पंडित नेहरू की लोकसभा सीट फूलपुर : यहां लोग हार कर भी बन जाते थे बड़े नेता

नेहरू जी के निधन के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने यहां से 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र को हराकर दिया.

पंडित नेहरू की लोकसभा सीट फूलपुर : यहां लोग हार कर भी बन जाते थे बड़े नेता

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश के  इलाहाबाद जिले की फूलपुर के लोगों ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को तीन बार सांसद बनाया है. देश की आजादी के बाद से पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसको संसदीय क्षेत्र बनाया और बड़ी आसानी से तीन बार जीत दर्ज की. पंडित नेहरू ने यहां से 1952, 1957 और 1962 में चुनाव  जीता था. यह सीट हमेशा से बीजेपी के लिए चुनौती बनी रही. अयोध्या आंदोलन के समय 'राम लहर' में भी बीजेपी यहां से जीत नहीं पाई थी. लेकिन साल 2014 में चली 'मोदी लहर' ने कई रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए और फूलपुर भी उससे अछूता नहीं रहा. यहां से केशव प्रसाद मौर्य ने बंपर जीत दर्ज की. लेकिन अब वह उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री हैं और उनके इस्तीफे के बाद से यह सीट खाली पड़ी है. इससे पहले यहां से कई दिग्गज चुनाव लड़ चुके हैं. जिनमें समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया तो 1962 में पंडित नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ हार चुके हैं. खास बात यह है कि पंडित नेहरू की मदद से ही लोहिया राज्यसभा भी पहुंचे थे.  

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नेहरू जी के निधन के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने यहां से 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र को हराकर दिया. लेकिन इसके दो साल बाद  विजय लक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करने लगीं और उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इस बार कांग्रेस की ओर से नेहरू के खास रहे केशवदेव मालवीय को मैदान में उतारा लेकिन इस बार पार्टी को हार का स्वाद चखना पड़ा. मालवीय को समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र ने हरा दिया. 1971 में एक यहां से पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह चुने गए. इस चुनाव में बीएसपी के संस्थापक कांशीराम भी मैदान में थे और हार गए.  

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आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस को जनता के भीषण गुस्से का सामना करना पड़ा और यहां से कांग्रेस को हराकर जनता पार्टी की कमला बहुगुणा ने जीत दर्ज की. 1980 में हुए चुनाव में लोकदल ने यहां से चुनाव जीता. 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने फिर जीत दर्ज की. इस चुनाव में कांग्रेस ने राम पूजन पटेल को प्रत्याशी बनाया था जो 1977 में हुए चुनाव में कमला बहुगुणा से हार गए थे. इसके बाद राम पूजन पटेल जनता दल में शामिल हो गए और 1989 और 1991 में लगातार दो बार सांसद चुने गए और जीत की हैट्रिक लगाकर पंडित नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली.

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इसके बाद 1996 से लेकर 2004 तक यह सीट समाजवादी पार्टी की गढ़ बन गई. 1996 के चुनाव में कांशीराम और जंग बहादुर पटेल आमने-सामने थे. कांशीराम और जंग बहादुर पटेल कभी बीएसपी में साथ-साथ थे और दोनों को गुरु-चेला कहा जाता था. लेकिन इस चुनाव में गुरु-चेला आमने-सामने थे, कांशीराम हार गए. इस बीच चार लोकसभा चुनाव हुए और हर बार सपा ही जीती.  साल 2004 में  नेहरू की सीट रही इस लोकसभा क्षेत्र से बाहुबली अतीक अहमद सांसद चुने गए. इसके बाद अतीक अहमद बीएसपी में शामिल हो गए और साल 2009 में बीएसपी की टिकट से सांसद चुने गए.  फूलपुर को अगर देश की सबसे बड़ी वीआईपी सीट कहा जाए तो अतिशोयक्ति नहीं होगी. इस सीट से कई नेता हारने के बाद भी सही मायनों में सफल रहे हैं. अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल भी इनमें से एक हैं और कांशीराम, जनेश्वर मिश्रा, राम पूजन पटेल जैसे कई नाम हैं. लेकिन विकास के नाम पर आज भी यह क्षेत्र बाट जोह रहा है. 

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