Election 2019: पहले ईवीएम हैक होने के आरोप लगते थे अब कहा जा रहा है कि उन्हें बदला जा रहा है. उत्तर प्रदेश के चंदौली, गाजीपुर सहित देश के कई राज्यों में ईवीएम से छेड़छाड़ उन्हें लावारिस छोड़ने के आरोप लगे हैं. सोशल मीडिया पर ईवीएम को स्ट्रॉन्ग रूम से शिफ्ट करने के कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें दावा किया जा रहा है कि बिना किसी सुरक्षा के ईवीएम से भरी गाड़ी को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाया जा रहा है लेकिन क्या ये मुमकिन है . इस पूरे मामले पर हमारे संवाददाता अनुराग द्वारी से पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने विस्तार से बातचीत की.
क्या ईवीएम को हैक किया जा सकता है.
कतई नहीं, ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता और इसका एक स्टेटस पेपर चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर डाल रखा है जैसे विकसित देश इसका इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे हैं, इसमें क्या सेफगार्ड हैं जितनी कपोल कल्पित घटनाएं बताई गई हैं उनकी जांच का विवरण भी है.
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क्या इसको कतई इंटरनेट से जोड़ा नहीं जा सकता है
ईवीएम की इंटरनेट से कोई कनेक्टिविटी नहीं हो सकती, ना तो ये केबल से जुड़ा है इसमें बिजली का कनेक्शन भी नहीं लगाते इनबिल्ट बैट्री है. वाईफाई नहीं लगाते, ब्लू टूथ नहीं लगाते किसी भी मशीन से ये बात नहीं कर सकती. विकसित देशों में जिन मशीनों का इस्तेमाल हुआ था वो इंटरनेट रेडी मशीनें थीं और इसलिये उसमें छेड़छाड़ मुमकिन था.
ये एम-3 मशीनें हैं इसकी क्या विशेषता है
एम-3 ईवीएम लेटेस्ट जेनेरेशन की मशीन है, नई तकनीक का समावेश है और ये इस तरह से बनाया गया है अगर कोई इसे छेड़छाड़ के लिये छूने की कोशिश भी करेगा तो ये फैक्ट्री मोड में चली जाएगी और काम नहीं करेगी.
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विस्तार से बता पाएंगे देश के अलग-अलग कोनों से जो ईवीएम की तस्वीरें आ रही हैं, क्या संभव है कि हैक नहीं किया जा सकता या बदला जा सकता है
चुनाव ख़त्म होने पर आपने जैसा कहा पीठासीन अधिकारी फॉर्म 17-सी पोलिंग एजेंट को देते हैं जिससे उनके पास रिकॉर्ड रहता है कि इतने वोट इस ईवीएम में हैं. फिर ईवीएम सील होती है वो करना चाहें तो उनके दस्तख्त उसमें लिये जाते हैं. सील्ड ईवीएम को पीठासीन अधिकारी केन्द्रीय सुरक्षा बलों के साथ खुद जाकर स्ट्रॉन्ग रूम में जमा करता है. वहां पर सभी पार्टियों के प्रतिनिधियों के बैठने की व्यवस्था होती है रात दिन वहां सो सकते हैं जबतक गणना के लिये उन्हें निकाला नहीं जा रहा है तकतक वो मेन गेट वो सील होती है इसपर भी उनके दस्तख्त होते हैं वो देख सकते हैं कि कोई घुस नहीं रहा है. गणना के लिये भी जब ईवीएम निकाले जाते हैं वो उपस्थित रहकर देखते हैं कि हर ईवीएम सीलबंद स्थिति में स्ट्रॉन्ग रूम से मतगणना हॉल में लाई जाती है उनके सामने सील तोड़ी जाती है ईवीएम निकाली जाती है फिर गणना शुरू होती है. सीरियल नंबर का मिलान कर सकते हैं. तीन स्तरीय सुरक्षा होती है अंदर केन्द्रीय सुरक्षा बल, फिर राज्य सशस्त्र बल और फिर राज्य पुलिस. सीसीटीवी होता है, इतनी पक्की व्यवस्था है कि गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं है.
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एक अशोक लवासा को लेकर पूरे चुनाव आयोग पर सवाल उठ रहे हैं कि उनकी असहमति को दर्ज नहीं किया गयाअगर कैंपेन के दौरान होता है कि एमसीसी की शिकायते आ रही हैं आपकी असहमति है तो उसे दर्ज कराएं या अलग हो जाएं मीडिया को भी ये देखना चाहिये लेकिन कैंपेन पीरियड खत्म हो गया 17 मई को 18 को दर्ज करा रहे हैं तो इसका कोई औचित्य है ही नहीं. कैंपेन खत्म हो गया तो अब एमसीसी का उल्लंघन हो ही नहीं सकता तो अब क्या असहमति
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दो चीजें दिक्कत वाली हैं, पहली तो ये कि 1-2-4 अप्रैल की शिकायत है उसमें फैसला एक महीने बाद आ रहा है ये जो देरी है इसकी वजह से जनता की सोच विपरीत गई चुनाव आयोग के ख़िलाफ वो नहीं होना था. अमूमन आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में बहुत तत्परता से आदेश होता है तुरंत. 24 घंटे में वीडियो मंगा लेते हैं, सारे सबूत देख लेते हैं और उसके बाद उसपर अपना निर्णय देते हैं लेकिन इस घटना में वक्त बहुत लगा दिया. दूसरा जो भी उसमें तथ्य थे अगर पब्लिक डोमेन में होते तो कोई संदेह पैदा नहीं होता लेकिन इसमें सिर्फ शिकायतकर्ता को एक खत के जरिये भेजा गया जिसमें कहा गया कि इसमें मामला नहीं बनता है. पब्लिक डोमेन में कुछ ना होने से ये धारणा बनी कि पारदर्शिता का अभाव है. किसी का दबाव नहीं होता क्योंकि उन्हें पता है कि हमें पूरी सुरक्षा होती है. मेरे पूरे कार्यकाल में ऐसा कोई दबाव कभी सामने नहीं आया.
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