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This Article is From Apr 16, 2019

क्या मेनका गांधी के लिए सुल्तानपुर लोकसभा सीट के ये आंकड़े हैं खतरे की घंटी?

उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर लोकसभा सीट (Sultanpur Seat) पर इस बार मुकाबला दिलचस्प हो गया है.

क्या मेनका गांधी के लिए सुल्तानपुर लोकसभा सीट के ये आंकड़े हैं खतरे की घंटी?
मेनका गांधी (Maneka Gandhi) इस बार सुल्तानपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं.
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर लोकसभा सीट (Sultanpur Seat) पर इस बार मुकाबला दिलचस्प हो गया है. 2014 में पौने दो लाख वोट के अंतर से चुनाव जीतने वाले वरुण गांधी (Varun Gandhi) की जगह जब बीजेपी ने इस सीट से उनकी मां मेनका गांधी (Maneka Gandhi) को मैदान में उतारा, तभी इसके सियासी मायने निकाले जाने लगे. कहा गया कि सीटों की अदलाबदली का सुझाव खुद मेनका गांधी ने दिया था, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि सुल्तानपुर में वरुण की स्थिति 2014 जितनी मजबूत नहीं रही. एक तरफ गठबंधन उनके लिए खतरा था, तो दूसरी तरफ कांग्रेस भी मजबूती से ताल ठोंक रही थी. ऐसे में सुल्तानपुर से खुद मेनका गांधी मैदान में उतरीं और बेटे वरुण को अपनी सीट पीलीभीत भेज दिया. लेकिन मेनका गांधी (Maneka Gandhi) के लिए भी सुल्तानपुर की राह आसान नजर नहीं आ है. 

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सपा-बसपा गठबंधन का पलड़ा भारी 
2014 के चुनावों की बात करें तो वरुण गांधी (Varun Gandhi) को 4 लाख 10 हजार के आसपास वोट मिले थे. जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाली बीएसपी के उम्मीदवार पवन पांडे को 2 लाख 31 के करीब वोट मिले थे. इसी तरह समाजवादी पार्टी (सपा) के शकील अहमद को 2 लाख 28 हजार और कांग्रेस की अमिता सिंह की झोली में 41 हजार के करीब वोट आए थे. लेकिन इस बार हालात बदले नजर आ रहे हैं. सपा-बसपा गठबंधन के बाद सुल्तानपुर की सीट बसपा के खाते में गई है और पार्टी ने  यहां से चंद्रभद्र सिंह (Chandra Bhadra Singh) को मैदान में उतारा है. अगर पिछले चुनावों की बात करें तो सपा-बसपा के खाते में साढ़े चार लाख से ज्यादा वोट गए थे, जो वरुण गांधी (Varun Gandhi) को मिले कुल वोट से ज्यादा है. इस बार सपा-बसपा (SP-BSP) साथ हैं, जो खासकर बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है.  

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कांग्रेस बिगाड़ सकती है भाजपा का खेल 
2009 में सुल्तानपुर से चुनाव जीत चुके कांग्रेस नेता संजय सिंह (Sanjay Sinh) भी इस बार मजबूती से मैदान में डटे नजर आ रहे हैं. 2014 में उन्होंने खुद चुनाव नहीं लड़ा था और उनकी पत्नी अमिता सिंह मैदान में थीं, जिन्हें चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा था. उस दौरान ऐसा कहा गया कि संजय गांधी से नजदीकी की वजह से उनके बेटे वरुण के खिलाफ संजय सिंह (Dr Sanjay Sinh) चुनाव मैदान में नहीं उतरे, लेकिन 2014 से 2019 तक काफी कुछ बदल चुका है. 2009 के चुनाव में संजय सिंह ने करीब एक लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. स्थानीय लोगों की मानें तो उस दौरान संजय सिंह ने क्षेत्र का ठीकठाक विकास किया था और 2014 के बाद भी लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं. यह बात उनके पक्ष में जाती है.  हालांकि पुराने आंकड़ों का बारीकी से विश्लेषण करें तो इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले गठबंधन का पलड़ा भारी नजर आता है. सुल्तानपुर (Sultanpur Seat) में 12 मई को चुनाव होना है और 23 मई को नतीजों के साथ ही यह साफ हो जाएगा कि आखिर सुल्तानपुर की जनता ने किसे अपना 'सुल्तान' चुना है. 

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