पूर्व चुनाव आयुक्त अचानक सनसनीखेज बने

यदि नोटबंदी से कांग्रेस लुट गई तो इस समय चुनावों में जो इफरात कालाधन इस्तेमाल हो रहा है वह किस पार्टी का?

पूर्व चुनाव आयुक्त अचानक सनसनीखेज बने

रिटायर होने के कुछ ही घंटे बाद पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने एक रहस्य उजागर करके सनसनी फैला दी. उन्होंने कहा कि नोटबंदी से कालेधन पर कोई फर्क नहीं पड़ा. यानी चुनावों में कालेधन का अभी भी खूब इस्तेमाल हो रहा है. पूर्व चुनाव आयुक्त की बात से तो ऐसा भी लग रहा है कि कालेधन का इस्तेमाल पहले से भी ज्यादा बढ़ गया. उनकी यह बात बहुतेरी बातों पर सोचने को मज़बूर करती है.

नोटबंदी की नाकामी का शक क्या बिल्कुल खत्म
यह तो अब तक साफ हो ही चुका था कि नोटबंदी का वैसा कोई फायदा नहीं हुआ जैसा सोचा गया था. यह दावा गलत साबित हुआ कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार मिटेगा या खत्म होगा. अमीरों की सेहत पर भी कोई असर नहीं हुआ. सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद नोटबंदी की नाकामी की चर्चा नहीं रुक पाई. कुछ दिनों से सरकार के पक्षधर अखबारों और टीवी चैनलों तक ने नोटबंदी की कामयाबी का प्रचार बंद कर दिया था. लेकिन देश की माली हालत संबंधी आंकड़ों ने नोटबंदी की पोल खोल दी. उधर रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नरों और आर्थिक मामलों के जानकारों के बयानों से सरकार नोटबंदी का फैसला गलत साबित होने लगा था. लेकिन अब जब पूर्व चुनाव आयुक्त ने कालेधन पर नोटबंदी को बेअसर करार दे दिया तो नोटबंदी की नाकामी को लेकर बचाखुचा शक भी जाता रहा.

क्यों खास है रावत का यह कहना
नोटबंदी के भयावह असर को छुपाने के मकसद से नोटबंदी से दूसरे फायदों को ढूंढने के लिए तरह-तरह के प्रचारकों की फौज खड़ी की गई थी. सरकार ने  पूरा इंतजाम किया था कि जो भी नोटबंदी के खिलाफ बोला उसे देशद्रोही और भ्रष्टाचारियों का समर्थक बताया जाए. जो-जो नोटबंदी से बर्बाद हुआ था मसलन किसान, रोज़गार चाहने वाले युवक, मज़दूर और छोटे कामधंधे करने वाले सबको यह समझाया गया था कि नोटबंदी कालेधन के खिलाफ एक मुहिम है और कालाधन अमीरों के पास रहता है. गरीबों में यह तमन्ना पैदा करवाई गई थी कि अमीर पिटेंगे तो देखकर खूब अच्छा भी लगेगा. और यह भी कि नोटबंदी से लाखों करोड़ रुपये का जो कालाधन पकड़ में आएगा वह पैसा सरकार गरीबों के कल्याण में लगाएगी. चुनावों में कालाधन इस्तेमाल नहीं हो पाएगा सो राजनीति से भ्रष्टाचारियों और कालेधन का सफाया हो जाएगा. लेकिन कुछ घंटे पहले ही रिटायर हुए पूर्व चुनाव आयुक्त ने जब यह बताया कि चुनावों में कालेधन का इस्तेमाल बंद, खत्म या कम नहीं हुआ तो सरकार की पूरी की पूरी थ्योरी ही हवा हो गई. कोई और कहता तो उसे भ्रष्टाचारी बताकर और उसकी मुड़थपड़ी करके उसे चुप भी करा दिया जाता, लेकिन जब खुद पूर्व चुनाव अयुक्त ने यह बात बताई है तो बात खास है ही.

राजनीतिक तौर पर संवेदनशील हो गए हैं रावतजी
पूर्व चुनाव आयुक्त यह बात पद पर रहते हुए भी कह सकते थे. तब कहते तो पता नहीं कितना बड़ा बवंडर बन जाता. इधर पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान वोटरों पर भी भारी असर पड़ जाता. सरकार के लिए शुक्र है कि विधानसभा चुनाव का अस्सी फीसद काम निपट चुका है. यानी अब नोटबंदी की इस कदर नाकामी उजागर होने का कोई खास असर पांच राज्यों के चुनाव नतीजों पर नहीं पड़ना है. ये अलग बात है कि चुनावों के पहले तक नोटबंदी की नाकामी जितनी उजागर हुई थी उतना असर जरूर पड़ा होगा. फिर भी इतना बिल्कुल तय है कि जिन लोगों में नोटबंदी की नाकामी को लेकर थोड़ा बहुत भी भ्रम था वह अब पूरा का पूरा जाता रहा. इस तरह से यह तय माना जाना चाहिए कि 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र मोदी सरकार अब नोटबंदी के ज़िक्र से परहेज करेगी. वह चाहेगी कि जैसे भी हो नोटबंदी का नाम ही कहीं न आए. बल्कि उसे एक उलट प्रचार का ऐसा इंतजाम करना पड़ेगा कि जैसे उसने नोटबंदी की ही नहीं थी.

क्या और भी बड़े रहस्य आने वाले हैं
अभी तो सिर्फ नोटबंदी की नाकामी और उसके भयावह असर की ही बातें उजागर हो रही है. नोटबंदी पर खजाने का कितना पैसा बर्बाद हुआ? कितने रोजगार नष्ट हो गए. कितने कामधंधे चौपट हो गए? नए रोज़गारों की संभावनाएं कितनी नष्ट हुईं. जीडीपी पर सही-सही कितनी मात्रा में बुरा असर पड़ा? नोटबंदी की अफरा तफरी में कितने नकली नोट असली में बदले जाकर लुगदी बन गए. सरकारी बैंकों, निजी बैंकों और सहकारी बैंकों में किस किस्म के घपले-घोटाले हुए? ऐसे और भी कई रहस्य उजागर होना अभी बाकी है. यानी कोई कितना भी कुछ कर ले नोटबंदी की चर्चा अभी कई साल तक रोके नहीं रुक पाएगी.

सफेदपोश अपराधों को पकड़े जाने की दिक्कत
कालाधन सफेदपोश अपराध का एक रूप है. सफेदपोश अपराध का जटिल रूप सिर्फ अपराधशास्त्री ही अच्छी तरह से समझते हैं. वे तो इस अपराध को पारिभाषिक तौर पर ही ऐसा अपराध मानते हैं जो पकड़ में नहीं आ पाता. इसीलिए राजनीतिक चोरियों, डकैतियों और भ्रष्टाचार के आरोप सिर्फ राजनीतिक हथियार के तौर पर चलाने तक सीमित हैं. मसलन प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों में जो यह कह रहे हैं कि नोटबंदी से कांग्रेस लुट गई. यानी कांग्रेस का सारा पैसा नोटबंदी ने खत्म कर दिया और इसीलिए वह नोटबंदी को लेकर रो रही है. यानी प्रधानमंत्री ने अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी यानी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को कालाधन मुक्त घोषित कर दिया है. कांग्रेस  से उसका सारा धन छुड़ा लेने के दावे को अगर सही मान जाए तो अनिवार्य रूप से एक बहुत बड़ा सवाल उठ खड़ा होगा. वह ये कि इस समय चुनावों में जो इफरात में कालाधन इस्तेमाल हो रहा है वह किस पार्टी का कालाधन है. यानी इस राजनीतिक हथियार में भी पलटकर वार करने का गुण है. बहरहाल रावत ने भले ही कालेधन के अलावा और कुछ न कहा हो लेकिन वे मौजूदा सत्ताधारियों के निशाने पर जरूर आ गए होंगे.


सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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