
- इस साल मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर हंगामे के बीच समाप्त हो रहा है
- बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन और आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी पर बिलों को लेकर संसद में भारी विवाद हुआ
- संसद में चर्चा पर काफी ज्यादा पैसा खर्च होता है, सरकार की तरफ से कुछ साल पहले इसकी जानकारी दी गई थी
Parliament Proceedings Expense: इस साल मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हुआ था, जिसके बाद अब इसका समापन हो रहा है. सत्र शुरू होने के साथ ही ऑपरेशन सिंदूर पर विस्तार से चर्चा हुई, लेकिन इसके बाद पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया. बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) से लेकर आखिर में आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी के बाद पीएम और सीएम को कुर्सी से हटाने वाले बिलों पर खूब बवाल हुआ. ऐसे में सवाल है कि संसद में होने वाली इस चर्चा पर एक दिन का खर्च कितना आता है और हंगामे से कितना नुकसान होता है.
किस मुद्दे पर होता रहा हंगामा
संसद सत्र में हर बार विपक्ष की तरफ से किसी न किसी बड़े मुद्दे पर सरकार को घेरने की प्लानिंग होती है. इस बार बिहार में हुए वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर सरकार को घेरा गया. इस पर चर्चा के लिए विपक्षी सांसद लगातार मांग करते रहे और सदन की कार्यवाही बाधित होती रही. गृहमंत्री अमित शाह की तरफ से पीएम, सीएम और मंत्रियों की गिरफ्तारी के बाद उन्हें पद से हटाने वाले तीन विधेयक पेश किए गए, लेकिन इस पर जमकर हंगामा हुआ और विपक्षी सांसदों ने बिल फाड़कर गृहमंत्री की तरफ उछाल दिया.
- लोकसभा में 120 घंटे की चर्चा का टारगेट था, जिसमें से सिर्फ 37 घंटे ही चर्चा हो पाई.
- एक महीने तक चले इस सत्र में लोकसभा में 12 और राज्यसभा में 14 विधेयक पास हुए.
संसद में चर्चा का कितना आता है खर्च?
संसद में जब भी चर्चा होती है तो एक मिनट का खर्च आम आदमी की पूरे सालभर की कमाई के बराबर होता है. यहां एक मिनट के लिए 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं. यानी एक घंटे में 1.5 करोड़ से ज्यादा का खर्च आता है. ये आंकड़ा साल 2012 में पूर्व संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल ने दिया था, अब करीब 13 साल बाद ये खर्च कई गुना ज्यादा हो सकता है. इसमें लाइव टेलीकास्ट, एयर कंडीशनिंग और कर्मचारियों का पूरा खर्च शामिल है. इस दौरान कई अतिरिक्त कर्मचारी भी लगाए जाते हैं, साथ ही सांसदों को आने-जाने और बाकी भत्ते भी दिए जाते हैं.
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कितना हुआ नुकसान?
अब अगर इस सत्र में नुकसान की बात करें तो ये कई सौ करोड़ में पहुंच जाता है. जैसा कि हमने आपको बताया था कि 120 घंटे के टारगेट में से महज 37 घंटे ही चर्चा हुई, ऐसे में हिसाब लगाएं तो ये आंकड़ा 1245000000 तक पहुंच जाता है. इसमें से लंच के कुछ घंटे निकाल भी दें तो नुकसान फिर भी कई सौ करोड़ का है. ये पूरा पैसा सीधे टैक्सपेयर्स की जेब से जाता है.
बजट सत्र में कितना हुआ था काम?
31 जनवरी 2025 से संसद का बजट सत्र शुरू हुआ था, जिसके बाद 4 अप्रैल, 2025 को ये अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया था. इस सत्र के दौरान संसद ने लोकसभा और राज्यसभा से कुल 16 बिल पास किए. कामकाज के मामले में ये सत्र काफी अच्छा रहा और इसमें 118 प्रतिशत काम हुआ. यानी टारगेट से ज्यादा की प्रोडक्टिविटी रही.
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