
- धनतेरस पर्व पर उज्जैन के कुबेर मंदिर में देशभर से श्रद्धालु कुबेर भगवान की पूजा और आराधना के लिए आते हैं
- मंदिर में स्थापित कुबेर देवता की प्राचीन प्रतिमा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने संदीपनी आश्रम में स्थापित की थी
- इस प्रतिमा का निर्माण मध्यकालीन शिल्पकारों ने बेसाल्ट पत्थर से किया है और यह लगभग एक हजार वर्ष पुरानी है
दीपावली से दो दिन पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व पर धन के देवता कुबेर भगवान की पूजा का विशेष महत्व होता है. यही वजह है कि मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित कुबेर मंदिर में इस वर्ष भी शुक्रवार से ही देश भर से श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया है. मान्यता है कि संदीपनी आश्रम में विराजित कुबेर जी की इस प्राचीन प्रतिमा की स्थापना स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने की थी.
कुण्डेश्वर महादेव मंदिर में विराजित हैं कुबेर देव
सर्वविदित है कि उज्जैन में मंगलनाथ मार्ग पर महर्षि संदीपनी का आश्रम है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की थी. आश्रम परिसर स्थित श्रीकृष्ण बलराम मंदिर के पास ही 84 महादेव में से 40वें नंबर के कुंडेश्वर महादेव का मंदिर है. इसी मंदिर के गर्भ गृह में कुबेर देवता की यह प्राचीन प्रतिमा स्थापित है. इस मंदिर की छत भी विशेष है, जो श्री यंत्र की आकृति की बनी हुई है.

इत्र लगाने से आती है समृद्धि
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस पर यहां कुबेर जी की पूजा कर उनके पेट पर इत्र लगाने से घर-परिवार में समृद्धि आती है. यही कारण है कि देश भर से लोग यहां आकर दर्शन करते हैं और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं. शनिवार को धनतेरस के विशेष अवसर पर यहां दो बार विशेष आरती की जाएगी, जिसमें सूखे मेवे, इत्र, मिष्ठान और फल का भोग लगाया जाएगा. ऐसी भी मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से ही धन की प्राप्ति होती है. मंदिर के द्वार पर खड़े नंदी की अद्भुत प्रतिमा भी भक्तों के आकर्षण का केंद्र है.

भगवान श्रीकृष्ण लाए थे कुबेर को
मंदिर के पुजारी शिवांश व्यास ने इस प्राचीन प्रतिमा से जुड़ी कथा बताई. उन्होंने कहा कि जब भगवान श्रीकृष्ण महर्षि सान्दीपनि के आश्रम से अपनी शिक्षा पूरी कर द्वारका जाने लगे, तब गुरु दक्षिणा देने के लिए कुबेर धन लेकर आए थे. लेकिन गुरु-माता ने श्रीकृष्ण से कहा कि उनके पुत्र का शंखासुर राक्षस ने हरण कर लिया है. उन्होंने श्रीकृष्ण से गुरु पुत्र को वापस लाने की गुरु दक्षिणा मांगी. श्रीकृष्ण ने गुरु पुत्र को राक्षस से मुक्त कराकर गुरु-माता को सौंप दिया और फिर स्वयं द्वारका चले गए. इस घटना के बाद कुबेर आश्रम में ही बैठे रह गए. यही कारण है कि यहां कुबेर की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा (आसन) में है.

शंगु काल की अति प्राचीन प्रतिमा
पुजारी व्यास के अनुसार, मंदिर में विराजित कुबेर जी की यह प्रतिमा मध्य कालीन है और लगभग 800 से 1100 वर्ष पुरानी है. इसे शंगु काल के उच्च कोटि के शिल्पकारों ने बेसाल्ट पत्थर से बनाया था. करीब 3.5 फीट ऊंची इस प्रतिमा के चार हाथ हैं, जिसमें दो हाथों में धन है, एक हाथ में सोम पात्र और एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है. प्रतिमा की तीखी नाक, उभरा पेट और शरीर पर सजे अलंकार कुबेर जी के स्वरूप को अत्यंत आकर्षक बनाते हैं.

देश में सिर्फ तीन स्थानों पर विराजित हैं कुबेर देव
पुजारी के अनुसार, कुबेर जी की इस तरह की प्राचीन प्रतिमा देश में सिर्फ तीन जगहों पर विराजित है: उत्तर, दक्षिण और मध्य भारत में उज्जैन. इस वजह से भी उज्जैन के इस कुबेर मंदिर का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है.
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