
- रनथंभौर की मशहूर बाघिन मछली काे आज भी लोग याद करते हैं, जो सबसे ताकतवर, चालाक और बहादुर बाघिन मानी जाती थी.
- मछली बाघिन का जन्म 1997 के मॉनसून में हुआ था, उसकी कनपटी पर मछली जैसी आकृति थी, जो उसे अपनी मां से मिला था.
- 2016 में 20 वर्ष की उम्र में मछली बाघिन का निधन हो गया. रनथंभौर में पूरे सम्मान के साथ उसे विदाई दी गई थी.
रनथंभौर के जंगलों में जहां उसके आने की आहट होती थी तो बाकी सारे किनारे हो जाते थे. दूर से ही उसकी दिखती उसकी आकृति और भी विशाल दिखाई देती थी, जंगल की रानी जैसी चाल, आंखों में गर्व और जंगल पर कब्जे का ऐलान करती हुई वो आती थी. वाकई, वो जंगल की रानी ही तो थी. रनथंभौर की रानी- 'मछली' बाघिन, जिसकी पहचान थी, T-16 और लोग उसे 'लेडी ऑफ द लेक' नाम से भी जानते थे. उसका नाम ही केवल मछली था, लेकिन हावभाव ऐसे, जैसे जंगल की रानी हो.
दरअसल उसकी बाईं कनपटी पर मछली जैसी आकृति बनी थी, जो उसे उसकी मां से विरासत में मिली थी. वो उसकी अनोखी पहचान थी और इसलिए उसका नाम मछली पड़ा. आज वर्ल्ड टाइगर डे पर हम बता रहे हैं, उसी मछली बाघिन की कहानी.

चालाक, ताकतवर और बहादुर
साल 1997 के मॉनसून में जन्मी मछली ने दो साल की उम्र में ही शिकार करना शुरू कर दिया था. जल्द ही उसने अपनी मां के इलाके का बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया. मंदिरों, झीलों और किलों वाला वो इलाका रनथंभौर का सबसे खूबसूरत और सबसे बड़ा इलाका था.

रनथंभौर नेशनल पार्क की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, मछली सिर्फ ताकतवर ही नहीं, चालाक भी थी और बहादुर भी. उसने कई बार सैलानियों की जीपों का इस्तेमाल करके शिकार किया. इंसानों से उसका एक अजीब-सा अपनापन था, शायद यही वजह थी कि वो दुनिया की सबसे ज्यादा फोटो खींची जाने वाली बाघिन बनी.
जब 14 फीट लंबे मगरमच्छ से भिड़ गई मछली
उसकी सबसे बहादुरी की एक कहानी, आज भी रेंजर याद करते हैं, जब उसने अपने शावकों को बचाने के लिए 14 फीट लंबे मगरमच्छ से अकेले भिड़ंत ली थी. रनथंभौर के गवाह कहते हैं कि ये मंजर इतिहास बन गया.

मछली बाघिन ने तीन टाइगर मेल्स से संतानें पैदा की थीं, जिनमें सुंदरी (टी-17), ब्रोकन टेल, शरमीली और बहादुर जैसे नाम शामिल हैं. उसकी दो बेटियों को सरिस्का टाइगर रिजर्व में भेजा गया, ताकि वहां बाघों की आबादी बढ़ सके.
2016 में छोड़ गई मछली
अपने जीवन के आखिरी सालों में मछली बाघिन बूढ़ी हो चली थी, उसके दांत भी टूट चुके थे और अस्वस्थ भी रहने लगी थी. 2016 में 20 साल की उम्र में वो दुनिया छोड़ गई. ये किसी भी जंगली बाघ के औसत जीवनकाल से कहीं अधिक है.

मछली चली गई, लेकिन उसकी विरासत आज भी जीवित है, उसपे किताबें लिखी गईं, डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनी. 'The World's Most Famous Tiger' नाम की फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. सरकार ने उसकी याद में डाक टिकट भी जारी किया.

मछली अब नहीं है, लेकिन उसके साहस, मातृत्व और रॉयल अंदाज की कहानियां आज भी रनथंभौर के जंगलों में गूंजती हैं.
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