लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को आपसी गुटबाजी की वजह से नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह आकलन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों और विश्लेषकों का है. तृणमूल कांग्रेस (All India Trinamool Congress) के एक नेता ने कहा कि भाजपा सत्तारूढ़ दल के अंदरूनी विवादों का लाभ उठाना चाह रही है. खासकर एक समय पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी के विश्वासपात्र रहे मुकुल रॉय के भाजपा में शामिल होने के बाद से. राजनैतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं को अपने साथ मिलाकर भाजपा ने उनकी आकांक्षाओं को हवा दी है. रविंद्र भारती विश्वविद्यालय में राजनैतिक विज्ञान के प्रोफेसर चक्रवर्ती ने कहा, 'अर्जुन सिंह जैसे लोग सांसद बनना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उनके नाम पर विचार नहीं किया. तो, उन्होंने पार्टी छोड़ दी. ऐसे ही और लोग भी हैं जिन्हें शायद लगा हो कि वे एक ही पद पर फंसकर रह गए हैं या मंत्री बनना चाहते हों. यह सभी पार्टी छोड़ रहे हैं और भाजपा में शामिल हो रहे हैं'.
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पार्टियों से नेताओं को तोड़ने में माहिर मुकुल रॉय को सालों तक अन्य दलों के नेताओं और जनप्रतिनिधियों को तृणमूल में शामिल कराने के लिए जाना जाता रहा. भाजपा में शामिल होने के बाद भी उन्होंने यही दक्षता दिखाई और कई अन्य नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ वर्तमान तृणमूल सांसदों अनुपम हाजरा और सौमित्र खान को भाजपा में शामिल किया. उन्होंने वामपंथी दलों के कुछ नेताओं को भी भाजपा के पक्ष में तोड़ा. पहली जनवरी 1998 को कांग्रेस के गर्भ से निकली तृणमूल कांग्रेस में हमेशा अपनी 'मातृ पार्टी' की गुटबाजी की समस्या बनी रही. पार्टी के प्रभाव के बढ़ने के साथ यह समस्या बढ़ गई. चक्रवर्ती के मुताबिक, तृणमूल में अंदरूनी कलह के तीन-चार रूप हैं. एक तो पार्टी के पुराने नेताओं और माकपा छोड़कर पार्टी में आए नए नेताओं के बीच का टकराव बहुत गहरा है. फिर सत्ता की मलाई खाने को लेकर विवाद इतना है कि हिंसा और हत्या तक हुई है.
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एक अन्य विश्लेषक ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा कि भवन निर्माण सामग्री का मुनाफे वाला काम भी पार्टी में तीखी लड़ाई की वजह है. इस व्यवसाय से जुड़े सिंडीकेट कानून व्यवस्था के लिए संकट खड़ा करने के लिए जाने जाते हैं. अंदरूनी कलह से परेशान पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने फरवरी में सार्वजनिक रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं को गुटबाजी से दूर रहने के लिए और एकजुट होकर चुनाव में भागीदारी के लिए कहा था. पार्टी में कलह का ही नतीजा रहा कि बीते साल पंचायत चुनाव में तृणमूल (Trinamool Congress) को जंगलमहल क्षेत्र में कई सीटें गवानी पड़ी थीं. चक्रवर्ती का कहना है कि अगर भाजपा के बजाए माकपा जैसी कोई मजबूत पार्टी रही होती तो इस मुद्दे का उसने जमकर लाभ उठाया होता. उन्होंने कहा कि भाजपा के सामने समस्या यह है कि राज्य में अधिकांश क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता अच्छी संख्या में हैं. राज्य में उनकी आबादी तीस फीसदी के करीब है. समुदाय में भाजपा के प्रति गहरा अविश्वास है. भाजपा हालात का जितना भी लाभ उठाती है, वह एम फैक्टर के कारण एक हद तक बेकार हो जाता है.
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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