विज्ञापन
This Article is From Aug 14, 2018

Independence Day 2018: आज़ादी के बाद भी भारत में विलय को तैयार नहीं थीं ये 3 रियासतें, उठाना पड़ा था यह कदम

15 August Independence Day: तमाम प्रयासों के बाद तीन रियासतें भारत में विलय को तैयार नहीं थीं और तीनों के प्रमुख बेहद नकचढ़े और अड़ियल किस्म के इंसान थे.

Independence Day 2018: आज़ादी के बाद भी भारत में विलय को तैयार नहीं थीं ये 3 रियासतें, उठाना पड़ा था यह कदम
तीन रियासतें भारत में विलय को लेकर अड़ गई थीं.
नई दिल्ली: लंबे इंतज़ार के बाद भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिली. 15 अगस्त, यानी भारत का स्वतंत्रता दिवस (Independence Day). फ़िज़ां में अलग ही रौनक थी, लेकिन खुशी के माहौल के बीच लोगों के चेहरे पर दुख भी था. दुख था देश के दो टुकड़े होने का. आज़ादी मिल गई थी, लेकिन सरकार की असली परीक्षा अभी बाकी थी. चुनौती थी देश को एक धागे में पिरोने की, और इस धागे में जिन्हें मोतियों के रूप में पिरोया जाना था, वे थीं छोटी-बड़ी 565 रियासतें. चूंकि कांग्रेस शुरू से ही इस बात की पक्षधर थी कि आज़ादी के बाद सभी रियासतों का भारत में विलय कर दिया जाएगा, इसलिए आज़ादी के बाद इसकी पहल शुरू हुई. इसका जिम्मा सौंपा गया सरदार वल्लभभाई पटेल को. वैसे भी, देश के पहले गृहमंत्री की हैसियत से यह जिम्मेदारी उनके कंधों पर आती ही.

72nd Independence Day: देशभक्ति से भरे इन डायलॉग्स से कितने वाकिफ हैं आप? 

सरदार वल्लभभाई पटेल और वीपी मेनन ने इसके लिए प्रयास शुरू किए. वीपी मेनन सरदार पटेल के सचिव और तेजतर्रार अफसर थे. प्रख्यात इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखते हैं कि वीपी मेनन बेहद तेज और चौकन्ने किस्म के अधिकारी थे, और वह उस पद पर काफी नीचे से पदोन्नत होकर पहुंचे थे. विलय की कवायद शुरू हुई तो अधिकतर रियासतों ने भारत सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और एक हो गए, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद तीन रियासतें भारत में विलय को तैयार नहीं थीं और तीनों के प्रमुख बेहद नकचढ़े और अड़ियल किस्म के इंसान थे. ये तीन रियासतें थीं - कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़. हालांकि भोपाल ऐसी रियासत थी, जिसका विलय इनसे भी बाद में हुआ, लेकिन वहां इतनी दिक्कत नहीं आई थी.

15 August Independence Day: ये हैं राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े नियम, ऐसे फहराया जाता हैं तिरंगा 

जितना अमीर, उतना ही कंजूस था हैदराबाद का निज़ाम
यूं तो हैदराबाद के निज़ाम की गिनती दुनिया के सबसे अमीर आदमियों में होती थी, लेकिन वह उससे कहीं ज्यादा कंजूस भी था. इतिहासकार डॉमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में लिखते हैं कि निज़ाम अक्सर मैला सूती पायजामा पहने रहता था और उसके पैर में घटिया किस्म की जूतियां होती थीं. वह 35 साल से एक ही फफूंद लगी हुई तुर्की टोपी पहनता था. रियासत के विलय की बात आई तो निज़ाम अड़ गया. पहले तो उसने हैदराबाद को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करने का राग अलापा और बाद में पाकिस्तान की तरफ झुकाव बढ़ने लगा. इसकी वजह थी मोहम्मद अली जिन्ना का निज़ाम की तरफ झुकाव, जो उसका पूरा समर्थन कर रहे थे. जून, 1948 में लॉर्ड माउंटबैटन के इस्तीफे के बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत में मिलाने के लिए कड़ा कदम उठाया. हैदराबाद में सेना भेज दी गई और 4 दिन बाद ही निज़ाम ने घुटने टेक दिए. इस तरह हैदराबाद भारत का अंग बना.

कभी सत्ता को उखाड़ फेंका तो कभी बदल दिया समाज का ताना-बाना, आजादी के बाद हुये ये 7 बड़े राजनीतिक आंदोलन 

जूनागढ़, जहां की जनता ने भारत को चुना...
गुजरात का जूनागढ़ भी देश की समृद्ध रियासतों में से एक था, लेकिन जो सबसे बड़ी समस्या थी, वह यह थी कि जूनागढ़ के नवाब मुसलमान थे और अधिकांश प्रजा हिन्दू थी. नवाब मोहम्मद महाबत खानजी तृतीय ने अपनी रियासत का भारत में विलय करने से इंकार कर दिया और पाकिस्तान से बातचीत करने लगे. इससे खफा सरदार वल्लभभाई पटेल ने जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराने की मांग की और जब जनमत संग्रह के नतीजे आए तो जूनागढ़ की जनता ने भारत में शामिल होना चुना था. हालांकि नवाब तब भी अड़े थे, लेकिन भारतीय सेना के हस्तक्षेप के बाद जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया और नवाब पाकिस्तान भाग गए. 

कश्मीर में राजा हिन्दू और अधिकांश प्रजा मुस्लिम थी
कश्मीर का विलय सबसे ज़्यादा मुश्किल और चुनौतियों भरा था. 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) को भारत की आज़ादी के बाद कश्मीर के महाराजा हरि सिंह यह तय नहीं कर पा रहे थे कि वह किस तरफ जाएं. कश्मीर में ठीक जूनागढ़ से उलट स्थिति थी. यहां महाराजा हिन्दू था और अधिकांश प्रजा मुस्लिम. यह ऊहापोह की स्थिति करीब डेढ़ महीने तक बनी रही. कई इतिहासकार कहते हैं कि महाराजा हरिसिंह भारत में विलय के पक्ष में थे, और इसके लिए बात भी कर रहे थे, लेकिन इसी बीच पाकिस्तान की तरफ से कबायली लड़ाकुओं ने कश्मीर पर हमला कर दिया. कबायलियों की फौज श्रीनगर की तरफ बढ़ने लगी और गैर मुस्लिमों से मार-काट की खबरें आने लगीं. अक्टूबर, 1947 में महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर छोड़कर जम्मू के अपने सुरक्षित महल में पनाह ली और सरकार से संपर्क किया. वीपी मेनन जम्मू गए और हरिसिंह से विलय के कागज़ात पर हस्ताक्षर करा लिए. अगले ही दिन कश्नमीर में सेना भेज दी गई और कबायलियों को खदेड़ दिया गया.

ये हैं राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' से जुड़े नियम, जानें, कैसे फहराया जाता हैं तिरंगा  

VIDEO: भूख से आज़ादी : भोपाल में सिर्फ 5 रुपये में खाना खिलाने की पहल

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com