राजनीति हो या देशभक्ति हर जगह लिया जाता है रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविताओं का सहारा

रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari singh dinkar) ऐसे कवियों में से हैं जिनकी कविताएं एक अनपढ़ से लेकर बड़े से बड़े विद्वान को पसंद हैं. देश की आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर ने अपनी कविताओं द्वारा व्यक्त किया है.

राजनीति हो या देशभक्ति हर जगह लिया जाता है रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविताओं का सहारा

रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं का प्रयोग नेता अक्सर अपने विचारों को रखने या विरोंधियों पर हमला करने के लिए करते हैं.

खास बातें

  • रामधारी सिंह दिनकर कवि होने के साथ राज्यसभा सांसद थे.
  • दिनकर को उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था.
  • साथ ही उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया था.
नई दिल्ली:

कविताएं लोगों के दिलों में हमेशा से ही अपनी छाप छोड़ती आ रही हैं और यही कारण है कि अब नेता इनका सहारा लेकर लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं. लेकिन अब कविताओं का प्रयोग राजनीतिक हित के लिए अधिक किया जा रहा है. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) की कविताओं का प्रयोग तो सबसे ज्यादा किया जाता है. कविताओं द्वारा राजनीतिक प्रहार का चलन बढ़ता ही जा रहा है. खासकर चुनाव (Loksabha Elections) के समय प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का प्रयोग राजनैतिक हथियार के रूप में किया जाता आ रहा है. लेकिन ये कोई नया चलन नहीं है, 70-80 के दशक में भी नेता अक्सर कविताओं का सहारा लेकर अपने विरोधियों पर हमला बोलते थे. रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) और दुष्यंत कुमार की कई कविताओं का प्रयोग नेता कर रहे हैं. दिनकर ऐसे कवियों में से हैं जिनकी कविताएं आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े विद्वान पसंद करते हैं. देश की आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर ने अपनी कविताओं द्वारा व्यक्त किया है. यहीं नहीं देश की हार जीत और हर कठिन परिस्थिति को दिनकर ने अपनी कविताओं में उतारा. इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के समय उन्होंने लिखा था-

''सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, 
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; 
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, 
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.''

''सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'' इस कविता का प्रयोग लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा इंदिरा गांधी के विरोध में किया गया था. ''सिंहासन खाली करो कि जनता आती है''  के नारे के साथ दिल्ली के रामलीला मैदान में मौजूद लोग उस समय उसी तरह जेपी के पीछे चल पड़े थे, जैसे लोग आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के पीछे चल पड़े थे. राष्ट्रकवि दिनकर की कविता का प्रयोग 70 के दशक में जमकर किया गया. हालांकि दिनकर ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेपी पर कविता भी लिखी थी.

''है जयप्रकाश वह नाम जिसे
इतिहास समादर देता है,
बढ़कर जिसके पदचिन्हों को
उर पर अंकित कर लेता है.''

उस दौर से शुरू हुआ चलन आज भी जारी है और नेता अपने विचारों को व्यक्त करने से लेकर अपने विरोधियों पर हमला करने के लिए दिनकर की कविताओं का सहारा ले रहे हैं. दिनकर की कविताओं का इतना ज्यादा चलन इसलिए भी है क्योंकि वह राष्ट्रकवि के साथ जनकवि भी थे. उन्होंने देश के ऊपर, नेताओं के ऊपर और राजनीति के ऊपर कई कविताएं लिखी थी.

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आज के दौर में आम आदमी, नेता और यहां तक की सेना भी दिनकर की कविताओं का सहारा ले रही है. कवि और नेता कुमार विश्वास ने राम धारी सिंह दिनकर की कविता ट्वीट की है. उन्होंने लिखा-

''जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,
या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,
उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है,
यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है
चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,
जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं.''

हाल ही में कुमार विश्वास ने मनोहर पर्रिकर को श्रद्धांजलि देने के लिए भी दिनकर की कविता चुनी थी.

''बड़ी वह रूह जो रोए बिना तन से निकलती है ,
बड़ा वह ज्ञान जिसको व्यर्थ की चिन्ता न आती है ,
बड़ा वह आदमी जो जिन्दगी भर काम करता है ,
बड़ा कविता वही जो विश्व को सुंदर बनाती है..!''
अलविदा सर (रामधारी सिंह दिनकर)
#WeMissManoharParrikar

वहीं आतंकवाद पर एयर स्ट्राइक करने के बाद भारतीय सेना ने भी दिनकर की कविता ही ट्वीट की थी. इनमें से एक ट्वीट 26 और दूसरा 27 फरवरी का है.

''माथे तिलक लगाती हमको, वीर प्रसूता मातायें,
वीर शिवा, राणा, सुभाष  की, भरी पड़ी हैं गाथायें.
सरहद है महफूज हमारी, अपने वीर जवानों से,
लिखते है इतिहास नया नित, जो अपने बलिदानों से.''

''क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुए विनीत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही.''

पिछले महीने रेलवे के राज्यमंत्री और बीजेपी नेता मनोज सिन्हा गाजीपुर के सरयू पाण्डेय पार्क में आतंकवाद के खिलाफ बीजेपी की ओर से आयोजित धरने में शामिल हुए. वहां उन्होंने अपने भाषण को शुरू करने से पहले दिनकर की प्रसिद्ध कविता कलम, आज उनकी जय बोल की पक्तियां कही....

''जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल.''

जब फौजियों के सम्मान में पीएम मोदी ने पढ़ीं दिनकर, चतुर्वेदी की ये पंक्तियां...

चुनावी समय में दिनकर की कविताओं का सहारा लेते हुए उपेंद्र कुशवाहा
पिछले साल की बात है जब बिहार में एनडीए के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी को 30 नवंबर तक की डेडलाइन दी थी. लेकिन बीजेपी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था और डेडलाइन खत्म हो जाने के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी पर जोरदार हमला बोला था.

कुशवाहा ने रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता का जिक्र करते हुए कहा था-

‘‘जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है...''  

इतना ही नहीं उन्होंने  बीजेपी को चेताते हुए कहा था, ''याचना नहीं अब रण होगा, संघर्ष महाभीषण होगा.''

ये दोनों ही पक्तियां जिनका इस्तेमाल बीजेपी पर निशाना साधने के लिए किया गया था, ये दिनकर की कविता ''कृष्ण की चेतावनी'' से ली गई हैं. दिनकर की प्रसिद्ध रचना 'रश्मिरथी' में ये कविता है.

वहीं नेता सिर्फ दिनकर की कविताओं को हथियार के दौर पर इस्तेमाल नहीं करते कई बार दिनकर जी की कविताओं को अपने विचारों को व्यक्त करने या उन्हें याद करने के बाद भी किया जाता है. 

जयंत चौधरी ने पिछले साल दिनकर की कविता ट्वीट की थी.

"जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है 
छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है 
मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है 
वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है"
-राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

बता दें कि संसद में नेता अक्सर कविताओं का इस्तेमाल कर एक दूसरे पर निशाना साधते हैं. 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के बारे में..

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-रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को आज के बिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था. 
- उन्होंने मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने.
-1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए.
-रामधारीसिंह दिनकर को राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत, क्रांतिपूर्ण संघर्ष की प्रेरणा देने वाली ओजस्वी कविताओं के कारण लोकप्रियता मिली और उन्हें 'राष्ट्रकवि' नाम से विभूषित किया गया.
-उनकी प्रसिद्ध रचनाएं उर्वशी, रश्मिरथी, रेणुका, संस्कृति के चार अध्याय, हुंकार, सामधेनी, नीम के पत्ते हैं. 
-उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया.
-उनकी मृत्यु 24 अप्रैल 1974 को हुई थी.