव में आगे बढ़ने पर जीने के लिए आम आदमी के संघर्ष की हकीकत सामने आने लगती है. पुणे के जुन्नर तहसील में ऐसे ही एक गांव वडगांव आनंद में 42 साल के किसान दशरथ लक्ष्मण केदारी ने पहले जहर पिया और फ़िर अपने ही खेत में बने तालाब में डूबकर जान दे दी. खास बात है कि केदारी ने अपने सुसाइड नोट में पीएम नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया है इसलिए अब पूरे देश में किसानों की दुर्दशा पर चर्चा शुरू हो गई है. लक्ष्‍मण केदारी के साले गणेश वाघमारे कहते हैं, " प्याज, टमाटर को बाजार भाव नहीं मिल रहे. प्रधानमंत्री को जैसा काम करना चाहिए था वैसा किया नहीं, इसका उनको (दशरथ लक्ष्मण केदारी को)बड़ा दुख था." 

केदारी के पास अपनी 30 गुंठा जमीन थी, दूसरों के खेत लेकर भी वे खेती किया करते थे लेकिन भारी बारिश की वजह से इस बार उनकी सोयाबीन और टमाटर की पूरी फसल बर्बाद हो गई.ऊपर से खेती के लिए अलग-अलग सहकारी बैंकों, फाइनेंस कंपनियों और परिचितों से लिए लगभग 8 से 10 लाख रुपये के कर्ज का बोझ.  सरपंच संतोष चौगुले बताते हैं, "दो साल कोरोना महामारी थी, फिर बारिश आ गई. सरकार कभी  प्याज का निर्यात बंद-चालू करती रहती है. माल बिकता नहीं है. ऊपर से लोन और उसका ब्‍याज."  केदारी के छोटे साले विजय  ने बताया किप्याज की फसल अच्छी हुई थी और सारी उम्मीद अब 20 टन प्याज से ही थी लेकिन प्याज का निर्यात बंद होने से उसका सही बाजार भाव नही मिल रहा था जिससे वो (केदारी) निराश हो गए थे.

दशरथ केदारी की ही नहीं, आसपास के सभी खेतों में बारिश का पानी भरा होने से लगभग पूरी खेती चौपट हो गई है. गांव के सरपंच और सोसायटी के चेयरमैन  सचिन वालुंज ने बताया कि सरकार सिर्फ वादा करती है, पंचनामा करती है लेकिन आर्थिक मदद नहीं मिलती. 42 साल के दशरथ केदारी वडगांव आनंद में ससुराल है यहां उन्हें खेत मिला था इसलिए पिछले 7-8 साल से यहां रहकर खेती कर रहे थे. मौत के बाद उनकी पत्नी और बच्चे मूल गांव चले गए हैं. दशरथ लक्ष्मण केदारी की पत्‍नी शांता बताती हैं, "चार महीने से घर में कुछ इनकम नहीं थी. खाने की मारामारी चल रही है, बच्चों की पढ़ाई का खर्चा ..कुछ दिनों से वे परेशान से रहते थे. लगा ही नहीं कि ऐसा करेंगे." दशरथ केदारी की खुदकुशी नोट के बाद किसानों की दुर्दशा पर चर्चा शुरू हो गई है. राजनीतिक बयानबाजी भी हो रही है लेकिन किसी भी विपक्षी  या सत्ताधारी पार्टी का नेता अभी तक इनके परिवार वालों से मिलने या सुध लेने नहीं आया है. सिर्फ उप सभापति नीलम गोर्हे की तरफ से आर्थिक मदद मिली है और उन्होंने फोन पर बात की है.

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