नई दिल्ली:
भारत कोशिश कर रहा है कि सैन्य निगरानी के लिए अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन विमान खरीदने का सौदा अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का कार्यकाल खत्म होने से पहले जल्दी ही पूरा हो जाए. यह जानकारी समाचार एजेंसी रॉयटर ने दिल्ली में बैठे अनाम सरकारी सूत्रों के हवाले से दी है.
रॉयटर का दावा है कि जून में भारत की ओर से 22 प्रीडेटर गार्जियन ड्रोन विमान खरीदने के लिए किए गए सौदे पर बातचीत अंतिम चरण में है.
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने रॉयटर को बताया, "यह बढ़िया चल रहा है... मकसद यह है कि मुख्य प्रक्रिया को अगले कुछ महीनों में खत्म कर लिया जाए..."
हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ काफी करीबी व्यक्तिगत संबंध स्थापित कर लिए हैं, और इस बीच अमेरिका भी भारत को हथियारों की आपूर्ति के मामले में रूस से आगे निकल चुका है.
अमेरिकन फॉरेन पॉलिसी काउंसिल में एशिया सिक्योरिटी प्रोग्राम्स के निदेशक जेफ स्मिथ ने कहा, "सरकार जितना हो सके, ज़्यादा से ज़्यादा काम जल्दी से जल्दी खत्म करने के लिए उत्सुक है... सरकार का मानना है कि दोनों देशों की राजधानियों में हालात भी, और अधिकारी भी यही चाहते हैं, और चाहते हैं कि इस प्रगति को मजबूत कर लिया जाए..."
अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' पर आधारित विदेश नीति से जुड़े बयानों के मद्देनज़र भारत तथा अन्य एशियाई देशों में अटकलों का बाज़ार गर्म है कि ट्रंप के जीतने की स्थिति में एशिया में अमेरिका की उपस्थिति कम की जा सकती है.
ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका के सहयोगी देश जापान और दक्षिण कोरिया को अपनी रक्षा के लिए ज़्यादा रकम खर्च करनी चाहिए. उन्होंने मार्च महीने में 'न्यूयार्क टाइम्स' को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि वह जापान में बने बेसों से अमेरिकी फौज को वापस बुला सकते हैं, और उन्होंने इस विचार को भी हवा दी थी कि वह जापान और दक्षिण कोरिया को खुद का परमाणु शस्त्रागार विकसित करने दे सकते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार अभियान के दौरान संचार निदेशक की हैसियत में काम कर चुके लंदन में बसे राजनैतिक रणनीतिकार मनोज लाडवा का कहना है कि ट्रंप ने भारत को विरोधाभासी संदेश भेजे हैं. उन्होंने बताया, "एक तरफ ट्रंप का कहना है कि वह भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को महत्व देते हैं, लेकिन साथ ही भारतीय कॉल सेंटर में काम करने वालों का मज़ाक भी उड़ाते हैं, और उस प्रतियोगी माहौल की अनदेखी करते हैं, जो भारत के साथ सहयोग करने पर अमेरिका को हासिल हो सकता है... इसलिए उनके विचारों का स्पष्ट नहीं होना ऐसी दुनिया में चिंताजनक है, जहां मजबूत और परिपक्व राजनय की ज़रूरत है..."
वैसे, सैन्य सहयोग के मामले में भारत के लिए अमेरिका की वह मदद सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है, जो अमेरिका उसे अपना सबसे बड़ा विमानवाहक पोत बनाने में दे रहा है. अमेरिका ने वह फ्लाइट लॉन्च तकनीक भारत को दी है, जो वह खुद अपने विमानवाहक पोतों में लगा रहा है, ताकि ज़्यादा बड़े लड़ाकू विमान भी पोत से ही उड़ान भर सकें. इससे भारतीय नौसेना को तकनीक की दुनिया में आगे बढ़ने में काफी मदद मिलेगी.
जून माह में अमेरिका के साथ भारत का समझौता हो गया था, जिसके तहत विमानवाहक पोत बनाने से जुड़ी गोपनीय जानकारी का आदान-प्रदान किया जाना है. गौरतलब है कि परमाणु संधि पर दस्तखत नहीं करने वालों देशों में भारत एकमात्र है, जिसके साथ अमेरिका ने ऐसा कोई समझौता किया है.
इसके अलावा अगस्त माह में भी नरेंद्र मोदी सरकार ने एक लॉजिस्टिक्स समझौते पर दस्तखत किए थे, जिससे दोनों देशों को एक-दूसरे के सैन्य अड्डों तक पहुंच बनाने की अनुमति मिल गई है. इस समझौते के लिए बातचीत पिछले 10 साल से चल रही थी.
रॉयटर का दावा है कि जून में भारत की ओर से 22 प्रीडेटर गार्जियन ड्रोन विमान खरीदने के लिए किए गए सौदे पर बातचीत अंतिम चरण में है.
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने रॉयटर को बताया, "यह बढ़िया चल रहा है... मकसद यह है कि मुख्य प्रक्रिया को अगले कुछ महीनों में खत्म कर लिया जाए..."
हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ काफी करीबी व्यक्तिगत संबंध स्थापित कर लिए हैं, और इस बीच अमेरिका भी भारत को हथियारों की आपूर्ति के मामले में रूस से आगे निकल चुका है.
अमेरिकन फॉरेन पॉलिसी काउंसिल में एशिया सिक्योरिटी प्रोग्राम्स के निदेशक जेफ स्मिथ ने कहा, "सरकार जितना हो सके, ज़्यादा से ज़्यादा काम जल्दी से जल्दी खत्म करने के लिए उत्सुक है... सरकार का मानना है कि दोनों देशों की राजधानियों में हालात भी, और अधिकारी भी यही चाहते हैं, और चाहते हैं कि इस प्रगति को मजबूत कर लिया जाए..."
अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' पर आधारित विदेश नीति से जुड़े बयानों के मद्देनज़र भारत तथा अन्य एशियाई देशों में अटकलों का बाज़ार गर्म है कि ट्रंप के जीतने की स्थिति में एशिया में अमेरिका की उपस्थिति कम की जा सकती है.
ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका के सहयोगी देश जापान और दक्षिण कोरिया को अपनी रक्षा के लिए ज़्यादा रकम खर्च करनी चाहिए. उन्होंने मार्च महीने में 'न्यूयार्क टाइम्स' को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि वह जापान में बने बेसों से अमेरिकी फौज को वापस बुला सकते हैं, और उन्होंने इस विचार को भी हवा दी थी कि वह जापान और दक्षिण कोरिया को खुद का परमाणु शस्त्रागार विकसित करने दे सकते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार अभियान के दौरान संचार निदेशक की हैसियत में काम कर चुके लंदन में बसे राजनैतिक रणनीतिकार मनोज लाडवा का कहना है कि ट्रंप ने भारत को विरोधाभासी संदेश भेजे हैं. उन्होंने बताया, "एक तरफ ट्रंप का कहना है कि वह भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को महत्व देते हैं, लेकिन साथ ही भारतीय कॉल सेंटर में काम करने वालों का मज़ाक भी उड़ाते हैं, और उस प्रतियोगी माहौल की अनदेखी करते हैं, जो भारत के साथ सहयोग करने पर अमेरिका को हासिल हो सकता है... इसलिए उनके विचारों का स्पष्ट नहीं होना ऐसी दुनिया में चिंताजनक है, जहां मजबूत और परिपक्व राजनय की ज़रूरत है..."
वैसे, सैन्य सहयोग के मामले में भारत के लिए अमेरिका की वह मदद सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है, जो अमेरिका उसे अपना सबसे बड़ा विमानवाहक पोत बनाने में दे रहा है. अमेरिका ने वह फ्लाइट लॉन्च तकनीक भारत को दी है, जो वह खुद अपने विमानवाहक पोतों में लगा रहा है, ताकि ज़्यादा बड़े लड़ाकू विमान भी पोत से ही उड़ान भर सकें. इससे भारतीय नौसेना को तकनीक की दुनिया में आगे बढ़ने में काफी मदद मिलेगी.
जून माह में अमेरिका के साथ भारत का समझौता हो गया था, जिसके तहत विमानवाहक पोत बनाने से जुड़ी गोपनीय जानकारी का आदान-प्रदान किया जाना है. गौरतलब है कि परमाणु संधि पर दस्तखत नहीं करने वालों देशों में भारत एकमात्र है, जिसके साथ अमेरिका ने ऐसा कोई समझौता किया है.
इसके अलावा अगस्त माह में भी नरेंद्र मोदी सरकार ने एक लॉजिस्टिक्स समझौते पर दस्तखत किए थे, जिससे दोनों देशों को एक-दूसरे के सैन्य अड्डों तक पहुंच बनाने की अनुमति मिल गई है. इस समझौते के लिए बातचीत पिछले 10 साल से चल रही थी.
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