बीएस येदियुरप्पा तीसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने हैं.
नई दिल्ली:
बुकानकेरे सिद्दलिंगप्पा येदियुरप्पा, यानी बीएस येदियुरप्पा गुरुवार को कर्नाटक के 25वें मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ले चुके हैं, और यह मुख्यमंत्री के रूप में उनका तीसरा कार्यकाल है, जिसे लेकर राजनैतिक हलकों में हंगामा लगातार जारी है... विधानसभा चुनाव में 104 सीटें जीतकर BJP सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई, और कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार को गद्दी छोड़नी पड़ी... लेकिन नतीजों की आधिकारिक घोषणा से पहले ही कांग्रेस ने नई चाल चली, और सिर्फ 78 सीटों पर जीतने के बावजूद 38 सीटें हासिल करने वाले JDS गठबंधन को बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान कर दिया, ताकि BJP को सत्ता से दूर रखा जा सके...
अब गेंद राज्य के गवर्नर वजूभाई वाला के पाले में थी, जिन्हें यह तय करना था कि वह सरकार बनाने का न्योता सबसे बड़ी पार्टी (BJP) को दें, या चुनाव-बाद आनन-फानन में तैयार हुए सबसे बड़े गठबंधन (कांग्रेस-JDS) को, जिनके पास बहुमत के लायक संख्याबल का दावा किया गया... लेकिन पूरे 24 घंटे तक चली अटकलों के बाद अंततः गवर्नर साहब ने BJP के येदियुरप्पा को ही सरकार गठन का न्योता दिया... यही नहीं, गवर्नर ने उन्हें सदन में बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का वक्त भी दिया है...
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इसके बाद इस पर आपत्ति जताते हुए कांग्रेस ने आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, और रातभर चली ज़ोरदार बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायमूर्तियों की बेंच ने शपथग्रहण पर रोक लगाने से इंकार करते हुए अगली सुनवाई के लिए शुक्रवार सुबह का वक्त तय किया... खैर, मुद्दे की बात यह है कि गुरुवार सुबह बीएस येदियुरप्पा ने अपना वह दावा सच साबित कर दिखाया, जो उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान किया था... उन्होंने कहा था कि कर्नाटक में BJP की सरकार बनेगी, और वह मुख्यमंत्री के रूप में 17 मई को शपथ ग्रहण करेंगे...
इस घटनाक्रम में सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि येदियुरप्पा तीसरी बार कर्नाटक राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए हैं, लेकिन अब तक उनके दोनों पिछले कार्यकालों की कुल अवधि तीन साल 71 दिन रही है, यानी कोई भी कार्यकाल वह पूरा नहीं कर पाए हैं...
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येदियुरप्पा पहली बार 12 नवंबर, 2007 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन आठवें ही दिन 19 नवंबर, 2007 को उन्हें पद छोड़ना पड़ा था... दरअसल, मुख्यमंत्री पद पर बराबर-बराबर वक्त तक रहने के समझौते के तहत येदियुरप्पा ने JDS नेता एचडी कुमारस्वामी को फरवरी, 2006 में मुख्यमंत्री बनवा दिया था, लेकिन जब अक्टूबर, 2007 में येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने का वक्त आया, तो कुमारस्वामी समझौते से मुकर गए... येदियुरप्पा के दल ने समर्थन वापस ले लिया, और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया... नवंबर, 2007 में राष्ट्रपति शासन खत्म हुआ, जब कुमारस्वामी ने समझौते का सम्मान करने का वचन दिया, और 12 नवंबर, 2007 को येदियुरप्पा पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए, लेकिन कुछ ही दिन बाद मंत्रालयों में बंटवारे को लेकर मतभेदों के चलते येदियुरप्पा को 19 नवंबर, 2007 को ही इस्तीफा देना पड़ा...
इसके बाद वर्ष 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में BJP को शानदार जीत मिली, और येदियुरप्पा 30 मई, 2008 को दूसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए... इस कार्यकाल के दौरान उन पर राज्य के लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के मामलों में उनका नाम लिया, और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के ज़ोरदार दबाव की वजह से उन्होंने 31 जुलाई, 2011 को पद से इस्तीफा दे दिया...
VIDEO : तीसरी बार सीएम बने येदियुरप्पा
BJP के केंद्रीय नेतृत्व पर अनदेखी का आरोप लगाकर अलग पार्टी बना चुके और वर्ष 2014 में BJP में लौटे येदियुरप्पा अब तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने ज़रूर हैं, लेकिन अब भी उनके सामने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अलावा बहुमत साबित करने की चुनौती है, जो काफी टेढ़ी खीर प्रतीत होती है... अगर कांग्रेस और JDS के विधायक एकजुट बने रहे, तो उनके लिए बहुमत जुटाना कतई असंभव होगा, क्योंकि इन दोनों पार्टियों के पास कुल 116 विधायक हैं, और उनका दावा एक निर्दलीय विधायक के समर्थन का भी है... सो, अगर ये 117 विधायक एकजुट रहे, तो बाकी बचे 105 विधायकों से किसी भी तरह बहुमत साबित नहीं किया जा सकेगा, और येदियुरप्पा एक बार फिर कार्यकाल पूरा किए बिना गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे...
अब गेंद राज्य के गवर्नर वजूभाई वाला के पाले में थी, जिन्हें यह तय करना था कि वह सरकार बनाने का न्योता सबसे बड़ी पार्टी (BJP) को दें, या चुनाव-बाद आनन-फानन में तैयार हुए सबसे बड़े गठबंधन (कांग्रेस-JDS) को, जिनके पास बहुमत के लायक संख्याबल का दावा किया गया... लेकिन पूरे 24 घंटे तक चली अटकलों के बाद अंततः गवर्नर साहब ने BJP के येदियुरप्पा को ही सरकार गठन का न्योता दिया... यही नहीं, गवर्नर ने उन्हें सदन में बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का वक्त भी दिया है...
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इसके बाद इस पर आपत्ति जताते हुए कांग्रेस ने आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, और रातभर चली ज़ोरदार बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायमूर्तियों की बेंच ने शपथग्रहण पर रोक लगाने से इंकार करते हुए अगली सुनवाई के लिए शुक्रवार सुबह का वक्त तय किया... खैर, मुद्दे की बात यह है कि गुरुवार सुबह बीएस येदियुरप्पा ने अपना वह दावा सच साबित कर दिखाया, जो उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान किया था... उन्होंने कहा था कि कर्नाटक में BJP की सरकार बनेगी, और वह मुख्यमंत्री के रूप में 17 मई को शपथ ग्रहण करेंगे...
इस घटनाक्रम में सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि येदियुरप्पा तीसरी बार कर्नाटक राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए हैं, लेकिन अब तक उनके दोनों पिछले कार्यकालों की कुल अवधि तीन साल 71 दिन रही है, यानी कोई भी कार्यकाल वह पूरा नहीं कर पाए हैं...
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येदियुरप्पा पहली बार 12 नवंबर, 2007 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन आठवें ही दिन 19 नवंबर, 2007 को उन्हें पद छोड़ना पड़ा था... दरअसल, मुख्यमंत्री पद पर बराबर-बराबर वक्त तक रहने के समझौते के तहत येदियुरप्पा ने JDS नेता एचडी कुमारस्वामी को फरवरी, 2006 में मुख्यमंत्री बनवा दिया था, लेकिन जब अक्टूबर, 2007 में येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने का वक्त आया, तो कुमारस्वामी समझौते से मुकर गए... येदियुरप्पा के दल ने समर्थन वापस ले लिया, और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया... नवंबर, 2007 में राष्ट्रपति शासन खत्म हुआ, जब कुमारस्वामी ने समझौते का सम्मान करने का वचन दिया, और 12 नवंबर, 2007 को येदियुरप्पा पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए, लेकिन कुछ ही दिन बाद मंत्रालयों में बंटवारे को लेकर मतभेदों के चलते येदियुरप्पा को 19 नवंबर, 2007 को ही इस्तीफा देना पड़ा...
इसके बाद वर्ष 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में BJP को शानदार जीत मिली, और येदियुरप्पा 30 मई, 2008 को दूसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए... इस कार्यकाल के दौरान उन पर राज्य के लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के मामलों में उनका नाम लिया, और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के ज़ोरदार दबाव की वजह से उन्होंने 31 जुलाई, 2011 को पद से इस्तीफा दे दिया...
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BJP के केंद्रीय नेतृत्व पर अनदेखी का आरोप लगाकर अलग पार्टी बना चुके और वर्ष 2014 में BJP में लौटे येदियुरप्पा अब तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने ज़रूर हैं, लेकिन अब भी उनके सामने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अलावा बहुमत साबित करने की चुनौती है, जो काफी टेढ़ी खीर प्रतीत होती है... अगर कांग्रेस और JDS के विधायक एकजुट बने रहे, तो उनके लिए बहुमत जुटाना कतई असंभव होगा, क्योंकि इन दोनों पार्टियों के पास कुल 116 विधायक हैं, और उनका दावा एक निर्दलीय विधायक के समर्थन का भी है... सो, अगर ये 117 विधायक एकजुट रहे, तो बाकी बचे 105 विधायकों से किसी भी तरह बहुमत साबित नहीं किया जा सकेगा, और येदियुरप्पा एक बार फिर कार्यकाल पूरा किए बिना गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे...
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