
- ठाकरे भाइयों ने 5 जुलाई को एकसाथ मोर्चा खोलने की घोषणा की है.
- यह मोर्चा हिंदी के विरोध और मराठी मानुस को एकजुट करने के लिए है.
- 20 साल में पहली बार उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एकसाथ आ रहे हैं.
- ठाकरे भाइयों के इस ऐलान ने महाराष्ट्र में सियासी गहमागहमी बढ़ा दी है.
महाराष्ट्र में तीन साल पहले शिवसेना ऐसी बिखरी कि उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी का मराठी वोट संभाल नहीं पाए. उनके चचेरे भाई राज ठाकरे का सियासी गणित भी शून्य पर अटका नजर आ रहा है. अब निकाय चुनाव से पहले महाराष्ट्र की सियासत में वो हो रहा है, जो पिछले 20 साल में नहीं हुआ. दोनों भाई साथ आ रहे हैं. आगामी 5 जुलाई को हिंदी के खिलाफ दोनों एकसाथ मोर्चा खोलेंगे. ठाकरे भाइयों के इस ऐलान ने सियासी गहमागहमी बढ़ा दी है.
राज ठाकरे ने की थी पहल?
उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सांसद संजय राउत ने राज और उद्धव की एकसाथ की तस्वीर पोस्ट की, फिर कहा कि राज ठाकरे का फ़ोन आया था. बोले कि उद्धव साहब ने 7 तारीख को मोर्चा निकालने की बात कही है और मैं 6 को निकाल रहा हूं. यह ठीक नहीं लग रहा कि मराठी भाषा को लेकर अलग-अलग मोर्चा निकले. अगर आंदोलन साथ किया जाए तो ज्यादा असर पड़ेगा और मराठी भाषियों को भी अच्छा लगेगा.
जय महाराष्ट्र!
— Sanjay Raut (@rautsanjay61) June 27, 2025
"There will be a single and united march against compulsory Hindi in Maharashtra schools. Thackeray is the brand!"
@Dev_Fadnavis
@AmitShah pic.twitter.com/tPv6q15Hwv
संजय राउत ने आगे कहा कि इसके बाद मैंने उद्धव ठाकरे से बात की. उनका कहना था कि बात तो सही है. फिर तय हुआ कि दोनों अब 5 तारीख को एकसाथ मोर्चा और आंदोलन करेंगे. हालांकि जो 10:00 बजे का समय रखा गया है, वह ठीक नहीं है. हम दोनों से बातचीत करेंगे. मोर्चा अब कहां और कैसे करना है, इसके बारे में जल्द बताएंगे.
MNS ने कहा, ये साथ सिर्फ मोर्चे के लिए
संजय राउत के इस ऐलान पर एमएनएस ने भी अपनी मुहर लगाई. ग़ैर-मराठी भाषियों के लिए हिंदी में बात करने से मना करके अंग्रेज़ी में कहा कि मातृभाषा मराठी को बचाने के लिए ठाकरे भाई साथ आ रहे हैं. याद रहे, ये सिर्फ़ मोर्चे के लिए है. ऐसे में गठबंधन को लेकर सस्पेंस बरकरार है. एमएनएस तो मोर्चे में शामिल होने का आमंत्रण बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना को भी भेज रही है.
दूसरे दलों को भी साथ लाने का दावा
राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता संदीप देशपांडे ने कहा कि राज ठाकरे ने फोन करके कहा था कि मराठी भाषा के मुद्दे पर अलग-अलग नहीं दिखना चाहिए, इसलिए हमने 5 तारीख निर्धारित की है. इस मोर्चे में दोनों (उद्धव की शिवसेना और एनएनएस) साथ में शामिल होंगे. उन्होंने आगे कहा कि हम महाराष्ट्र की अन्य पार्टियों से भी बात करेंगे और उन्हें एक साथ लाने की कोशिश करेंगे. बीजेपी, (एकनाथ) शिंदे को भी इस मोर्चे में बुलाया जाएगा. हम सभी मराठी मानुस से अपील कर रहे हैं.
शिंदे गुट का सवाल- पहले समर्थन, अब विरोध क्यों
हिंदी के खिलाफ संयुक्त मोर्चे के ऐलान पर सत्तापक्ष के नेताओं ने उद्धव ठाकरे को घेरना शुरू कर दिया है. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री उदय सामंत कह रहे हैं कि उद्धव ठाकरे ने ही जनवरी 2022 में बतौर मुख्यमंत्री राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत हिंदी को अनिवार्य करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, फिर अब विरोध क्यों कर रहे हैं? उन्होंने ये भी कहा कि राज और उद्धव अगर किसी मोर्चे में साथ आ रहे हैं तो इसका मतलब ये थोड़े ही है कि इनकी युति हो रही है.
एकनाथ शिंदे गुट के नेता उदय सामंत ने कहा है कि जनवरी 2022 में उद्धव ठाकरे जब मुख्यमंत्री थे, तब डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति ने पहली से 12वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाने की सिफारिश की थी. इस प्रस्ताव को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली राज्य कैबिनेट ने ही मंजूरी दी थी तो अब उद्धव क्यों विरोध कर रहे हैं? जिन लोगों ने हिंदी को अनिवार्य किया, वही आज विरोध कर रहे हैं.
भाइयों की नजदीकी पर बीजेपी का नो कमेंट
निकाय चुनाव से पहले ठाकरे के साथ बीजेपी के मुद्दे उठाने पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे. अब बीजेपी राज ठाकरे को भी याद दिला रही है कि हिंदी को अनिवार्य करने की मंज़ूरी तीन साल पहले उद्धव ठाकरे ने ही दी थी और इसमें कांग्रेस-एनसीपी का साथ मिला था. हालांकि भाई-भाई की नज़दीकियों पर बीजेपी फ़िलहाल नो कमेंट बोल रही है.
पारिवारिक नहीं, राजनीतिक मजबूरी!
बहरहाल ठाकरे भाइयों की नज़दीकी के पारिवारिक नहीं, राजनीतिक मायने ज्यादा स्पष्ट हैं. महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे परिवार का दबदबा कम होता जा रहा है.जब से एकनाथ शिंदे ने उद्धव से शिवसेना छीनी है, उद्धव का मराठी वोट बिखरता दिख रहा है. एमएनएस की ताकत भी धीरे-धीरे कम हो गई है. राज ठाकरे मुद्दों से भटकते नजर आए हैं. चुनाव में तो खाता भी नहीं खोल पाए. ऐसे में महाराष्ट्र के आगामी निकाय चुनाव से पहले ठाकरे ब्रांड को मज़बूत करने का ये मौक़ा दोनों ही नहीं छोड़ना चाहते.
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