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This Article is From Mar 31, 2019

बिहार में न बालाकोट या न राफेल, जातिगत समीकरण ही यहां बड़ा मुद्दा

इस तरह देखा जाए तो दलों ने टिकटों का बंटवारा अपने जातीय कनेक्शन के आधार पर ही किया है. एनडीए ने सिर्फ एक अल्पसंख्यक को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि महागठबंधन की सूची में एक भी ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं है.

बिहार में न बालाकोट या न राफेल, जातिगत समीकरण ही यहां बड़ा मुद्दा
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव के मझधार में सभी राजनीतिक दलों की नैया हिचकोले खा रही हैं. सभी दल अपनी नैया मझधार से निकालकर तट पर लाने के लिए हर तिकड़म कर रहे हैं. एक तरफ नेता जहां रैलियां और सभाओं के जरिए मतदाताओं को आकर्षित करने में जुटे हुए हैं, वहीं जीत का सहारा जातीय समीकरण भी है. दलों ने जातीय समीकरण के आधार पर ही नैया के 'खेवनहार' (उम्मीदवार) तय किए हैं. बिहार में जातीय समीकरण कोई नई बात नहीं है. दलों के रणनीतिकार 'सोशल इंजीनियरिंग' के बहाने जातीय समीकरण तय करते हैं. सभी दलों के अपने जातीय कनेक्शन हैं.  विपक्षी महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जहां आज भी अपने पुराने जातीय समीकरण मुस्लिम और यादव गठजोड़ के सहारे चुनावी नैया पार कराने की जुगत में है. वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल भाजपा ने एक बार फिर अपने परंपरागत वोट बैंक यानी अगड़े (सामान्य) उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है. जनता दल (युनाइटेड) ने पिछड़ों और अति पिछड़े उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है. एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है.

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इस तरह देखा जाए तो दलों ने टिकटों का बंटवारा अपने जातीय कनेक्शन के आधार पर ही किया है.  एनडीए ने सिर्फ एक अल्पसंख्यक को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि महागठबंधन की सूची में एक भी ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं है.  एनडीए के उम्मीदवारों में 19 अति पिछड़ी और पिछड़ी जाति से हैं. इसमें सबसे ज्यादा जद (यू) ने इन वर्गों के 12 लोगों को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने इन वर्गो के सात लोगों को चुनावी मैदान में उतारा है.  इसी तरह एनडीए ने अनुसूचित जाति के छह लोगों को उम्मीदवार बनाया है वहीं सामान्य जाति से भी 13 लोगों को टिकट दिया है. इसमें सबसे ज्यादा राजपूत जाति के सात, ब्राह्मण जाति से दो, भूमिहार जाति से तीन और कायस्थ जाति से एक व्यक्ति को टिकट दिया गया है. एनडीए की ओर से जद (यू) ने सिर्फ किशनगंज से एक अल्पसंख्यक (महमूद अशरफ) को टिकट दिया है. 

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अगर महागठबंधन के उम्मीदवारों पर गौर किया जाए तो यहां मुस्लिम और यादव (एमवाई) समीकरण को फिर से साधने की कोशिश की गई है. महागठबंधन में शामिल पांचों दलों ने राज्य की 40 में से 31 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. इसके अलावा महागठबंधन समर्थित आरा सीट से भाकपा (माले) ने भी राजू यादव को उम्मीदवार घोषित कर दिया है.  इन 32 सीटों में से 16 के उम्मीदवार 'माई' समीकरण के हैं. यादव समाज से 10, तो मुस्लिम समाज के छह उम्मीदवार हैं. वहीं, सवर्ण और अति पिछड़े समाज के पांच-पांच और दलित वर्ग के छह उम्मीदवार मैदान में उतारे गए हैं.  इसमें अगर केवल आरजेडी की बात की जाए तो उसने अपने हिस्से की 20 सीटों में से एक भाकपा (माले) को दे दी है, जबकि शिवहर सीट पर अभी तक उम्मीदवार घोषित नहीं हुआ है. आरजेडी की ओर से घोषित 18 उम्मीदवारों में आठ यादव जाति से, जबकि चार मुस्लिम जाति के हैं. राजद ने एक अति पिछड़ा वर्ग और तीन सवर्ण जाति के लोगों को उम्मीदवार बनाया है, जबकि दलित वर्ग से आने वाले दो लोगों को टिकट दिया है. बहरहाल, जातीय आधार पर चलने वाली बिहार की राजनीति में एक बार फिर पार्टियां चुनावी मैदान में अपने वर्चस्व वाली जातियों को साधने के लिए योद्धाओं को उतार दिया है. अब देखना है कि किस पार्टी का समीकरण सटीक बैठता है.  

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