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क्या है 2231 प्रस्ताव? जिससे ईरान के परमाणु हथियारों को रोकना चाहते हैं यूरोपीय देश

ईरान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच लंबे समय से तनाव बना हुआ है और इस बीच यूएन सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव नंबर 2231 चर्चा में आया है. इस आर्टिकल में जानिए यह प्रस्ताव क्या है और इससे ईरान पर क्या असर होगा, उसे क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं...

क्या है 2231 प्रस्ताव? जिससे ईरान के परमाणु हथियारों को रोकना चाहते हैं यूरोपीय देश
ईरान के न्यूक्लियर प्लान को लेकर यूरोपीय देशों का प्लान

Iran 2231 Proposal Explained: ईरान और दुनिया की बड़ी ताकतों के बीच परमाणु मुद्दे पर खींचतान पिछले कई सालों से बढ़ती ही जा रही है. अब एक बार फिर यूएन सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव नंबर 2231 चर्चा में है, जिसे लेकर यूरोपीय देश ईरान पर पुराने प्रतिबंधों को लागू करने की तैयारी कर रहे हैं. अगर यह कदम सच में लागू हुआ, तो न सिर्फ ईरान बल्कि पूरे मध्य-पूर्व और वैश्विक सुरक्षा पर गहरा असर पड़ेगा. लेकिन आखिर 2231 प्रस्ताव क्या है, क्यों इसे दुनियाभर में इतना अहम माना जाता है और कैसे ये ईरान के लिए खतरे की घंटी है. इस आर्टिकल में आइए विस्तार से समझते हैं...

2231 प्रस्ताव क्या है?

2015 में ईरान और 6 बड़े देशों अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के बीच JCPOA (जॉइंट कॉम्प्रेहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन) समझौता हुआ था. इसके तहत ईरान ने परमाणु हथियार विकसित न करने का वादा किया और बदले में उस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाने की शर्त रखी गई. UN सिक्योरिटी काउंसिल ने इस समझौते को मान्यता देने के लिए प्रस्ताव 2231 पास किया. यानी अब यह सिर्फ एक राजनीतिक समझौता नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून का हिस्सा बन चुका है. अगर ईरान इस कानून के मुताबिक चलता, तो धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय व्यापार और अर्थव्यवस्था में पूरी तरह सक्रिय हो जाता.

इस प्रस्ताव में क्या है

  • ईरान पर 5 साल तक हथियार खरीदने-बेचने की रोक
  • 8 साल तक बैलिस्टिक मिसाइलों पर प्रतिबंध
  • परमाणु कार्यक्रम पर निरंतर निगरानी
  • 18 अक्टूबर 2025 तक कई आर्थिक प्रतिबंध हटाने की भी शर्त

प्रस्ताव 2231 में स्नैपबैक मैकेनिज्म क्या है

प्रस्ताव 2231 का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा स्नैपबैक (Snapback) है. इसका मतलब है कि अगर किसी देश को लगे कि ईरान समझौते का पालन नहीं कर रहा, तो वह यूएन में शिकायत दर्ज कर सकता है. शिकायत होते ही 30 दिन के अंदर सिक्योरिटी काउंसिल अगर कोई नया फैसला नहीं करती है, तो पुराने प्रतिबंध अपने आप वापस लागू हो जाते हैं और इसे कोई वीटो भी नहीं रोक सकता है. मतलब चीन और रूस भी इसमें ईरान की मदद नहीं कर सकते हैं.

यूरोपीय देश क्यों कर रहे हैं कार्रवाई

अगस्त 2025 में फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने कहा कि ईरान लगातार समझौते की शर्तें तोड़ रहा है, संवर्धित यूरेनियम जमा किया गया, IAEA की रिपोर्टों को अनदेखा किया, मिसाइल गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है. इन सब कारणों से यूरोपीय देशों ने स्नैपबैक प्रक्रिया शुरू कर दी. इसका मतलब, अगले 30 दिन में या तो कोई समाधान निकलेगा या फिर पुराने प्रतिबंध स्वतः लागू हो जाएंगे. इससे ईरान की अर्थव्यवस्था को भारी झटका लग सकता है.

इस प्रस्ताव में अमेरिका, रूस और चीन की भूमिका क्या है

अमेरिका 2018 में ही समझौते से बाहर हो चुका है, लेकिन दबाव बनाता रहा है. रूस और चीन यूरोपीय कदम के खिलाफ हैं और इसे खाड़ी क्षेत्र में तनाव बढ़ाने वाला मानते हैं. इस पर ईरान ने स्पष्ट कर दिया है कि स्नैपबैक लागू होने पर वह इसे नहीं मानेगा. उसका कहना है कि उनका उद्देश्य परमाणु हथियार नहीं, बल्कि ऊर्जा और मेडिकल रिसर्च के लिए यूरेनियम संवर्धन करना है.

यह मामला अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सेंटर ऑफ अट्रैक्शन क्यों बन गया है

2231 प्रस्ताव और स्नैपबैक मैकेनिज्म न सिर्फ ईरान की स्थिति तय करते हैं, बल्कि पूरे खाड़ी क्षेत्र और ग्लोबल तेल मार्केट, हथियार व्यापार और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर असर डालते हैं. यूरोपीय देशों के इस कदम से वैश्विक राजनीति में नई चुनौतियां और टकराव सामने आने की आशंका है.

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