पल्प फिक्शन साहित्य की दुनिया के जाने-माने लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा ‘हम नहीं चंगे, बुरा न कोय' का लोकार्पण बुधवार को दिल्ली के त्रिवेणी ऑडिटोरियम में हुआ. लोकार्पण के कार्यक्रम में अपनी बात रखते हुए सुरेन्द्र मोहन पाठक ने कहा, 'किताब छप जाने से कुछ नहीं होता, छपते रहने से होता है. मैं, मेरा ख़ुद का कॉम्पिटिटर हूं. लगातार कोशिश करने से मैंने ये मुक़ाम हासिल किया है.' पाठकों से मुखातिब होते हुए उन्होंने सलाह दी की ‘लिखना एक जॉब की तरह है, ये लक्ज़री नहीं है.' आपको बता दें कि सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा का पहला भाग ‘न कोई बैरी न कोई बेगाना' नाम से प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने अपने बचपन से लेकर कॉलेज के दिनों के जीवन के बारे में लिखा है. उससे आगे का जीवन संघर्ष उनकी आत्मकथा के दूसरे भाग ‘हम नहीं चंगे, बुरा न कोय' में लिखा है.
उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक से NDTV की खास मुलाकात
बीते छः दशकों में सुरेन्द्र मोहन पाठक ने लगभग 300 से अधिक उपन्यास लिखे हैं. अपनी आत्मकथा के ज़रिये वो अपने उस रचनाकाल के वक़्त को परत दर परत खोलते हुए सामने ले आते हैं. लोकार्पण कार्यक्रम में राजकमल प्रकाशन समूह के सम्पादकीय निदेशक सत्यानन्द निरुपम ने कहा 'हिंदी में लोकप्रिय लेखन और साहित्यिक लेखन के दो किनारे हैं, दो दुनिया है. बीच में अकादमिक जमात की आग का दरिया है. ऐसे में पाठक और पाठक के बीच की दूरी को समझा जा सकता है. आज वो दूरी जिस हद तक कम हुई है उससे हिंदी की पाठकीयता पर निश्चित रूप से दूरगामी असर पड़ेगा.' बता दें कि सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. कार्यक्रम में झारखण्ड, चंडीगढ़, मध्यप्रदेश, गोरखपुर एवं अन्य राज्यों के पाठक मौजूद थे.
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