याकूब मेमन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
1993 बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को 30 जुलाई को फांसी होगी या नहीं, ये सवाल अभी बरकरार है। क्योंकि याकूब की याचिका पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस कूरियर जोसफ ने कई बड़े सवाल उठा दिए। ये सवाल भी किसी और पर नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट पर ही उठाए हैं।
सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि 21 जुलाई को क्यूरेटिव पेटिशन की सुनवाई में उन्हें भी शामिल किया जाना चाहिए था क्योंकि नियमों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ जजों के अलावा वो बेंच भी शामिल होनी चाहिए जिसने आखिरी में केस को सुना था।
हालांकि केंद्र और महाराष्ट्र सरकार अपनी दलीलें देती रहीं। सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि जिस बेंच ने फांसी की सजा बरकरार रखी थी, वो दोनों जज जस्टिस सदाशिवम और जस्टिस बीएस चौहान रिटायर हो चुके हैं। लेकिन जस्टिस कूरियन ने कहा कि वो उस बेंच में शामिल थे जिसने दस दिनों तक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई किया था। ऐसे में उन्हें और जस्टिस चेलमेश्वर को क्यूरेटिव पेटिशन की सुनवाई में शामिल किया जाना चाहिए था।
गौरतलब है कि 21 जुलाई को चीफ जस्टिस एचएल दत्तू, जस्टिस टी एस ठाकुर और जस्टिस अनिल आर दवे ने याकूब की क्यूरेटिव पेटिशन खारिज की थी। हालांकि वो याकूब की पुनर्विचार याचिका की सुनवाई कर रही बेंच की अगवाई कर रहे थे, लेकिन क्यूरेटिव में वो वरिष्ठता के आधार पर शामिल हुए थे।
रोहतगी ने कहा कि यहां मुद्दा सिर्फ डेथ वारंट को लेकर उठा है
याकूब मेमन के पास कोई कानूनी रास्ता नहीं बचा। राज्यपाल और राष्ट्रपति उसकी दया याचिका खारिज कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट भी पुनर्विचार और क्यूरेटिव पेटिशन खारिज कर चुका है।
लेकिन, याकूब की ओर से पेश हुए राजू रामचंद्रन ने कहा कि डेथ वारंट 30 अप्रैल को जारी हुआ जबकि बाद में जेलर ने ही याकूब को बताया कि वो चाहे तो क्यूरेटिव पेटिशन दाखिल कर सकता है। इसके बाद 12 मई को याकूब की ओर से क्यूरेटिव पेटिशन दाखिल की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के हिसाब से ये डेथ वारंट गैर-कानूनी है। हालांकि बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस अनिल आर दवे की राय भी सरकार से मिलती-जुलती है।
लेकिन दोनों जजों की राय फिलहाल अलग दिख रही है। जस्टिस कूरियर सुप्रीम कोर्ट पर ही सवाल उठा रहे हैं, अब सरकार मंगलवार को उनके सवालों का जवाब देगी।
जस्टिस कूरियन ने पहले भी गुड फ्राइडे के दिन जज कांफ्रेंस करने पर आपत्ति जताते हुए चीफ जस्टिस और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी।
सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि 21 जुलाई को क्यूरेटिव पेटिशन की सुनवाई में उन्हें भी शामिल किया जाना चाहिए था क्योंकि नियमों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ जजों के अलावा वो बेंच भी शामिल होनी चाहिए जिसने आखिरी में केस को सुना था।
हालांकि केंद्र और महाराष्ट्र सरकार अपनी दलीलें देती रहीं। सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि जिस बेंच ने फांसी की सजा बरकरार रखी थी, वो दोनों जज जस्टिस सदाशिवम और जस्टिस बीएस चौहान रिटायर हो चुके हैं। लेकिन जस्टिस कूरियन ने कहा कि वो उस बेंच में शामिल थे जिसने दस दिनों तक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई किया था। ऐसे में उन्हें और जस्टिस चेलमेश्वर को क्यूरेटिव पेटिशन की सुनवाई में शामिल किया जाना चाहिए था।
गौरतलब है कि 21 जुलाई को चीफ जस्टिस एचएल दत्तू, जस्टिस टी एस ठाकुर और जस्टिस अनिल आर दवे ने याकूब की क्यूरेटिव पेटिशन खारिज की थी। हालांकि वो याकूब की पुनर्विचार याचिका की सुनवाई कर रही बेंच की अगवाई कर रहे थे, लेकिन क्यूरेटिव में वो वरिष्ठता के आधार पर शामिल हुए थे।
रोहतगी ने कहा कि यहां मुद्दा सिर्फ डेथ वारंट को लेकर उठा है
याकूब मेमन के पास कोई कानूनी रास्ता नहीं बचा। राज्यपाल और राष्ट्रपति उसकी दया याचिका खारिज कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट भी पुनर्विचार और क्यूरेटिव पेटिशन खारिज कर चुका है।
लेकिन, याकूब की ओर से पेश हुए राजू रामचंद्रन ने कहा कि डेथ वारंट 30 अप्रैल को जारी हुआ जबकि बाद में जेलर ने ही याकूब को बताया कि वो चाहे तो क्यूरेटिव पेटिशन दाखिल कर सकता है। इसके बाद 12 मई को याकूब की ओर से क्यूरेटिव पेटिशन दाखिल की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के हिसाब से ये डेथ वारंट गैर-कानूनी है। हालांकि बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस अनिल आर दवे की राय भी सरकार से मिलती-जुलती है।
लेकिन दोनों जजों की राय फिलहाल अलग दिख रही है। जस्टिस कूरियर सुप्रीम कोर्ट पर ही सवाल उठा रहे हैं, अब सरकार मंगलवार को उनके सवालों का जवाब देगी।
जस्टिस कूरियन ने पहले भी गुड फ्राइडे के दिन जज कांफ्रेंस करने पर आपत्ति जताते हुए चीफ जस्टिस और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी।
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