चुनाव आयोग (Election Commision) ने रविवार को बहुप्रतीक्षित 17वीं लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) कार्यक्रम की घोषणा कर दी. इस बार 11 अप्रैल से शुरु होने वाला चुनावी समर एक महीने से अधिक समय तक चलेगा. चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही सियासी लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हलचलें तेज हो गई हैं. इस बार देश के सबसे बड़े सूबे में भाजपा की साख दांव पर होगी. तो वहीं, सपा-बसपा गठबंधन के लिये भी यह चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह होगा. चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सात चरणों में लोकसभा चुनाव होगा. आंकड़ो पर नजर डालें तो वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 71 और उसके सहयोगी अपना दल ने दो सीटें जीती थीं. खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस बार 73 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. ऐसे में भाजपा की साख सबसे ज्यादा दांव पर है.
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यह लोकसभा चुनाव सपा और बसपा गठबंधन के भविष्य को भी तय करेगा. कभी घोर प्रतिद्वंद्वी रहे सपा और बसपा ने अपने तमाम गिले-शिकवे भुलाकर इस चुनाव में भाजपा को हराने के लिये हाथ मिलाया है. प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एम. वेंकटेश्वर लू ने रविवार को बताया कि प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होंगे. इसके तहत 11, 18, 23 और 29 अप्रैल तथा 6, 12 और 19 मई को मतदान होगा. मतों की गिनती 23 मई को होगी. चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही प्रदेश में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गयी है. उन्होंने बताया कि प्रदेश में 7.79 करोड़ पुरुष, 6.61 करोड़ महिला तथा 8374 अन्य समेत 14.4 करोड़ मतदाता हैं. मतदान के लिये कुल 91709 मतदान केन्द्र बनाये जाएंगे. लू ने बताया कि लोकसभा चुनाव के साथ ही निघासन विधानसभा का उपचुनाव भी कराया जाएगा. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा के 71 सांसद जीते थे. इसके अलावा सपा को पांच और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं. वहीं, बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था.
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लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता पाने के बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने जबर्दस्त प्रदर्शन करते हुए सत्ता हासिल की थी. हालांकि उसके बाद पिछले साल प्रदेश के गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा तथा नूरपुर विधानसभा के उपचुनाव में विपक्ष ने भाजपा को शिकस्त देकर अपने लिये सम्भावनाएं जगायी थीं. ऐसे में गठबंधन को लोकसभा चुनाव से काफी उम्मीदे हैं. दूसरी तरफ, कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने जा रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाये जाने के बाद वह आशा और उत्साह से लबरेज है. अभी तक खुद को सिर्फ अमेठी और रायबरेली तक सीमित रखने वाली प्रियंका का करिश्मा कांग्रेस को कहां तक ले जाता है, यह इस चुनाव से तय हो जाएगा. (इनपुट-भाषा से भी)
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