बिहार का चुनावी दंगल: जानें कैसे सियासी दिग्गज 'योद्धा' होकर भी निभा रहे हैं 'सारथी' की भूमिका

बिहार में इस चुनाव में करीब सभी दलों के प्रमुख खुद तो चुनावी मैदान में नहीं उतरे, मगर 'सारथी' बन अपने 'अर्जुन' को विजयी बनाने में लगे हुए हैं.

बिहार का चुनावी दंगल: जानें कैसे सियासी दिग्गज 'योद्धा' होकर भी निभा रहे हैं 'सारथी' की भूमिका

तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

पटना:

लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में अब कुछ ही समय शेष है, ऐसे में जहां सभी योद्धा (उम्मीदवार) चुनावी मैदान में एक-दूसरे को पछाड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाह रहे हैं, वहीं उनके 'सारथी' भी अपने-अपने 'योद्धाओं' के रथों को इस चुनावी महाभारत से विजयी होकर निकालने में लगे हैं. बिहार में इस चुनाव में करीब सभी दलों के प्रमुख खुद तो चुनावी मैदान में नहीं उतरे, मगर 'सारथी' बन अपने 'अर्जुन' को विजयी बनाने में लगे हुए हैं. विपक्षी दलों के महागठबंधन के प्रमुख घटक दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद रांची की एक जेल में चारा घोटाले के कई मामलों में सजा काट रहे हैं. उनकी अनुपस्थिति में पार्टी की जिम्मेदारी संभाल रहे उनके पुत्र तेजस्वी यादव अपने दल में 'सारथी' की भूमिका में नजर आ रहे हैं. 

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तेजस्वी कहीं से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, मगर प्रतिदिन तीन से चार चुनावी जनसभा कर अपने योद्धाओं की जीत सुनिश्चित कराने में लगे हैं. राजद की नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी इस चुनावी महाभारत के योद्धाओं में शामिल नहीं हैं. वे भी सारथी बन चुनावी रण में अपने योद्धाओं को विजयी बनाने के प्रयास में हैं.

ऐसा ही कुछ हाल कांग्रेस में भी है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा कहीं से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, मगर कांग्रेस की रणनीति को सरजमीं पर उतारने की जिम्मेदारी उन्हीं पर है. कांग्रेस के प्रवक्ता हरखू झा का मानना है कि पार्टी जिसे जो जिम्मेदारी देती है, उसे निभाया जाता है. प्रदेश अध्यक्ष को चुनावी प्रचार अभियान की जिम्मेदारी दी गई है और वे चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। उनकी जिम्मेदारी सभी प्रत्याशियों को विजयी बनाने की है. 

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इधर, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. नीतीश राजग के योद्धाओं के समर्थन में जमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं. 

जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार भी कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि और उनके काम राजग के प्रत्याशियों को जीत दिलाने में निर्णायक बनेंगे. उन्होंने कहा कि चुनाव नहीं लड़ना कोई गलत नहीं है. इससे मुख्य रणनीतिकार को प्रचार के लिए पूरा समय मिलता है. अगर मुख्य रणनीतिकार खुद चुनावी मैदान में उतर गए, तो उनका अधिक समय अपनी ही सीट पर खर्च हो जाता है. उन्होंने कहा कि ऐसे भी नीतीश कुमार की मांग सभी प्रत्याशियों द्वारा की गई है. 

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इधर, बिहार भाजपा के बड़े चेहरे माने जाने वाले बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी चुनाव मैदान में 'योद्धा' नहीं हैं.  पहले उनके पटना साहिब से चुनाव लड़ने की चर्चा जरूर हुई थी, मगर अंत में उनको चुनाव प्रचार की ही जिम्मेदारी दी गई है. मोदी लगातार सुबह से शाम तक विभिन्न क्षेत्रों में जाकर राजग उम्मीदवारों के लिए वोट मांग रहे हैं. 

राजग में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रमुख रामविलास पासवान भी इस लोकसभा चुनाव में चुनावी मैदान में नहीं हैं, उनकी जिम्मेदारी भी अपने दल सहित राजग के योद्धाओं को जिताने की है. दीगर बात है कि रामविलास के पुत्र चिराग पासवान जमुई क्षेत्र से चुनावी मैदान में हैं. 

बहरहाल, रणनीतिकार 'सारथी' की भूमिका में अपने-अपने योद्धाओं को विजयी बनाने में लगे हैं, देखना है कि कौन सारथी 'कृष्ण' बन चुनावी महाभारत में विजयी होता है.  बिहार में लोकसभा चुनाव के सभी सात चरणों में मतदान होना है. इस चुनाव में मुख्य मुकाबला राजग और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है.

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