कभी सत्ता को उखाड़ फेंका तो कभी बदल दिया समाज का ताना-बाना, आजादी के बाद हुये ये 7 बड़े राजनीतिक आंदोलन

Independence Day 2018 : कई बार ये आंदोलन सामाजिक-राजनीतिक भी रहे हैं लेकिन हर तरह के झंझावतों को झेलते हुये भी रास्ते निकाले गये. कुछ आंदोलनों ने देश के ताने-बाने पर भी अच्छा खासा असर डाला है.

कभी सत्ता को उखाड़ फेंका तो कभी बदल दिया समाज का ताना-बाना, आजादी के बाद हुये ये 7 बड़े राजनीतिक आंदोलन

Independence Day 2018 : बुधवार को 72वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जायेगा

नई दिल्ली:

भारत को आजादी को मिले 71 साल बीत गये हैं. बुधवार को 72वां स्वतंत्रता दिवस है. 15 अगस्त 1947 से लेकर 15 अगस्त 2018 तक की यात्रा तय करने के बीच देश ने कई उतार-चढ़ाव, राजनीतिक उठा-पटक देखा है. यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती रही है कि अनेक तरह के विवादों और मतभेदों के बाद भी यहां जनता का शासन हमेशा रहा है. इन 71 सालों में कई पड़ोसी देशों में फौजी शासन ने कितने ही बार प्रजातंत्र को कुचला है लेकिन भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था समय के साथ परिपक्व होती रही है. बहुलता, विचारों में भिन्नता, भौगोलिक असमानता और विभिन्न तरह की संस्कृतियों के बीच देश में लोकतंत्र का सूर्य हमेशा चमकता रहा. इन सालों में कई आंदोलन भी हुये जिनके जरिये जनता ने अपनी मांगों को सरकारों के सामने रखती रही है. कई बार ये आंदोलन सामाजिक-राजनीतिक भी रहे हैं लेकिन हर तरह के झंझावतों को झेलते हुये भी रास्ते निकाले गये. कुछ आंदोलनों ने देश के ताने-बाने पर भी अच्छा खासा असर डाला है.

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1-द्रविड़ आंदोलन

धार्मिक विश्वास और कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ शुरू हुये इस आंदोलन की शुरुआततमिलनाडु के महान समाज सुधारक ईवीके रामास्‍वामी 'पेरियार' ने की थी. इस आंदोलन में मनुस्मृति जैसे हिंदू धर्मग्रंथों को जलाया गया. ​

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2-हिंदी के खिलाफ आंदोलन
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स्कूलों में हिंदी भाषा अनिवार्य किये जाने के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गया. इस आंदोलन में एम करुणानिधि ने भी जमकर हिस्सा लिया और हिंदी विरोध को उन्होंने हथियार बना लिया. यह आंदोलन द्रविड़ आंदोलन के बीच से ही निकला था.

3-जेपी आंदोलन
1974 में शुरू हुआ जेपी आंदोलन सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ था. इस आंदोलन का परिणाम था कि इंदिरा गांधी जैसी मजबूत राजनीतिक शख्सियत चुनाव हार जाती हैं और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार केंद्र में बनी थी. जय प्रकाश नारायण के 'संपूर्ण क्रांति' के नारे के पीछे समूचा विपक्ष खड़ा हो गया था और इस आंदोलन को कुचलने के लिये इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी.

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4-नामांतर आंदोलन
1978 में शुरू हुआ यह आंदोलन औरंगाबाद में ‘मराठवाडा’ यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर ‘डॉ बीआर आंबेडकर’ यूनिवर्सिटी करने के लिए शुरू किया गया था. यह आंदोलन 16 साल तक चला था. इसमें आंदोलन की जीत हुई थी. लेकिन इस आंदोलन ने पहली बार दलितों के अंदर इस भावना को जन्म दिया था कि लोकतंत्र में उनकी भी आवाज सुनी जायेगी.

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5-वीपी सिंह का 'मंडल' और बीजेपी का 'कमंडल'
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कांग्रेस पार्टी से निकले वीपी सिंह ने देश में एक नई तरह की राजनीति शुरू कर दी. राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स घोटाले का आरोप लगाने वाले वीपी सिंह ने देश में दलितों के आरक्षण के लिये मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर दीं. जिससे एक वर्ग में उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई. वीपी सिंह के इस फैसले ने देश के ताने-बाने को बदल कर रख दिया था. लेकिन इसके जवाब में बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन शुरू कर दिया. इस आंदोलन ने देश की राजनीति की दशा और दिशा दोनों बदल कर रख दी.

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6-अन्ना आंदोलन
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जनलोकपाल बिल के लिये शुरू किया गये इस आंदोलन के दम पर अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई है जिसकी अभी दिल्ली में सरकार है. साल 2011 में शुरू हुआ यह आंदोलन डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई में चल रही यूपीए सरकार के खिलाफ अच्छा-खासा माहौल खड़ा कर दिया था. पूरे देश में लोग अन्ना आंदोलन से जुड़ते चले जा रहे थे. लेकिन इस आंदोलन से जुड़े अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया जिसके बाद यह आंदोलन खत्म हो गया.

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7-महाराष्ट्र में उत्तर और दक्षिण भारतीयों के खिलाफ आंदोलन
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यह किसी राज्य में दूसरे राज्य से आये लोगों के खिलाफ अपनी तरह का पहला आंदोलन था. शिवसेना की स्थापना करने वाले बाल ठाकरे ने इसको अपनी राजनीतिक हथियार बनाया और 1980 तक शिवसेना राज्य में बड़ी ताकत बन गई थी. बाल ठाकरे महाराष्ट्र में बाहरी लोगों को नौकरी और रोजगार के खिलाफ थे. यह बात वहां की जनता को काफी पसंद आई और वह शिवसेना से जुड़ते चले गये.


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