जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Election) की तारीखों का ऐलान हो चुका है.18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्टूबर को 3 चरणों में चुनाव होगा.10 साल बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने जा रहा है. खास बात यह है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब यह पहले वाला जम्मू-कश्मीर नहीं रहा, ये बदल चुका है. अब यह केंद्र शासित प्रदेश है, जो पत्थरबाजों, भय और आतंक से कोसों दूर है. घाटी के लोगों को लंबे समय से चुनाव का इंतजार था, ये इंतजार आज खत्म होने जा रहा है. इस बीच आपको पिछले चुनाव यानी कि साल 2014 में हुए चुनाव की कहानी बताते हैं. चुनाव में किस दल का दबदबा रहा और वहां से मौजूदा राजनीतिक समीकरण क्या हैं, विस्तार से समझिए.
विधानसभा चुनाव 2014- 5 फेज
- 25 नवंबर, मंगलवार-15 सीटों पर चुनाव
- 2 दिसंबर, मंगलवार-18 सीटों पर चुनाव
- 9 दिसंबर, मंगलवार-16 सीटों पर चुनाव
- 14 दसंबर, रविवार-18 सीटों पर चुनाव
- 20 दसंबर, शनिवार-20 सीटों पर चुनाव
साल 2014 विधानसभा चुनाव
- जम्मू-कश्मीर में पिछला विधानसभा साल 87 सीटों पर हुआ.
- जम्मू की 37, कश्मीर की 46 सीटों और लद्दाख की 6 सीटों पर हुई वोटिंग.
- 25 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में वोटिंग हुई.
- 23 दिसंबर 2014 को घोषित हुए चुनाव के परिणाम.
- 87 में से 3 विधानसभा सीटों पर EVM के साथ VVPAT का इस्तेमाल.
- कांग्रेस ने सभी सीटों पर अकेले लड़ा था चुनाव.
कितने प्रतिशत हुआ मतदान, किसको कितनी सीटें मिलीं
जम्मू-कश्मीर में 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 65 फीसदी रहा था. लेकिन कोई भी दल पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सका था. बीजेपी ने 25 सीटों के साथ 23 फीसदी वोट हासिल किए थे, वहीं पीडीपी ने 28 सीटों के साथ 22 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. सीटों के लिहाज से पीडीपी बड़ी पार्टी थी.
नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें ही मिली थीं. उस दौरान दो बड़े दलों बीजेपी-पीडीपी ने गठबंधन में सरकार बना ली. महबूरा मुफ्ती सीएम बनीं, लेकिन ये सरकार अपना कार्यकाल पूरा ही नहीं कर सकी. साल 2018 में बीजेपी ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई. तब से अब तक वहां पर कोई भी चुनी हुई सरकार नहीं है. वहां पर राज्यपाल शासन लग गया था.राज्यपाल ने 21 नवंबर 2018 को द्वारा जम्मू-कश्मीर की विधानसभा भंग कर दी थी. 6 महीने के भीतर नए चुनावों की उम्मीद थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
कब क्या हुआ?
मार्च 2015 में पीडीपी-बीजेपी ने सरकार बनाई.
जनवरी 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन.
अप्रैल 2016 में महबूबा मुफ्ती बनीं मुख्यमंत्री.
जून 2018 में बीजेपी ने समर्थन लिया वापस, महबूबा ने सीएम पद से दिया इस्तीफा.
20 जून 2018 से राष्ट्रपति शासन लागू हुआ, जो बढ़ता रहा.
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने किया था चुनाव का बहिष्कार
अलगाववादी ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने कश्मीर के लोगों से विधानसबा चुनाव के बहिष्कार की अपील की थी. सैयद अली शाह गिलानी का तर्क था कि घाटी में चुनाव करवाने के लिए बंदूक की ताकत का इस्तेमाल किया जा रहा है.उन्होंने युवाओं से मतदान नहीं करने की अपील की थी. इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल किया था. उस दौरान आसिया अद्राबी का 4 मिनट का एक वीडियो क्लिप भी खूब वायरल हुआ था.
कितना बदल गया सियासी समीकरण
चुनाव की तारीखों के बीच अब निगाहें इस बात पर हैं कि क्या जम्मू-कश्मीर के बड़े क्षेत्रीय दल पीडीपी और नेशनल कॉन्फेंस चुनावी मैदान में उतरेंगे. साल 2019 में नजरबंदी से रिहाई के बाद दोनों नेताओं ने अनुच्छेद 370 के बहाल होने तक विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था. हालांकि दोनों ही दलों का लोकसभा चुनाव 2024 में प्रदर्शन बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा. दोनों ही चुनाव हार गए थे. लेकिन उमर अब्दुल्ला के पिता फारूख अब्दुल्ला चुनाव लड़ने का ऐलान पहले ही कर चुके हैं. अब महबूबा के रुख पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं.
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